माँ कालरात्रि देवी की कहानी (Story of Kalratri Devi)
माँ दुर्गा के नौ रूपों में से एक शक्तिशाली स्वरूप माँ कालरात्रि हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। इस दिन को महासप्तमी कहा जाता है। माता कालरात्रि का जन्म बुराई का नाश करने के उद्देश्य से हुआ था। उनके इस रूप में उन्होंने शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज जैसे राक्षसों का वध किया था।
कालरात्रि माता की पूजा विधि
- प्रातः 4 बजे से 6 बजे तक माँ की पूजा का समय सर्वोत्तम माना जाता है।
- साधक को स्नान करके लाल वस्त्र धारण करने चाहिए।
- माँ के सामने घी का दीपक प्रज्वलित करें।
- फूल, फल और मिठाई से माँ की पूजा प्रारम्भ करें।
- पूजा के दौरान ऊपर दिए गए मंत्रों का जाप करें और माँ की आरती उतारें।
- नवरात्रि की सातवीं रात्रि में सरसों या तिल के तेल से अखंड ज्योति जलानी चाहिए।
पूजा के अंत में अपनी भूलों के लिए क्षमा प्रार्थना अवश्य करें।
माता कालरात्रि का स्वरूप
माँ कालरात्रि के शरीर का रंग गहरे अंधकार की तरह काला है। उनके बाल लंबे, बिखरे और खुले रहते हैं, और उनका चेहरा कराल (भयानक) है। उनके गले में विद्युत के समान चमकने वाली माला सुशोभित रहती है। माता के चार हाथ होते हैं—बाएं हाथों में लोहे का कांटेदार अस्त्र और एक खड्ग है, जबकि दाएं हाथों में अभय मुद्रा और वर मुद्रा है, जो भक्तों को आशीर्वाद और सुरक्षा प्रदान करती हैं। माँ का वाहन गधा है।
माँ कालरात्रि को गुड़ का भोग अत्यंत प्रिय है, और उन्हें लाल रंग के वस्त्र व रातरानी के फूल विशेष रूप से पसंद हैं। उनके इस भयंकर रूप के पीछे का उद्देश्य बुराई का नाश करना और भक्तों को भयमुक्त करना है।
कालरात्रि की कथा
एक बार दैत्य शुंभ, निशुंभ, और रक्तबीज ने तीनों लोकों में आतंक फैलाना शुरू कर दिया। परेशान देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और अपनी परेशानी बताई। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से राक्षसों का वध करने का अनुरोध किया। माता पार्वती ने भगवान शिव का आशीर्वाद लिया और दुर्गा रूप धारण कर दानवों का नाश करने के लिए निकल पड़ीं।
माँ दुर्गा ने सबसे पहले शुंभ और निशुंभ का वध किया, लेकिन जब वे रक्तबीज से युद्ध करने लगीं, तो उनकी समस्या और बढ़ गई। रक्तबीज का वरदान था कि जब भी उसकी रक्त की बूंद धरती पर गिरेगी, उससे और रक्तबीज उत्पन्न होंगे। इसे हराने के लिए, माँ दुर्गा ने कालरात्रि का भयंकर रूप धारण किया। इस रूप में उन्होंने रक्तबीज का वध किया और उसकी रक्त बूंदों को धरती पर गिरने से पहले ही पी लिया, जिससे कोई और रक्तबीज उत्पन्न न हो सके।
माँ कालरात्रि की पूजा का महत्व
माँ कालरात्रि की पूजा महासप्तमी के दिन विशेष रूप से की जाती है। माना जाता है कि नवरात्रि के सातवें दिन हमारा मन सहस्त्रार चक्र में स्थित हो जाता है, जो शुद्धता का प्रतीक है। इस दिन माँ कालरात्रि की आराधना करने से सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है और बुरी शक्तियाँ हमसे दूर हो जाती हैं।
माँ कालरात्रि की आराधना से भय, बुराई, और नकारात्मकता दूर होती है। उनका एक प्रसिद्ध मंत्र इस प्रकार है:
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः
इस मंत्र का जाप करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उन्हें जीवन में शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसी कारण माँ कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है। उनके श्वास से अग्नि की ज्वाला निकलती है, और उनके वाहन गर्दभ पर वे सवार रहती हैं।
माँ कालरात्रि से मिलने वाली शिक्षा
माँ कालरात्रि का स्वरूप हमें यह सिखाता है कि चाहे बुराई कितनी भी प्रबल क्यों न हो, अंततः उसे अच्छाई के सामने पराजित होना पड़ता है। जो भी सच्चे मन से माँ कालरात्रि की आराधना करता है, माँ उनकी जीवन से सभी बुराइयों और भय का अंत कर देती हैं।
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