उत्तरकाशी का सम्पूर्ण परिचय: इतिहास, संस्कृति और पर्यटन स्थल पीडीएफ के साथ - Introduction to Uttarkashi: History, culture and tourist attractions with PDF.
जनपद - उत्तरकाशी
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- काशी रहस्य नामक लघु ग्रन्थ में महर्षि वेदव्यास ने अन्नपूर्णा काशी की भांति वरूणा एवं असी नामक नदियों के मध्य स्थित है। सम्भवतः इसलिए भी इसे उत्तर का काशी अथवा उत्तरकाशी नाम से जाना गया।
- पूर्व में झाला गांव (गंगोत्री मार्ग पर) के निकट "लैणी का डांडा" पहाड़ टूट जाने से गंगा नदी अवरूद्ध हो गई, कुछ समय बाद बांध टूटने से पूर्व की ओर से उत्तर की ओर बहने लगी अतः उत्तरवाहिनी हो जाने के कारण भी उत्तरकाशी नामकरण माना जाता है।
- इस क्षेत्र में प्राचीन अन्नपूर्णा का मंदिर है।
- उपनाम- परशुराम की तपस्थली।
- प्राचीन नाम-बाड़ाहाट या सौम्यकाशी ।
- मुख्यालय- उत्तरकाशी
- स्थापना वर्ष - 1960
पड़ोसी जिले/देश/राज्य
- पूर्व में -चमोली
- पश्चिम में -देहरादून
- उत्तर में -हिमाचल एवं चीन
- दक्षिण में -टिहरी
- क्षेत्रफल- 8016 वर्ग किमी
- जनसंख्या-3,30,090 (3.27%)
- पुरुष-168600
- ग्रामीण-3,05,781
- शहरी-24,305
- महिला-161490
- जनघनत्व-41
- साक्षरता- 75.81% (10वां)
- पुरुष-88.79%
- महिला-62.35%
- लिंगानुपात- 958
- शिशु लिंगानुपात-916
तहसीलें (6) -
- भटवाड़ी,
- डुण्डा,
- चिन्यालीसौंड़,
- बड़कोट,
- पुरोला,
- मोरी
उपतहसीलें (4)
- जोशियाड़ा,
- धौंतरी,
- बर्नीगाड़,
- सांकरी
विकासखण्ड (6)
- - भटवाड़ी,
- डुण्डा,
- चिन्यालीसौड़,
- नौगांव,
- पुरोला,
- मोरी
विधानसभा सीटें (3)
- गंगोत्री,
- पुरोलापा,
- यमुनोत्री)
जिले के प्रमुख मंदिर
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विश्वनाथ मंदिर
- परशुराम द्वारा स्थापित माना जाता है।
- राजा प्रद्युम्न शाह द्वारा इसका पुननिर्माण किया गया।
- 1857 में सुदर्शन शाह की रानी खनटी (क्रांति) द्वारा जीर्णोद्धार किया गया।
कण्डार देवता मंदिर-
• अष्टधातु से निर्मित कण्डार देवता की मूर्ति है।
• मकर संक्रांति पर यहां मेले का आयोजन होता है।
शक्ति स्तभ-
- विश्वनाथ मंदिर के सामने स्थित है।
- यहां प्राचीन त्रिशूल (21फीट ऊंचा) है, जिसमें ब्राह्मी एवं शंख लिपि में लेख प्राप्त हुए है।
केदार मंदिर
- केदार घाट पर स्थित एक वैष्णव पीठ।
मणिकर्णिका घाट
- गंगा नदी के किनारे पर स्थित।
- नदी के मध्य में मणिकर्णिका शिला है।
- यहां पितृ परायण हेतु पिण्डदान की मान्यता है।
- महाकालेश्वर मंदिर- भागीरथी के बाएं जोशियाड़ा क्षेत्र में
- सन्तो की घाटी उजेली- उत्तरकाशी से लगा शहर।
- चौरंगीनाथ मंदिर- चौन्याल गांव में
- माँ कुटेटी देवी मंदिर- भागीरथी के बायें तट पर ऐरावत पर्वत की चोटी पर स्थित
- मंजियाली का सूर्य मंदिर- पुष्पक शैली में निर्मित कमल नदी के तट पर है।रघुनाथ मंदिर- गैर/बनाल गांवों में बड़कोट में। इसमें प्रसिद्ध देवलांग मेले का आयोजन होता है।
- रेणुका देवी मंदिर- मुख्य रूप से हिमाचल के नहान में। 1814 में निर्मित, परशुराम की माताजी को समर्पित मंदिर है।
