पहाड़ी लूण: स्वाद और सरलता का संगम
कुणकुणो ऱ्वट हो कणक मडुव को
हो साग या लूण हो।
घर को घ्यू आँगुलेक हो भुटण हूँ
या तेल चोख्यूँण हो।
ह्यूना म्हेंण प्रभात घाम देइ में
या ब्याल को तैल हो,
बाड़ो लग कुनको सदा, साग हरियो
मैलो भलो गैल हो।
निक लुकुड़ा हतकान बिन खसम की
जो घीण ज्वे कन नि हो,
ये है लग खुशी नें सिवाय घर में
जो रीण कतुकै नि हो।
सुख को परिभाषित करते हुए कहा गया है,
"करारी रोटी कनक ( गेहूँ) या मडवा (रागी)की मिले,
साथ में साग हो या नमक ही हो,
घर की गाय का थोड़ा सा घी भूनने-पकाने- को हो
या बस शुद्धि के लिए तेल ही हो,
जाड़ों में सुबह की धूप दरवाजे पर आजाए,
या शाम के ढलते सूरज की गर्मी मिले,
अपनी उपजाऊ क्यारी हो जिसमें हरा साग उगा सकें,
पति अपनी पत्नी को अच्छे वस्त्र या गहने न दे पाए
तो भी वह बुरा न माने
और इनसे भी बड़ी खुशी की बात यह कि
किसी का कोई ऋण, देनदारी बची हुई न हो।"
धनिया, लहसुन, और हरी मिर्ची के साथ
पहाड़ी लूण कंठ खोल देता हैं सबके।
कविता: सुख का सच्चा स्वाद
कुणकुणो ऱ्वट हो कणक मडुव को
हो साग या लूण हो।
घर को घ्यू आँगुलेक हो भुटण हूँ
या तेल चोख्यूँण हो।
ह्यूना म्हेंण प्रभात घाम देइ में
या ब्याल को तैल हो,
बाड़ो लग कुनको सदा, साग हरियो
मैलो भलो गैल हो।
निक लुकुड़ा हतकान बिन खसम की
जो घीण ज्वे कन नि हो,
ये है लग खुशी नें सिवाय घर में
जो रीण कतुकै नि हो।
कविता का अर्थ और सौंदर्य:
यह कविता पहाड़ी जीवन के सादगी और संतोष की सुंदरता को दर्शाती है। इसमें बताया गया है कि जीवन का सच्चा सुख उन छोटे-छोटे पलों में छिपा होता है, जो हमें हमारी रोजमर्रा की साधारण चीजों से मिलता है। चाहे वह गरमागरम करारी रोटी हो, मडुवा की स्वादिष्टता हो, या फिर घर के आंगन में उगी हरी साग-सब्जी की ताजगी हो।
कविता में कहा गया है कि असली सुख वह है जब घर में शुद्ध घी की खुशबू हो, और हर सुबह की धूप या शाम की हल्की गर्मी हमें अपने परिवार के साथ बिताने को मिलती है। यह सुख तब और भी बढ़ जाता है जब हमारी कोई बकाया देनदारी न हो, और हम बिना किसी चिंता के अपने जीवन का आनंद ले सकें।
पहाड़ी लूण का स्वाद:
पहाड़ी लूण (नमक) का स्वाद अपने आप में अद्भुत होता है। धनिया, लहसुन, और हरी मिर्ची के साथ मिलकर यह साधारण नमक भी किसी अमृत से कम नहीं लगता। पहाड़ी लोग अपनी पारंपरिक रेसिपीज़ में इसका इस्तेमाल करते हैं, जो उनके भोजन में एक अलग ही स्वाद और ताजगी ले आता है।
संस्कृति का हिस्सा:
पहाड़ी लूण और स्थानीय भोजन केवल खाने तक सीमित नहीं है; यह पहाड़ी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह दर्शाता है कि कैसे साधारण सामग्री और पारंपरिक विधियों से भी जीवन को आनंदित और सार्थक बनाया जा सकता है।
अंतिम शब्द:
आज के समय में, जहाँ लोग विदेशों से आने वाले महंगे मसालों और खाद्य पदार्थों के पीछे भागते हैं, वहीं हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहकर, इस साधारण परंतु स्वादिष्ट पहाड़ी भोजन का भी आनंद लेना चाहिए। पहाड़ी लूण, रोटी, और साग केवल भोजन नहीं, बल्कि पहाड़ों की सादगी और प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते का प्रतीक भी हैं।
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