मनो सवाल - समाज की विडंबनाओं पर एक कटाक्ष - Mano Question - A poignant poem on the ironies of society
मनो सवाल - समाज की विडंबनाओं पर एक मार्मिक कविता
कविता:
रमवा फेरी रुं कै, कति सवाल उठूं रहा
स्कूल ना जानो त, उके आवारा बतुं रहा
समझ न रया देशो असल भविष्य छ उ
थोड़ा ढुङ्ग माटो बेचनो, त चोर बतुं रहा।
याद राख्या भला दिन योई नेता बनलो
योई देश-प्रदेशो नीति निर्धारण करलो
तुम यायी इन गड़ भिड़ा में लागि रोला
यो शहर बैठी बैठी घर भकार भरलो।
यो कैकी नौकरी बेची बेची कमालो
काई रुख डाला ठेची ठेची कमालो
भैरा बैंको में लै जामा करलो खूब
बाटा घाटा बेची येति येति कमालो।
पढ़ी लेखी जो चेला अफसर बनला
ऊनि रमवा थैं रोज सर सर करला
हुकुम सुनला ठुली ठुली कुर्सी बैठी
उइकि बात मानि उइको घर भरला।
कि करि ज यो सब ये बकते बला छ
सब सोचनान आब चुप रुने में भला छ
आज मन मे सबो क यो सवाल "राजू"
चपरासी बीए त नेता अनपढ़ कला छ।
© राजू पाण्डेय
अर्थ और विश्लेषण:
"मनो सवाल" कविता समाज की विडंबनाओं और असमानताओं पर एक गहरा कटाक्ष है। इस कविता में, लेखक ने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, नैतिक पतन, और नेताओं की अशिक्षा पर तीखे सवाल उठाए हैं।
समाज की सोच:
कविता की शुरुआत में, रमवा जैसे गरीब और असहाय लोगों को समाज किस नजरिए से देखता है, इसका वर्णन किया गया है। जो लोग शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, उन्हें समाज द्वारा आवारा कहा जाता है, जबकि असली भविष्य और समाज की सेवा में उनका कितना योगदान हो सकता है, यह कोई नहीं समझता।नेताओं की स्थिति:
कविता में इस बात को उजागर किया गया है कि कैसे वही लोग, जिन्हें कभी आवारा कहा जाता था, समय के साथ नेता बन जाते हैं और देश-प्रदेश की नीतियाँ निर्धारित करते हैं। ऐसे नेताओं के कारण समाज में फैली असमानताएँ और भ्रष्टाचार का उल्लेख किया गया है।भ्रष्टाचार और नैतिक पतन:
कविता में, सरकारी नौकरियों को बेचने, जंगलों को कटवाने, और बैंक घोटालों के माध्यम से धन कमाने जैसे भ्रष्टाचार के उदाहरण दिए गए हैं। लेखक ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है कि समाज में यह सब कुछ सामान्य हो गया है।शिक्षा और अशिक्षा की विडंबना:
कविता के अंत में, लेखक ने इस विडंबना पर सवाल उठाया है कि आज एक बीए पास व्यक्ति चपरासी बनता है, जबकि अशिक्षित नेता समाज पर शासन करते हैं। यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जिसे लेखक ने बड़े ही मार्मिक तरीके से व्यक्त किया है।
Keywords:
- समाज की विडंबना
- भ्रष्टाचार और नैतिक पतन
- शिक्षा और अशिक्षा
- नेता और समाज
"मनो सवाल" कविता के माध्यम से राजू पाण्डेय ने समाज की असमानताओं और भ्रष्टाचार पर एक तीखा कटाक्ष किया है। यह कविता हमें सोचने पर मजबूर करती है कि समाज में व्याप्त इन विडंबनाओं का समाधान कैसे निकाला जा सकता है
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