- बाबा बौखनाग मंदिर- भाटिया गांव, बड़कोट में।
- कालिय नाग मंदिर- पुरोला के सरबड़ियाड़ में। कठओं नामक त्यौहार का आयोजन होता है।
- पौखु देवता मंदिर- न्याय के प्रसिद्ध। मुख्य मंदिर नेटवाड में। सुनारा गांव, नौगांव में भी स्थापित।
- जयपुर मंदिर- मुख्य बाजार उत्तरकाशी में स्थित।
- कमलेश्वर मंदिर- रामासेराई पट्टी, पुरोला में स्थित है।
- रिंगाली देवी मंदिर-डूण्डा गाव में जाड़ भोटिया समुदाय की आराध्या देवी।
अन्य- मंदिर
- मार्कण्डेय ऋषि का मंदिर,
- लक्षेश्वर मंदिर,
- दुण्डिराज मंदिर,
- सीताराम मंदिर,
- कोटेश्वर महादेव मंदिर,
- गोपाल मंदिर।
झीलें/ताल
- बया ताल- इसे फाचकण्डी ताल भी कहते है। जो उबलते। पानी की ताल है।
- भराड़सर ताल- 16,200 फीट की ऊंचाई पर स्थित ताल।
- रस्याड़ाताल- खाई के ओसला गांव से स्वर्गारोहणी बुग्याल के मध्य स्थित।
- केदारताल- थलैयासागर पर्वत श्रृंखला के निकट गंगोत्री से 18 किमी दूर।
- सातताल- हरसिल से थराली गांव की खड़ी चढ़ाई पार कर भोज वृक्षों के मध्य रमणीक स्थल ।
- खिड़ा ताल- हुरी गांव में।
- नचिकेता ताल- लम्बगांव मार्ग पर चौरंगीखाल में। ताल के तट पर मंदिर भी है।
- डोडीताल- गंगोत्री के निकट।
- सरूताल- सर–बडियार पट्टी में स्थित।
- सहस्त्रताल- कल्याणी मार्ग में, इसके निकट ही मातृताल,
- लिंग ताल, लांबा ताल, एवं भोमुखताल स्थित है।
प्रमुख कुण्ड
- ब्रह्म कुण्ड,
- विष्णु कुण्ड,
- रूद्र कुण्ड,
- सूर्य कुण्ड,
- कमलेश्वर
- महादेव कुण्ड
- सहस्त्रबाहु महादेव कुण्ड,
- रिगदू पाणी कुण्ड,
- केदार कुण्ड।
प्रमुख ताल
- रूईनसारा ताल
- अंचादिनाड़ा ताल
- रेवसाड़ा ताल
- सप्तऋषि बुण्ड ताल
- बड़ासू ताल
- मल्तणू झील
जिले के प्रमुख ग्लेशियर
- गंगोत्री ग्लेशियर- गंगा नदी का उद्गम स्थल। 3140 मी0 की ऊंचाई पर। राज्य का सबसे लम्बा ग्लेशियर है।
- यमुनोत्री ग्लेशियर
- बंदरपूंछ ग्लेशियर
- डोरियानी ग्लेशियर
- चतुरंगी ग्लेशियर
- खिमलोगा ग्लेशियर
- चांग-थांग ग्लेशियर
उत्तरकाशी में जनपद में जलप्रपात
- भटवाड़ी जलप्रपात- भटवाड़ी में भागीरथी पर।
- बरसू जलप्रपात-बरसू में।
- खेड़ी जलप्रपात -कृत्रिम रूप मनेरी परियोजना के कारण निर्मित है।
- मन्दाकिनी प्रपात- हर्षिल के निकट गंगोत्री मार्ग पर।
जिले की प्रमुख नदियां
- गंगा एवं यमुना नदियों का उद्गम भी इसी जिले में होने से चार धामों में से 2 धाम इस जिले में है।
टोंस नदी
- रुपिन एवं सूपिन नदियों से बनने वाली नदी।
- इनमें से रूपिन नदी का उद्गम बंदरपूंछ ग्लेशियर के निकट मण्डियाताल से निकलती है जो कि मुख्य टोंस नदी मानी जाती है।
- सूपिन नदी खिमलोगा ग्लेशियर से निकलती है, पूर्व में इसे कर्मनाशा नदी भी कहा जाता था।
- रुपिन एवं सूपिन नदी का संगम नेटवाड़ में होता है। जहां से वास्तविक रूप से टोंस नदी का निर्माण होता है।
- इस नदी का पुराना नाम तमसा था।
- यह कालसी के निकट डाकपत्थर यमुना सम्मिलित हो जाती है।
कमल नदी
- इसे स्थानीय लोग कमोल्ड नाम से पुकारते है।
