नवरात्रि: मां कालरात्रि के पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं - Navratri: Heartfelt wishes for the festival of Maa Kalratri.
नवरात्रि: मां कालरात्रि के पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
नवरात्रि का सातवां दिन
नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि की पूजा उपासना के लिए विशेष होता है। मां कालरात्रि का शरीर अंधकार की तरह काला है, बाल लंबे और बिखरे हुए हैं, और गले में चमकती हुई माला है। उनके चार हाथों में खड्ग, लौह शस्त्र, वरमुद्रा, और अभय मुद्रा है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और मां के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।
मां कालरात्रि की महिमा
काल के मुंह से बचाने वाली,
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार,
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा।
कालरात्रि जय-जय-महाकाली!
हे मां, तू शोक दुःख निवारीनी,
सर्व मंगल कारिणी,
चंड-मुंड विधारिनी,
तू ही शुंभ-निशुंभ सिधारिनी।
भक्तों के लिए शुभकामनाएं
मां काली हमारी भक्ति का आधार हैं और उनकी कृपा से हम सभी संकटों से मुक्त होते हैं।
जब भी मैं बुरे समय से घबराती हूं,
मेरी पहाड़ोवाली माता की आवाज आती है,
“रुक मैं अभी आती हूं।”
जय मां काली!
नवरात्रि 7वें दिन की शायरी
हर जीव के मुक्ति का मार्ग है मां,
जग की पालनहार है मां,
सबकी भक्ति का आधार है मां,
असीम शक्ति की अवतार है मां।
जय मां काली!
मां काली की शक्ति पर हमें है पूर्ण विश्वास,
इस नवरात्रि आपके सारे कष्टों का होगा नाश।
भक्ति का भंडार हो तुम,
शक्ति का संसार हो तुम।
नमन है मां तेरे चरणों में,
मेरी मुक्ति का दरबार हो तुम।
नवरात्रि 7वें दिन का संदेश
जो मां कालरात्रि के चरणों में शीश झुकाते हैं,
सारी मुसीबतों से लड़ने की ताकत पाते हैं।
कभी नहीं जाती मुरादें खाली,
मां खुशियों से भर देती है झोली खाली।
क्या है पापी, क्या है घमंडी,
मां के दर पर सभी शीश झुकाते।
मिलता है चैन तेरे दर पे मैया,
झोली भरके सभी हैं जाते।
सारा जहान है जिसकी शरण में,
नमन है उस मां के चरण में।
हम हैं मां के चरणों की धूल,
आओ मां को चढ़ाएं श्रद्धा के फूल।
नवरात्रि की भक्ति
सारी रात मां के गुण गायें,
मां का ही नाम जपें,
मां में ही खो जाएं।
जिनके सर पे हाथ तुम्हारा,
तूफानों में पाए किनारा।
वो ना बहके, वो ना भटके,
तू दे जिनको आप सहारा।
जहां पे तेरा हो जगराता,
कष्ट वहां ना आता।
दिव्य है मां की आंखों का नूर,
संकटों को मां करती हैं दूर।
मां की ये छवि निराली,
आपके घर लाए खुशहाली।
मां कालरात्रि का दिव्य रूप
शांतमय पार्वती ने भयावह रूप धरा,
दुष्ट रक्तबीज के संहार का शुभ घड़ी आईं।
अंधकार का विनाश लिए,
कालरात्रि आईं हैं,
दैत्य के सर्वनाश की महाकाली आईं हैं।
भक्त जनों को सिद्धिदात्री,
संकटहरणी वह शुभंकरी हैं,
असुरों की संहारिणी वह रूद्राणी हैं।
त्रिनयनी विकराल रूप धारी,
मन में ज्वाला की आंगारे हैं,
विद्युत तेज कंठा, खंडा खप्पर धारिणी,
गर्दभ पर वह सवारी हैं।
शक्ति और साहस का प्रतीक,
महागौरी का वह रूप हैं,
आज भी जनमानस के बीच,
नारी का वह चंडी स्वरूप हैं।
हर नारी के भीतर नवदुर्गा समाई हैं,
दानव रूपी मानव की अंत की घड़ी अब आईं हैं।
जय मां अम्बे, जय मां दुर्गा!
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