श्री कालरात्री आवरण पूजा विधि: सम्पूर्ण पूजन क्रम - Goddess Kalaratri's protective worship method: Complete worship sequence.

श्री कालरात्री आवरण पूजा विधि: सम्पूर्ण पूजन क्रम

पीठ पूजा
श्री कालरात्री की पूजा में पीठ पूजन का विशेष महत्त्व है। इस विधि में निम्नलिखित मंत्रों से पूजा की जाती है:

  1. ॐ मण्डूकादि परतत्त्वाय नमः
  2. प्रीं पृथिव्यै नमः
  3. सौः सुधार्णवाय नमः
  4. रां रत्नद्वीपाय नमः
  5. क्रीं सौः सरोवराय नमः
  6. क्लीं कल्पवनाय नमः
  7. पद्मवनाय नमः
  8. कल्पवल्ली मूलवेद्यै नमः
  9. यं योगपीठाय नमः

श्री कालरात्री आवाहन (आमंत्रण)

श्री कालरात्री का आवाहन पूजा का प्रमुख चरण होता है, जहां माता की कृपा के लिए उनका ध्यान और आवाहन किया जाता है:

मंत्र:
नवांवुदाभांमुहिरेन्दुवह्रिनेत्रांगदांभोजकरांहसन्तीम्।
पीतांबरांमुक्तकच्चोज्ज्वलाङ्गी श्रीकालरात्रीहृदयेभजामि ॥

इसके बाद, निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए आवाहन और स्थापना की जाती है:

मंत्र:
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं ॐ कालरात्रि क्लीं ऐं सः फट् स्वाहा।
श्री कालरात्री ध्यायामि आवाहयामि नमः।

पूजा के अगले चरणों में निम्नलिखित मुद्राएँ प्रदर्शित की जाती हैं:

  1. आवाहन मुद्रां प्रदर्श्य
  2. स्थापन मुद्रां प्रदर्श्य
  3. संस्थित मुद्रां प्रदर्श्य
  4. सन्निरुद्ध मुद्रां प्रदर्श्य
  5. सम्मुखी मुद्रां प्रदर्श्य
  6. अवकुण्ठन मुद्रां प्रदर्श्य

श्री कालरात्री पूजन सामग्री और विधि

पूजा में विभिन्न सामग्रियों का अर्पण करते हुए माता का पूजन किया जाता है:

  1. आसनम् कल्पयामि: माता के आसन हेतु।
  2. पाद्यं कल्पयामि: माता के चरणों में पाद्य अर्पण।
  3. अर्घ्यं कल्पयामि: अर्घ्य अर्पण।
  4. आचमनीयं कल्पयामि: जल अर्पण।
  5. स्नानं कल्पयामि: शुद्धोदक स्नान।
  6. वस्त्राणि कल्पयामि: वस्त्र अर्पण।
  7. आभरणानि कल्पयामि: आभूषण अर्पण।
  8. गन्धं कल्पयामि: दिव्य गन्ध अर्पण।
  9. हरिद्रा कुङ्कमं कल्पयामि: हल्दी-कुमकुम।
  10. पुष्पाक्षतान् कल्पयामि: पुष्प और अक्षत अर्पण।
  11. धूपं कल्पयामि: धूप अर्पण।
  12. दीपं कल्पयामि: दीप अर्पण।
  13. नैवेद्यं कल्पयामि: नैवेद्य (भोग) अर्पण।
  14. सुगन्ध ताम्बूलं कल्पयामि: सुगन्धित ताम्बूल अर्पण।
  15. कर्पूर नीराञ्जनं कल्पयामि: कर्पूर आरती।
  16. प्रदक्षिण नमस्कारान् कल्पयामि: प्रदक्षिणा और नमस्कार।

षडङ्ग तर्पणम् (षड्अंग पूजन)

षड्अंग तर्पणम् में हृदय, शिर, शिखा, कवच, नेत्र और अस्त्र शक्ति का तर्पण किया जाता है:

  1. श्रीं ह्रां हृदयाय नमः - हृदय शक्ति का तर्पण।
  2. श्रीं ह्रीं शिरसे स्वाहा - शिर शक्ति का तर्पण।
  3. श्रीं हूं शिखायै वषट् - शिखा शक्ति का तर्पण।
  4. श्रीं हैं कवचाय हूं - कवच शक्ति का तर्पण।
  5. श्रीं ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् - नेत्र शक्ति का तर्पण।
  6. श्रीं ह्रः अस्त्राय फट् - अस्त्र शक्ति का तर्पण।

लयाङ्ग तर्पणम् (विशेष तर्पण)

इस तर्पण में विशेष मंत्रों का जाप कर माता श्री कालरात्री का पूजन किया जाता है:

मंत्र:
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं ॐ कालरात्रि क्लीं ऐं सः फट् स्वाहा (१० बार)।
कालरात्र्यम्बा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।


समापन मंत्र:

पूजन के समापन पर देवी से आशीर्वाद और अनुज्ञा प्राप्त करने हेतु निम्न मंत्र का जाप किया जाता है:

मंत्र:
सन्विन्मये परे देवी परामृत रुचि प्रिये।
अनुज्ञां कालरात्रीं देहि परिवार्चनायम मे ॥


निष्कर्ष

श्री कालरात्री की आवरण पूजा का यह विधि क्रम उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का श्रेष्ठ साधन है। यह पूजा साधक को शक्ति, साहस और शांति प्रदान करती है।

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