घराट: पहाड़ों की परम्परागत वैज्ञानिक सोच और जीवनशैली का अनमोल नमूना - Gharat: A priceless example of traditional mountainous scientific thinking and lifestyle.

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घराट: पहाड़ों की परम्परागत वैज्ञानिक सोच और जीवनशैली का अनमोल नमूना

परम्परागत जीवनशैली और तकनीकी विकास के संदर्भ में अगर पहाड़ों की वैज्ञानिक दृष्टिकोण को देखना हो, तो घराट (या घट) एक अनोखा और अद्वितीय उदाहरण है। आधुनिकता के इस दौर में, पहाड़ी जीवनशैली से जुड़ी कई चीजें विलुप्ति की कगार पर हैं, और उनमें से एक प्रमुख चीज है घराट। जहां आज बिजली से चलने वाली आटा चक्कियां घर-घर में उपलब्ध हैं, वहीं घराट एक ऐसी प्राचीन तकनीक है, जिसने सदियों से पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों की अनाज पीसने की जरूरत को पूरा किया।

घराट की कार्यप्रणाली: पानी से चलने वाली प्राकृतिक चक्की

घराट की संरचना और कार्यप्रणाली पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों और वैज्ञानिक सोच पर आधारित है। यह तकनीक पानी की ऊर्जा का उपयोग करके अनाज पीसने का काम करती है। घराट को पहाड़ों की नदियों या गधेरों के किनारे स्थापित किया जाता है। यहाँ से नहरों (जिन्हें गूल कहा जाता है) के जरिए पानी को लकड़ी से बने पनाले तक पहुंचाया जाता है, जो पंखेदार चक्र (water wheel) में पानी छोड़ता है। चक्र के घूमने से पत्थरों के दो पाटे आपस में रगड़ते हैं, जिससे अनाज पीसने का काम होता है।

पाटों के ऊपर एक लकड़ी का ढांचा होता है जिसे डयोक कहा जाता है, जिसमें अनाज डाला जाता है। डयोक की एक खासियत यह होती है कि यह पाटों के घूर्णन के साथ तालमेल बिठाते हुए अनाज को धीरे-धीरे गिराता है। यह सुनिश्चित करता है कि अनाज का पीसने का कार्य सुचारू रूप से हो।

पहाड़ी जीवनशैली और घराट का महत्व

पहाड़ों के ग्रामीण इलाकों में घराट सिर्फ अनाज पीसने की जगह नहीं थे, बल्कि यह सामूहिकता और सामाजिक एकजुटता का प्रतीक भी थे। पहले के समय में गाँव के लोग घराट पर अनाज पीसने जाते थे और बदले में पिसे हुए अनाज का एक छोटा हिस्सा घराट के मालिक के लिए छोड़ देते थे। यह व्यवस्था पूरी तरह कैशलेस थी, जिसमें गाँव के सभी परिवार अपनी जरूरतें पूरी करते थे और एक परिवार का भरण-पोषण भी होता था।

घराट का विलुप्त होना और उसके प्रभाव

आज की आधुनिकता और मशीनों के दौर में घराट का चलन लगभग समाप्त हो चुका है। अल्मोड़ा के दन्या गाँव के धनकाना में जैसे क्षेत्रों में घराट अभी भी कार्यरत हैं, लेकिन यह अपवाद ही है। सैकड़ों घराट जो कभी गाँवों की मुख्य जरूरतें पूरी करते थे, वे अब बंद हो चुके हैं। इसके साथ ही, घराट के बंद होने का मतलब है एक पूरी तकनीकी और वैज्ञानिक सोच का धीरे-धीरे समाप्त हो जाना।

पहाड़ों में पानी के धारे और घराट एक दूसरे से जुड़े हुए थे। लोग गधेरों की साफ-सफाई, नहरों का रखरखाव और पानी को सही दिशा में बनाए रखने के लिए जंगल में पेड़-पौधे लगाने जैसे उपाय करते थे, जिससे वर्षभर घराट में पानी की कमी न हो। इसके साथ ही, यह एक सामुदायिक जिम्मेदारी होती थी, जिसमें लोग न केवल घराट बल्कि पर्यावरण की भी देखभाल करते थे।

घराट से जुड़ी स्मृतियाँ और सामाजिक ताना-बाना

पहले के समय में, जब महिलाएं दूर-दराज के घराट पर अनाज पीसने जाती थीं, तो यह एक सामूहिक अनुभव होता था। रातभर घराट और धारे की आवाज़ के बीच उनकी गपशप, हंसी-ठिठोली और सुख-दुःख की बातें होती थीं। इस तरह के सामूहिक अनुभव और आपसी जुड़ाव भी घराट के बंद होने के साथ धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं।

निष्कर्ष

घराट का विलुप्त होना सिर्फ एक तकनीक का अंत नहीं है, बल्कि यह पहाड़ी जीवनशैली, सामुदायिकता, और प्रकृति के साथ जुड़ी एक वैज्ञानिक सोच के कमजोर होने का संकेत है। सैकड़ों साल पहले जब शिक्षा और तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं, तब भी पहाड़ों के लोगों ने अपनी आवश्यकता अनुसार घरेलू तकनीक विकसित की और प्रकृति के साथ जुड़ाव बनाए रखा। आज जबकि आधुनिकता ने पारंपरिक साधनों को पीछे छोड़ दिया है, हमें इस पुरानी तकनीक और जीवनशैली के महत्व को फिर से समझने और सुरक्षित रखने की जरूरत है।

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