घराट: पहाड़ों की प्राचीन जल-चालित चक्की और वैज्ञानिक धरोहर
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घराट की कविता
घट जस रिटनैं रयु,
भाग जस बाटिनैं रयु,
फितड़ जस घुमनैं रयु,
डव्क जस भरिनैं रयु।
घटपन आनैं रयु,
घटापार जानैं रयु,
पीसी जस शुकिल हैबै,
इथां-उथां उड़ानैं रयु।
पन्यावक पाणि जस,
तेज बहते रयु,
यों फितड़ां पर टकरै बै,
घटक पराणि गैं नचाते रयु।
घराट की धारा में,
सदियों से ये रीत रची,
घूमते पाटों की धुरी में,
जीवन की गाथा सजी।
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