- पुरोला विकासखण्ड में यह प्राकृतिक जल स्त्रोत से निकलती है जो कमलेश्वर स्थित जंगल में है।
- केदारगंगा केदारताल से निकलकर भागीरथी में सम्मिलित हुआ है।
रुद्रगंगा-
- रुद्रगेरा हिमनद से निकलकर गंगोत्री में भागीरथी में मिल जाती है।
जाह्नवी नदी-
- इसे जाड़ गंगा भी कहा जाता है। मल्ला टकनौर के थांगला दर्रे से निकलकर भैरोंघाटी में भागीरथी में मिल जाती है।
असीगंगा-
- डोडीताल से निकलकर, गंगोत्री में भागीरथी में शामिल।
हनुमान गंगा-
- खरसाली में यमुना में शामिल हो जाती है।
जिले में प्रमुख जल विद्युत परियोजनाएं
- मनेरी-भाली परियोजना
- तिलोथ परियोजना
- गंगानी परियोजना
- 4 .हनुमान गंगा परियोजना
- गंगानी परियोजना
- हनुमान गंगा परियोजना
- सियांगगाड़ परियोजना
- मोरी हनोल परियोजना
- रूपिन परियोजना
- नेटवाड़-मोरी परियोजना
- करमोली परियोजना
- जधगंगा परियोजना
- कालिंदीगाड़ परियोजना
- असीगंगा परियोजना
- सुबारी गाड़ परियोजना
- लिम्बागाड़ परियोजना
- भैरों घाटी परियोजना
- सोनगाड़ परियोजना
- तालुका-सांकरी परियोजना
जिले के प्रमुख दर्रे
उत्तरकाशी-हिमाचल के मध्य दर्रे
• श्रृंगकण्ठ दर्रा
उत्तरकाशी-चमोली के मध्य दरे
• कालिंदी
• मार्चयोक
• टोपिढूंगा
• 4.लातुधुरा
उत्तरकाशी-चीन के मध्य दरै
• नेलांग घाटी
• मुलिंग ला
• सागचोकला
• थांगला दर्रा (राज्य का सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित)
उत्तरकाशी अन्य दर्रे
• 1.बौधार दर्रा
• 2.नीगाल बौ दर्रा
• 3.बाली पास
जिले के प्रमुख बुग्याल
- हर्षिल बुग्याल
- हरकी दून बुग्याल
- हनुमान चट्टी बुग्याल
- कुश-कल्याण बुग्याल
- देवदामिनी बुग्याल
- द्यारा बुग्याल
- केदारखर्क बुग्याल
- तपोवन बुग्याल
- सोनागाड़ बुग्याल
- सुरम्य बुग्याल
- चाइंशिल बुग्याल
- चौलधार केनाथुवां
- मांझीवन बुग्याल
- रूपनौल सौण बुग्याल
- द्य़ारा बुग्याल
- भटवाड़ी के रैथल एवं बार्स गांवों से ऊपर स्थित प्रसिद्ध बुग्याल।
- 2600 से 3500 मी. के मध्य प्रसारित।
- ट्रैकिंग हेतु प्रसिद्ध, वर्ष, 2015 का ट्रैक ऑफ द ईयर घोषित।
- माखन की होली नाम से प्रसिद्ध अंडूडी मेला प्रसिद्ध है।
जिले के प्रमुख मेले/त्यौहार
- गढ़वाल के इस क्षेत्र में मेलों को थोलू कहा जाता है।
- पंचकोसी मेला/वारुणी यात्रा- चैत्र मास में ।
- घोल्डिया संक्रान्ति- जेठ प्रारम्भ होने की संक्रांति को आटे का घ्वैल्ड (मृग) बनाकर गुड़ एवं तेल में पकाये जाते है।
- सत्वातीज- बैशाख में नये अनाज (जौ, गेहूँ) भूनकर सत्तू बनाया जाता है।
- हड़तालिका तीज- भाद्रपद में पत्नियां पति की दीर्घ आयु हेतु व्रत धारण करती है।
- मकर संक्रान्ति का थोलू- इसे खिचड़ी संक्रांति भी कहा जाता है।
- बैशाखी का थोलू- 14 अप्रैल को हनोल में आयोजित।
- सेलकू- समेश्वर देवता को समर्पित।
- हारदूध का मेला-20 गत श्रावण मनाग देवता समेश्वरको आयोजित होता है।
- लोसर- नववर्ष आगमन पर डुंडा में जाड भाटिया द्वारा मनाया जाता है।
- कुटैटी देवी का थोलू- ऐरावत पर्वत पर मां कुटेटी देवी मंदिर पर आयोजित।
