बुराँश: एक पहाड़ी पुष्प की महक
प्रस्तावना
उत्तराखंड की धरोहर में बुराँश का विशेष स्थान है। यह न केवल एक पुष्प है, बल्कि पहाड़ी संस्कृति और जीवनशैली का प्रतीक भी है। इस ब्लॉग में हम बुराँश के महत्व और उसकी सुंदरता को एक कविता के माध्यम से साझा करेंगे।
कविता: बुराँश
चंद्रकूट पर्वत शिखर पर,
चन्द्रबदनी मंदिर की ओर,
जाते पथ के दोनों तरफ,
चैत्र या बैशाख माह की अष्टमी को,
खिल जाते हैं बुराँश के फूल,
जिन्हें देखकर यात्रीगण,
हो जाते हैं हर्षित,
माँ के दर्शनों से पूर्व।
बुराँश अपनी लाली बिखेरता,
देखता है हँसते हुए,
चन्द्रबदनी से,
गढ़वाल हिमालय को,
जैसे कर रहा हो संवाद।
हिंवाळि काँठी दिखती हैं,
दाँतों की पंक्ति की तरह,
जैसे वो भी बिखरे बुराँशों से,
हँस कर कर रही हों संवाद।
बुराँश एक ऐसा पुष्प है,
जो गंधहीन होता है,
फिर भी हर उत्तराखंडी के मन में,
पहाड़ के इस प्रिय पुष्प को,
देखने की रहती है लालसा।
उत्तराखण्ड में हर साल आते हैं बुराँश,
पहाडों को निहारने,
हम तो नहीं जाते,
बुराँशों की तरह,
न जाने क्यूं?
निष्कर्ष
बुराँश का फूल हमारे लिए केवल एक प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा भी है। हर बार जब हम इसे देखते हैं, यह हमें अपने पहाड़ी घर की याद दिलाता है और हमारी जड़ों से जोड़ता है।
आपके विचार:
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