सप्तमं कालरात्रि: काल की अधिष्ठात्री देवी काली - Seventh night of Navratri: Goddess Kali, the ruler of time

सप्तमं कालरात्रि: काल की अधिष्ठात्री देवी काली

श्री काली देवी, जिन्हें "कालरात्रि" के नाम से भी जाना जाता है, काल की अधिष्ठात्री और संहार की देवी मानी जाती हैं। इनका स्वरूप अत्यंत भयानक है, परंतु इनका उद्देश्य सृष्टि की रक्षा और दुष्ट शक्तियों का नाश करना है। इस ब्लॉग में, हम देवी काली के अवतार, उनके रूप, और उनकी पूजा से जुड़े पौराणिक कथाओं और तात्त्विक अर्थों पर चर्चा करेंगे।

देवी काली का अवतार और मधु-कैटभ का वध
The incarnation of Goddess Kali and the killing of Madhu-Kaitabh

प्रलयकाल में, जब संपूर्ण संसार जलमग्न हो चुका था और भगवान विष्णु शेषनाग पर योगनिद्रा में विश्राम कर रहे थे, तब भगवान विष्णु के कान से मधु और कैटभ नामक दो असुर उत्पन्न हुए। ये असुर प्रजापति ब्रह्मा को मारने के लिए तैयार हो गए थे। इस संकट को देखते हुए, ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु को जगाने के लिए श्री हरि की योगनिद्रा स्वरूपिणी महामाया की स्तुति की।

ब्रह्मा जी ने देवी को संबोधित करते हुए कहा: "हे महामाया! तू ही इस जगत की उत्पत्ति, स्थिति और संहार करने वाली शक्ति है। तू ही महाविद्या, महामाया और महास्मृति है। तूने स्वयं भगवान विष्णु को भी योगनिद्रा में डाल दिया है। हे देवी, अपनी महाशक्ति से इन असुरों को मोहित कर भगवान को जगा।"

इस प्रकार स्तुति करने पर भगवती महामाया भगवान विष्णु के शरीर से प्रकट हुईं, जिससे भगवान विष्णु जाग उठे और मधु-कैटभ से युद्ध करने लगे। पाँच हजार वर्षों तक युद्ध के बाद भी मधु और कैटभ नहीं मरे। तब महामाया ने उनकी बुद्धि को मोहित किया, जिससे वे विष्णु भगवान से वरदान मांगने को तैयार हो गए। भगवान विष्णु ने उनसे वरदान स्वरूप यह मांगा कि वे उनके हाथों मारे जाएं। अंत में भगवान विष्णु ने अपनी जंघाओं पर रखकर उन्हें चक्र से मार दिया।

काली: सृष्टि और संहार की देवी

काली की मूर्ति शक्ति तत्व की पूर्ण अभिव्यक्ति मानी जाती है। काली, सृष्टि की उत्पत्ति और संहार का प्रतीक हैं। उनका भयावह रूप प्रलय के समय संहार का प्रतीक होता है। वे सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति, और लय की नियंत्रक हैं और समस्त संसार उनके प्रभाव से संचालित होता है। काली केवल संहार की देवी ही नहीं हैं, वे मोक्ष और मुक्तिदायिनी भी हैं।

मार्कण्डेय पुराण में कहा गया है कि देवी नित्य हैं, अर्थात वे उत्पत्ति और विनाश से परे हैं। देवताओं के कार्यों को सिद्ध करने के लिए वे रूप विशेष धारण करके धरती पर अवतीर्ण होती हैं।

काली का रूप और तात्त्विक महत्व

काली का स्वरूप उनके अद्वितीय शक्ति का प्रतीक है। श्मशान, शव, चिता, नरमुंड और रक्त – ये सभी भयावह प्रतीक हैं जो काली की मूर्ति में देखे जाते हैं। काली की मूर्ति में जो संहार की कराल विभीषिका है, वह प्रलयकाल की भयंकरता को दर्शाती है। काली की यह भैरवी मूर्ति सृष्टि के विनाश की घोर प्रतिकृति है।

काली का महत्व और पूजा विधि

शिव पुराण के अनुसार, काली का अवतार मधु और कैटभ का वध करने के लिए हुआ था। कालिका पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, हिमालय पर स्थित मतंग मुनि के आश्रम में देवताओं ने महामाया की स्तुति की। प्रसन्न होकर महामाया ने मतंग-वनिता के रूप में देवताओं को दर्शन दिया। उनके शरीर से काले पहाड़ के समान काली नारी प्रकट हुईं, जिन्हें काली नाम प्राप्त हुआ। काली देवी ओज, तेज, और पराक्रम की अधिष्ठात्री देवी हैं।

काली की उपासना संकटग्रस्त समय में अत्यंत फलदायी मानी जाती है। युद्ध, शत्रुभय, और आपदाओं के समय में उनकी पूजा करके विजय प्राप्त की जाती है। वे योद्धाओं, वीर पुरुषों, और संघर्षप्रिय लोगों की उपास्य देवी मानी जाती हैं।

काली पूजा का तात्त्विक अर्थ

काली, जो स्वयं काल की अधिष्ठात्री हैं, वे काल और मृत्यु से भी परे हैं। उनकी उपासना हमें यह सिखाती है कि मृत्यु और संहार केवल सृष्टि के आवश्यक अंग हैं। उनकी उपासना से भक्त निर्भय और समर्थ होते हैं। काली अपने भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करती हैं और उन्हें मोक्ष प्रदान करती हैं।

निष्कर्ष:

देवी काली की उपासना प्राचीन भारतीय धार्मिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनका रूप और तात्त्विक अर्थ हमें जीवन के संहार और पुनर्जन्म के चक्र को समझने में मदद करता है। काली की पूजा से हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन में आने वाले सभी संकटों और कठिनाइयों का सामना कैसे किया जा सकता है। उनका भयावह रूप हमें यह सिखाता है कि संहार जीवन का आवश्यक हिस्सा है, और उनके आशीर्वाद से हम सभी संकटों से उबर सकते हैं।

टिप्पणियाँ