गढ़वाली मुहावरे और लोकोक्तियाँ (Garhwali Idioms and Proverbs)

गढ़वाली भाषा की मिठास और गहराई को समझने के लिए हमें उसके मुहावरे और लोकोक्तियों का अध्ययन करना चाहिए। ये मुहावरे और कहावतें हमारी संस्कृति, परंपराओं और जीवनशैली को दर्शाते हैं। इस ब्लॉग में हम कुछ प्रमुख गढ़वाली मुहावरों और लोकोक्तियों पर चर्चा करेंगे, जिनका उपयोग रोजमर्रा की जिंदगी में किया जाता है।
गढ़वाली मुहावरे (Garhwali Idioms)
दान आदिम की बात और आँमला कु स्वाद, बाद मा आन्दु।
- अर्थ: जैसे आँवले का स्वाद बाद में आता है, वैसे ही किसी अच्छे कार्य का महत्व और फल बाद में ही समझ में आता है।
- उदाहरण: दान करने के बाद ही उसकी असली खुशी मिलती है, जैसे आँवले का स्वाद बाद में आता है।
बान्दर का मुंड मा टोपली नि सुवान्दी।
- अर्थ: किसी अनपढ़ या मूर्ख व्यक्ति पर ज्ञान या समझ का कोई असर नहीं होता।
- उदाहरण: उसे कितनी ही समझाइए, बान्दर के मुंड में टोपली रखने से कुछ फायदा नहीं।
मि त्येरा गौं औलू क्या पौलू, तु मेरा गौं औलू क्या ल्यालु।
- अर्थ: दोनों पक्षों के लिए समान स्थितियाँ या लाभ न होना।
- उदाहरण: इस व्यापार में मैं तेरा गौं आउंगा, क्या पाऊंगा, तू मेरे गौं आकर क्या लाएगा?
भेल़ लमड्यो त घौर नी आयो, बाघन खायो त घौर नी आयो।
- अर्थ: जो बुरी संगत में फंस जाता है, वह नष्ट हो जाता है।
- उदाहरण: बुरी संगत में पड़ने से तो वही हाल होता है, भेल लमड्यो त घौर नी आयो, बाघन खायो त घौर नी आयो।
नि खांदी ब्वारी, सै-सुर खांदी।
- अर्थ: किसी का काम नहीं करना और दूसरों के कारणों पर निर्भर रहना।
- उदाहरण: वह अपनी जिम्मेदारियों से बचती रहती है, उसे हर समय दूसरों के भरोसे ही रहना है, जैसे नि खांदी ब्वारी, सै-सुर खांदी।
ब्वारी बुबा लाई बल अर ब्वारी बुबन खाई।
- अर्थ: बहू सास-ससुर के खिलाफ हो जाती है, उनके साथ रहते हुए भी उनकी बातों की अनदेखी करती है।
- उदाहरण: सास-ससुर की बुरी स्थिति हो जाती है, जैसे ब्वारी बुबा लाई बल अर ब्वारी बुबन खाई।
उछलि उछलि मारि फालि, कर्म पर द्वी नाली।
- अर्थ: चाहे जितनी भी मेहनत कर लो, परिणाम तुम्हारे भाग्य के अनुसार ही मिलेगा।
- उदाहरण: मेहनत तो सभी करते हैं, पर सफलता कर्म पर ही निर्भर है, जैसे उछलि उछलि मारि फालि, कर्म पर द्वी नाली।
अकल का टप्पु, सरमा बोझा घोड़ा मां अफु।
- अर्थ: बेवकूफ होना और बेवजह शर्मिंदा होना।
- उदाहरण: उसने बिना वजह की शर्मिंदगी मोल ली, जैसे अकल का टप्पु और सरमा बोझा घोड़ा मां अफु।
सौण मरि सासू, भादो आयां आंसू।
- अर्थ: जब कोई कठिनाई टल जाती है, तो उसके परिणाम में भी कुछ न कुछ परेशानी आ जाती है।
