माता कालरात्रि की कथा: नवरात्री के सातवें दिन पूजा विधि और मंत्र - Story of Goddess Kalratri: Worship method and mantra on the seventh day of Navratri.

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माता कालरात्रि की कथा: नवरात्री के सातवें दिन पूजा विधि और मंत्र

नवरात्रि के सातवें दिन माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप, माता कालरात्रि की पूजा की जाती है। इस लेख में हम जानेंगे कि माता कालरात्रि का जन्म कैसे हुआ, उनका मंत्र, आरती, और पूजा की विधि क्या है।

कालरात्रि माता की पूजा विधि

  1. प्रातः 4 बजे से 6 बजे तक माँ की पूजा का समय सर्वोत्तम माना जाता है।
  2. साधक को स्नान करके लाल वस्त्र धारण करने चाहिए।
  3. माँ के सामने घी का दीपक प्रज्वलित करें।
  4. फूल, फल और मिठाई से माँ की पूजा प्रारम्भ करें।
  5. पूजा के दौरान ऊपर दिए गए मंत्रों का जाप करें और माँ की आरती उतारें।
  6. नवरात्रि की सातवीं रात्रि में सरसों या तिल के तेल से अखंड ज्योति जलानी चाहिए।

पूजा के अंत में अपनी भूलों के लिए क्षमा प्रार्थना अवश्य करें।

माता कालरात्रि कौन हैं?

माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति माता कालरात्रि के रूप में जानी जाती हैं। उनके तीन नेत्र हैं, जो ब्रह्मांड के समान गोल हैं, और उनकी सांसों से अग्नि निकलती है। माता कालरात्रि एक भयंकर रूप धारण करती हैं, लेकिन वे सदा शुभ फल देने वाली देवी मानी जाती हैं, इसलिए उन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है।

माता कालरात्रि की पूजा का महत्व

माँ कालरात्रि की पूजा से भक्तों को सभी प्रकार के भय और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इनके नाम मात्र से ही दानव, राक्षस और भूत-प्रेत भाग जाते हैं। उनकी उपासना से ग्रह दोष दूर होते हैं और साधक को ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है। यह देवी शत्रुओं का नाश करती हैं और शांति और सुरक्षा प्रदान करती हैं।

माता कालरात्रि की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया, तो देवताओं ने भगवान शिव से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान शिव के आदेश पर माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध किया।

रक्तबीज का वध करने के दौरान, जब उसके शरीर से निकले रक्त से और रक्तबीज उत्पन्न होने लगे, तब माता दुर्गा ने अपने तेज से माता कालरात्रि का आविर्भाव किया। माता कालरात्रि ने रक्तबीज का रक्त अपने मुख में भर लिया, जिससे उसकी पुनः उत्पत्ति रुक गई और उसका वध संभव हुआ।

माता कालरात्रि का मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

माता कालरात्रि की पूजा विधि

नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा विशेष रूप से रात्रि के समय की जाती है। साधक को सहस्रार चक्र पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सप्तमी की पूजा की शुरुआत कलश स्थापना और उसमें विराजमान देवी-देवताओं की पूजा से होती है। फिर माता कालरात्रि की आराधना की जाती है। विशेष तांत्रिक विधान के अनुसार कुछ स्थानों पर इस दिन मदिरा का भी अर्पण किया जाता है। सप्तमी की रात सिद्धियों की रात मानी जाती है, जिससे साधक को अद्भुत शक्तियों की प्राप्ति होती है।

माता कालरात्रि की आरती

दुष्ट संहारिणी नाम तुम्हारा  
महा चंडी तेरा अवतारा  

पृथ्वी और आकाश पर सारा  
महाकाली है तेरा पसारा  

खंडा खप्पर रखने वाली  
दुष्टों का लहू चखने वाली  

कलकत्ता स्थान तुम्हारा  
सब जगह देखूं तेरा नजारा  

सभी देवता सब नर नारी  
गावे स्तुति सभी तुम्हारी  

रक्तदंता और अन्नपूर्णा  
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना  

ना कोई चिंता रहे ना बीमारी  
ना कोई गम ना संकट भारी  

उस पर कभी कष्ट ना आवे  
महाकाली मां जिसे बचावे  

जय माता कालरात्रि!

निष्कर्ष

माँ कालरात्रि की उपासना से सभी प्रकार की बाधाओं और शत्रुओं का नाश होता है, और भक्त भयमुक्त होकर जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। नवरात्रि के इस दिन उनकी पूजा कर अपने जीवन को भय और दुखों से मुक्त करें।

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