पहाड़ों में भैलो खेलकर मनाई जाती है दीपावली, 11वें दिन होती है इगास बग्वाल (Deepawali is celebrated by playing Bhailo in the mountains, Igas Bagwal is celebrated on the 11th day)

पहाड़ों में भैलो खेलकर मनाई जाती है दीपावली, 11वें दिन होती है इगास बग्वाल

जैदेवभूमि (उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश)
भारत की खूबसूरती इसमें निहित है कि यहाँ के विभिन्न प्रदेशों में दीपावली के त्यौहार को अनूठे पारंपरिक अंदाज और प्रकाश पर्व के साथ मनाया जाता है। उत्तराखंड में दीपावली की परंपरा विशेष है, जिसे दीपोत्सव के साथ भैलो और सामूहिक नृत्य द्वारा मनाया जाता है।

दीपावली की अनूठी परंपराएं

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में धनतेरस के बाद छोटी दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है। ग्रामीण इलाकों में दीपावली की सुंदरता और पारंपरिक परंपरा दूर बसे प्रवासियों को गाँव की ओर आकर्षित करती है। यहाँ दीपावली का मुख्य आकर्षण भैलो और ढोल-दमाऊ की थाप पर होने वाला सामूहिक लोक नृत्य है।

दीपावली मनाने की खास परंपरा

यहाँ दीपावली दो दिन मनाई जाती है। लोग अपने घरों को सजाने के बाद उड़द और गहत की पकौड़ी बनाते हैं। शाम को लोग सामूहिक रूप से मिलकर पकवान का स्वाद चखते हैं। खास बात यह है कि जिस परिवार में किसी की मृत्यु हो गई हो और श्राद्ध तक त्योहार नहीं मनाते, उनके घर में गाँव वाले जाकर दीपावली के पकवान भेंट करते हैं। इस तरह के पर्व सामाजिक सौहार्द और आपसी भाईचारे को बढ़ावा देते हैं। इसके बाद गाँव के लोग एक साथ मिलकर ढोल-दमाऊ की थाप पर नृत्य करते हैं और भैलो खेलते हैं।

भैलो क्या है और कैसे बनाया जाता है?

भैलो एक प्रकार की मशाल है, जो हरी बेल जैसी मजबूत टहनियों पर लिसायुक्त लकड़ियाँ बांधकर तैयार की जाती है। गाँव के युवक और महिलाएं इसे बनाने में विशेष रूचि लेते हैं। दीपावली के दिन भैलो का पूजन करके उसे खेतों में ले जाया जाता है। भैलो के दोनों सिरों में आग लगाकर उसे चारों ओर घुमाते हुए नृत्य और गान किया जाता है। यह नृत्य गाँव की सुख-समृद्धि की कामना से किया जाता है।

इगास पर्व का महत्त्व

उत्तराखंड में दीपावली को बग्वाल कहा जाता है और इसके 11 दिन बाद एक और दीपावली मनाई जाती है, जिसे इगास कहते हैं। इगास के दिन लोग घरों की साफ-सफाई करके पकवान बनाते हैं, देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और गाय व बैलों की भी पूजा की जाती है। शाम के समय खाली खेतों में भैलो खेलकर यह पर्व मनाया जाता है। इगास में पटाखों का प्रयोग नहीं होता, यहाँ परंपरा के अनुसार दीपोत्सव का आनंद लिया जाता है।

इगास बग्वाल क्यों मनाई जाती है?

  1. भगवान राम की अयोध्या वापसी: माना जाता है कि भगवान श्रीराम के वनवास से लौटने की सूचना गढ़वाल क्षेत्र में 11 दिन बाद मिली थी, इसलिए यहाँ कार्तिक शुक्ल एकादशी को दीपावली मनाई गई।
  2. वीर माधो सिंह भंडारी की विजय: एक अन्य मान्यता के अनुसार गढ़वाल की सेना, वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में तिब्बत का युद्ध जीतकर दिवाली के 11वें दिन घर लौटी थी, जिसके उपलक्ष्य में यह पर्व मनाया जाता है।
  3. भैलो की लोक कथा: कहते हैं कि एक व्यक्ति भैलो के लिए लकड़ी लेने जंगल गया था और 11 दिन बाद लौटा। उसके वापस लौटने की खुशी में यह पर्व मनाया गया और तब से इस दिन भैलो खेलने की परंपरा शुरू हुई।

गढ़वाल में 4 बग्वालें

गढ़वाल में चार बग्वाल मनाई जाती हैं:

  1. पहली बग्वाल - कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी।
  2. दूसरी बग्वाल - अमावस्या के दिन।
  3. तीसरी बग्वाल - जिसे इगास बग्वाल कहा जाता है, जो कार्तिक शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है।
  4. चौथी बग्वाल - दूसरी बग्वाल के एक महीने बाद मार्गशीष अमावस्या को रिख बग्वाल के रूप में मनाई जाती है।

उत्तराखंड में दीपावली और इगास पर्व पारंपरिक और सांस्कृतिक विविधता का जीवंत प्रमाण है।

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