- उदाहरण: सासू की मौत हुई सौण में, लेकिन भादो में आंसू बहने लगे, जैसे सौण मरि सासू, भादो आयां आंसू।
जु नि धोलो अफड़ो मुख, उक्या देलो हैका तैं सुख।
- अर्थ: जो साफ-सुथरा नहीं होता, उसे कोई आराम या शांति नहीं मिलती।
- उदाहरण: साफ-सुथरा रहना जरूरी है, नहीं तो जु धोलो अफड़ो मुख, उक्या देलो हैका तैं सुख।
गढ़वाली लोकोक्तियाँ (Garhwali Proverbs)

“धार भिण्डौं, तब्बु तड् ताडौं।”
- अर्थ: जब तक कोई संकट नहीं आता, तब तक लोग लापरवाही से काम करते हैं।
- उदाहरण: जब तक बारिश नहीं होती, लोग छत की मरम्मत नहीं करते, जैसे धार भिण्डौं, तब्बु तड् ताडौं।
“कोदी घोटि घड्याल नि नाची।”
- अर्थ: कोई व्यक्ति अपनी आदत नहीं बदलता, चाहे कितना भी प्रयास कर लो।
- उदाहरण: बुरी आदतें छोड़ना मुश्किल होता है, कोदी घोटि घड्याल नि नाची।
गढ़वाली लोकोक्तियाँ (Garhwali Proverbs)
धुये धुये की ग्वरा, अर लगै लगै की स्वरा नि होन्दा।
- अर्थ: बिना आग के धुआँ नहीं उठता, यानी बिना कारण कोई चर्चा या अफवाह नहीं फैलती।
कौजाला पाणी मा छाया नि आन्दी।
- अर्थ: अशांत और अस्थिर मन में सच्चाई और शांति नहीं आती।
अपड़ा लाटा की साणी अफु बिग्येन्दी।
- अर्थ: अपनी मूर्खता से ही बुरा परिणाम भुगतना पड़ता है।
बड़ी पुज्यायी का भी चार भांडा, छोटी पुज्यायी का भी चार भांडा।
- अर्थ: चाहे कोई बड़ा हो या छोटा, सबकी समानता होती है।
अपड़ा गोरुं का पैणा सींग भी भला लगदां।
- अर्थ: अपने लोगों या चीजों की कमियां भी हमें अच्छी लगती हैं।
साग बिगाड़ी माण न, गौं बिगाड़ी रांड न।
- अर्थ: जिन पर जिम्मेदारी होती है, अगर वे ठीक नहीं हों, तो सबकुछ बिगड़ जाता है।
कोड़ी कु शरील प्यारु, औंता कु धन प्यारु।
- अर्थ: गरीब के पास जो थोड़ा होता है, वही उसके लिए मूल्यवान होता है, और अमीर के लिए उसका धन।
जन त्येरु बजणु, तन मेरु नाचणु।
- अर्थ: किसी की मेहनत से अन्य लोग लाभ उठाते हैं, जैसे कि किसी के बजाने पर दूसरा नाचता है।
ना गोरी भली ना स्वाली।
- अर्थ: कोई भी चीज़ सही नहीं लगती, संतोष का अभाव।
राजौं का घौर मोतियुं कु अकाल।
- अर्थ: कभी-कभी बड़े और अमीर लोग भी कठिनाई में फँस जाते हैं।
गढ़वाली मुहावरे (Garhwali Idioms)
जख मिली घलकी, उखी ढलकी।
- अर्थ: बिना ठोस योजना और मेहनत के काम सफल नहीं होते।
भैंसा का घिच्चा फ्योली कु फूल।
- अर्थ: किसी बेकार वस्तु की तुलना किसी मूल्यवान वस्तु से करना।
सब दिन चंगु, त्योहार कु दिन नंगु।
- अर्थ: हमेशा अच्छे समय में रहने वाला व्यक्ति खास मौके पर परेशान हो जाता है।
त्येरु लुकणु छुटी, म्यरु भुकण छुटी।
- अर्थ: जब एक की गलती पकड़ी जाती है, तो दूसरा भी अपनी गलती छुपा नहीं सकता।
कुक्कूर मा कपास और बांदर मा नरियूल।
- अर्थ: जिस चीज़ की जरूरत नहीं है, वह मिल जाए।
