उत्तराखंड: कुमाऊं क्षेत्र में खतड़वा त्योहार
खतड़वा पर्व उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में शीत ऋतु के आगमन के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से पशुओं की सुरक्षा, ठंड से बचाव, और आने वाले मौसम में उनकी अच्छी सेहत के लिए प्रार्थना करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। जैसे-जैसे शीत ऋतु करीब आती है, घरों में गर्म कपड़ों का प्रबंध किया जाता है। रजाई और कंबल निकाले जाते हैं, और स्वेटर आदि को धूप में सुखाकर रखा जाता है।

खतड़वा की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धारा
लोक कथाओं के अनुसार, खतड़वा पर्व को कुमाऊं मंडल के लोग अपने राजा या सेनापति की विजय की खुशी में मनाते हैं। पुराने समय में जब संचार के साधन नहीं थे, तब पहाड़ी क्षेत्रों में ऊंची चोटियों पर आग जलाकर संदेश प्रसारित किए जाते थे। माना जाता है कि किसी राजा की विजय अश्विन संक्रांति के दिन हुई थी, और इसे खतड़वा त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा।
पारंपरिक रीति-रिवाज और तैयारी
अश्विन मास में कुमाऊं के पहाड़ी इलाकों में खेती-किसानी के कामों की भरमार होती है। इस समय घरों में साफ-सफाई का काम होता है, और खतड़वा के दिन विशेष रूप से देलि और कमरों की लिपाई की जाती है। पूजा-पाठ के बाद पारंपरिक पहाड़ी व्यंजनों का आनंद लिया जाता है। चूंकि इस महीने में बड़े लोग काम में व्यस्त रहते हैं, इसलिए खतड़वा के डंडे बनाने और सजाने का काम बच्चों के जिम्मे होता है। प्रत्येक घर में जितने सदस्य होते हैं, उतने डंडे बनाए जाते हैं, जिन्हें रंग-बिरंगे फूलों और फसल की घास से सजाया जाता है।
खतड़वा के डंडों को सजाने में विशेष रूप से गुलपांग के फूल और फसल की घास का उपयोग किया जाता है। इस दिन महिलाएं गाय के गोशाले को साफ कर वहां नरम घास बिछाती हैं और गायों को आशीर्वाद गीत गाकर शुभकामनाएं देती हैं। यह एक प्राचीन परंपरा है, जिसमें पशुओं की सेहत और उनके बेहतर जीवन की कामना की जाती है।
खतड़वा की पूजा विधि और रीत
"खतड़वा" मनाने के दौरान चीड़ की लकड़ी की मशालें (छिलुक) जलाकर डंडों को गौशाले के अंदर से घुमाया जाता है, और इस दौरान यह प्रार्थना की जाती है कि आने वाली शीत ऋतु हमारे पशुओं के लिए अनुकूल हो और उन्हें रोगों से मुक्ति मिले। इसके बाद सभी लोग सजाए गए डंडों और ककड़ी को लेकर एक विशेष स्थान पर जाते हैं, जहां सुखी घास रखी होती है। घास में आग लगाई जाती है और डंडों से उसे पीटा जाता है, इस दौरान खतड़वा के पारंपरिक गीत गाए जाते हैं:
खतड़वा का विशेष प्रसाद: ककड़ी
खतड़वा के दिन पहाड़ी ककड़ी का विशेष महत्व होता है। अग्नि के चारों ओर घुमाने के बाद, ककड़ी को काटकर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। इस प्रसाद में विशेष महत्व होता है क्योंकि इसके बीजों को माथे पर तिलक करने की परंपरा होती है। यह प्रतीकात्मक है, जिससे माना जाता है कि ये बीज सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली का आह्वान करते हैं।
खतड़वा की सांस्कृतिक धरोहर
कुछ गांवों में खतड़वा मनाने के लिए विशेष स्थान या धार होती है, जिसे 'खतरूवा धार' के नाम से जाना जाता है। इस जगह पर सभी गांववासी एकत्र होकर त्योहार मनाते हैं। इस पर्व में जहां एक ओर शीत ऋतु के आगमन का स्वागत होता है, वहीं दूसरी ओर यह पर्व पशुपालन और कृषि संस्कृति से जुड़ी परंपराओं को जीवित रखने का भी प्रतीक है।
निष्कर्ष:
खतड़वा त्योहार कुमाऊं की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो न केवल शीत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, बल्कि पशुओं की सुरक्षा और समृद्धि के लिए एक सामूहिक प्रार्थना भी है। यह त्योहार हमें प्रकृति से जुड़ने और हमारी परंपराओं को जीवित रखने की याद दिलाता है, और आने वाली पीढ़ियों को भी इन महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहरों से परिचित कराता है।
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