माता सिद्धिदात्री: नवरात्रि के नवें दिन की पूजा - Goddess Siddhidatri: Worship on the ninth day of Navratri

माता सिद्धिदात्री: नवरात्रि के नवें दिन की पूजा

माता सिद्धिदात्री की स्तुति

या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

माँ दुर्गाजी की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। सिद्धिदात्री का अर्थ है, "सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली।" मार्कंडेयपुराण के अनुसार, आठ प्रमुख सिद्धियाँ हैं:

  • अणिमा: छोटे आकार में आने की क्षमता।
  • महिमा: विशाल आकार में आने की क्षमता।
  • गरिमा: भारी होने की शक्ति।
  • लघिमा: हल्का होने की शक्ति।
  • प्राप्ति: इच्छित वस्तु को प्राप्त करने की क्षमता।
  • प्राकाम्य: इच्छित वस्तु की सृष्टि।
  • ईशित्व: सर्वशक्तिमान होने की क्षमता।
  • वशित्व: दूसरों को अपने वश में करने की शक्ति।

माँ सिद्धिदात्री भक्तों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में सक्षम हैं।

माता सिद्धिदात्री की छवि

माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं, जिनका वाहन सिंह है। वे कमल पुष्प पर आसीन होती हैं। उनके दाहिनी ओर के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाईं ओर के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमलपुष्प है।

सिद्धिदात्री की पूजा विधि

नवरात्रि के नवें दिन माता को विदा किया जाता है। इस दिन प्रातःकाल स्नान-ध्यान करके माता का आसन (चौकी) लगाना चाहिए। इस पर माता सिद्धिदात्री की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। माता को पुष्प, अनार, नैवैद्य अर्पित करें। माता की स्तुति, ध्यान मंत्र एवं दुर्गा चालीसा का पाठ करें।

माता सिद्धिदात्री की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मांड अंधकार से भरा हुआ था, तब उस अंधकार से ऊर्जा का एक पुंज प्रकट हुआ, जो देवी महाशक्ति के रूप में विकसित हुआ। माँ सिद्धिदात्री ने त्रिदेवों को अपने-अपने कार्यों के लिए शक्तियाँ दीं और सृष्टि का संचालन आरंभ किया।

ध्यान मंत्र

वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्।

स्वर्णवर्णा, निर्वाणचक्र स्थिताम्, नवम् दुर्गा, त्रिनेत्राम्।
शङ्ख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्।

पटाम्बर परिधानां, मृदुहास्या, नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्।

प्रफुल्ल वन्दना, पल्लवाधरां, कान्त कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां, श्रीणकटिं निम्ननाभि नितम्बनीम्।

माता सिद्धिदात्री का स्तोत्र

कञ्चनाभा शङ्खचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते।

पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
नलिस्थिताम् नलनार्थी सिद्धीदात्री नमोऽस्तुते।

परमानन्दमयी देवी, परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते।

विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता, विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते।

भुक्तिमुक्तिकारिणी, भक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते।

धर्मार्थकाम प्रदायिनी, महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते।

माता सिद्धिदात्री का कवच

ॐकारः पातु शीर्षो माँ, ऐं बीजम् माँ हृदयो।
हीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो।

ललाट कर्णो श्रीं बीजम् पातु क्लीं बीजम् माँ नेत्रम् घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै माँ सर्ववदनो।

माता सिद्धिदात्री जी की आरती

जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता।
तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता।

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि।

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम।

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया।

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली।

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा।

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता।

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