सारी ढेबरी मुंडी मांडी, अर पुछ्ड़ी दाँ न्याउँ (म्याउँ)।
- अर्थ: सारी मेहनत दिखावे के लिए हो और असल परिणाम में कुछ खास न निकले।
हाथा की त्येरी, तवा की म्यरी।
- अर्थ: एक जैसा काम करने वाले की तुलना।
लेजान्दी दाँ हौल, देन्दी दाँ लाखड़ु।
- अर्थ: जो चीज़ ली जाती है, वह ज्यादा कीमती होती है, और जो दी जाती है, वह कम मूल्य की होती है।
कखी डालु ढली, खक गोजु मारी।
- अर्थ: अपने द्वारा किया गया काम बहुत प्रभावी होता है।
जन मेरी गौड़ी रमाण च, तन दुधार भी होन्दी।
- अर्थ: जब अपनी समस्या हल हो जाती है, तब दूसरों की भी समस्या हल होती लगती है।
स्याल, कुखड़ों सी हौल लगदु त बल्द भुखा नि मरदा क्या? (मेंढकुं सी जु हौल लगदु त लोग बल्द किलै पाल्दा?)
- अर्थ: जो बड़ा काम करता है, वह बिना लाभ के नहीं रहता।
बुडीड पली ही इदगा छै, अब त वेकु नाती जु हुवेगी।
- अर्थ: जो चीज़ बुरे हालात में थी, अब उसके भी बेहतर परिणाम सामने आ रहे हैं।
हैंका लाटु हसान्दु च, अर अपडु रुवान्दु च।
- अर्थ: दूसरों की मूर्खता पर हँसना और खुद के दुःख में रोना।
बर्तियुं पाणी क्य बरतण, तापियुं घाम क्य तापण।
- अर्थ: जिन चीज़ों की हमें जरूरत है, उनका सही तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए।
बाखुरी कु ज्यू भी नि जाऊ, बाग भी भुकु नि राऊ।
- अर्थ: जब किसी से कोई उम्मीद नहीं होती, तो उससे कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
लौ भैंस जोड़ी, नितर कपाल देन्दु फ़ोड़ी।
- अर्थ: दो चीजें मिलकर बड़ी परेशानी खड़ी कर सकती हैं।
जख मेल तख खेल, जख फ़ूट तख लूट।
- अर्थ: जब चीजें सही ढंग से चल रही होती हैं, तो सब कुछ अच्छा लगता है, और जब बिखरती हैं, तो सब बर्बाद हो जाता है।
लगी घुंडा, फ़ूटी आँख।
- अर्थ: जब कोई बड़ा नुकसान होता है, तो वह सभी को दिखता है।
जख सोणु च तख नाक नि च, जख नाक च तख सोणु नि च।
- अर्थ: जब किसी को सारा ध्यान मिलता है, तो उसकी गलतियाँ नज़र नहीं आतीं, और जब गलतियाँ दिखती हैं, तो बाकी अच्छाइयाँ छुप जाती हैं।
निष्कर्ष
गढ़वाली भाषा में मुहावरे और लोकोक्तियाँ केवल शब्द नहीं हैं, बल्कि यह समाज की संस्कृति, परंपराएँ और जीवन के अनुभवों का हिस्सा हैं। ये मुहावरे और कहावतें न केवल जीवन की कठिनाइयों और सीखों को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी सिखाते हैं कि जीवन में कैसे आगे बढ़ा जाए।
इस ब्लॉग में दिए गए गढ़वाली मुहावरे और लोकोक्तियाँ हमारी दैनिक बातचीत को और भी रोचक और सजीव बनाते हैं। इन्हें सही तरीके से उपयोग करके हम अपनी भाषा को और भी प्रभावशाली बना सकते हैं।
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