- द्य़ारा का अंडूड त्यौहार- रैथल गांव भटवाडी( भाद्रपद मास) में आयोजित। इसे माखन की होली भी कहा जाता है।यह ग्वाले श्रीकृष्ण को समर्पित है।
- मोरी मेला- तमलाग गांव में प्रति 12 वर्ष में आयोजित।
- श्रावणी मेला- नौगांव\
- समसू- हर की दून बुग्याल पर दुर्याधन की पूजा से सम्बन्धित।
- बेठल मेला- अगस्त-सितम्बर में बकरी पालकों की घर वापसी पर आयोजित होने वाला मेला।
- अठोड़ मेला- चार साल में एक बार आयोजित होने वाला मेला जो पाली गांव, नौगांव में आयोजित होता है। इसे कठोड़ भी कहते है।
- गेंदुवा उत्सव- पुरोला की सिंगवुर पट्टी में आयोजित होने वाला उत्सव।
उत्तरकाशी दो नदी घाटियों में विस्तारित है
- भागीरथी घाटी- धरांसू, चिन्यालीसौड़, डुंडा, उत्तरकाशी, मनेरी, हरसिल, लंका, गंगोत्री आदि इस घाटी में आते है।
- यमुना घाटी- बड़कोट, गंगनानी, हनुमान चट्टी, यमुनोत्री, नौगांव, पुरोला, मोरी, नेटवाड़ इत्यादि इस क्षेत्र में आते है।
गंगोत्री घाटी
- 3140 मी0 की ऊंचाई पर स्थित है।
- यहीं शिला में बैठकर भगीरथ ने गंगा को भूमि पर अवपरित करने हेतु तप किया था।
- गंगोत्री मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने किया था जो कि कत्यूरी शैली में निर्मित है।
- 20वीं सदी में वर्तमान मंदिर को जयपुर नरेश माधो सिंह ने बनाया।
समीपवर्ती तीर्थ
- भगीरथ शिला- इसके निकट ही केदारगंगा भागीरथी में मिलती है।
- गौरीकुण्ड- मंदिर के 200मी0 की दूरी पर
- ब्रह्म कुण्ड- भगीरथ शिला के पास स्थित है।
- विष्णु कुण्ड- ब्रह्म कुण्ड के बायें
- रुद्र कुण्ड- वर्तमान में अदृश्य।
भैरव मंदिर-
- जाह्नवी नदी- जाड़ गंगा भी कहा जाता है। ये भागीरथी में लंका या भैरवघाटी नामक स्थान के निकट भैरोझाप पर मिलती है।
- गोमुख- गंगोत्री से 20किमी पैदल मार्ग पर।
- नीलकण्ठ शिखर/ शिवलिंग शिखर- भगीरथ शिखर के वाम भाग को शिवलिंग शिखर एवं दक्षिणी भाग को नीलकण्ठ शिखर कहा जाता है।
- मुखवा- गंगोत्री से 20किमी पहले भागीरथी के दायें तट पर मुखवा गांव है। इसे भागीरथी का मायका कहा जाता है।
- पंटागण- भागीरथी के बायें तट पर गोहत्या पाप मुक्ति हेतु प्रसिद्ध तीर्थ।
- भैरोझाप- जाड़गंगा एवं भागीरथी के संगम पर। यह स्थल प्राचीन समय में स्वर्ग प्राप्ति हेतु प्राण त्यागने हेतु जाना जाता था।
- भटवाड़ी- गंगोत्री मार्ग में| भास्करेश्वर महादेव मंदिर
- गंगनाणी- यह एक तप्त कुण्ड है। जिसे ऋषि कुण्ड भा कहा जाता है।
- सुखी- मौसमी फलों हेतु प्रसिद्ध है।
- मनेरी- भागीरथी नदी में इस स्थान पर मनेरी-भाली जल विद्युत परियोजना है। (304Mw)
- हरसिल- गुप्त गंगा, हरि गंगा, नील गंगा, का भागीरथी में संगम इसी स्थान पर होता है। यह संगम श्यामप्रयाग, हरिप्रयाग एवं गुप्तप्रयाग कहलाते है। यहां कि राम तेरी गंगा मैली फिल्म की शूटिंग हुई थी।
- धराली- मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम (मुखवा), शिव-पार्वती मंदिर एवं कल्पकेदार मंदिर स्थित है।
- जंगला-जह ऋषि की तपस्थली धराली से चार मील आगे स्थित है।
- लंका- हरसिल के बाद भैरवघाटी भी कहते है। यहीं पर जाड़ गंगा पर भारत का सबसे ऊंचा पुल स्थित है।
यमुनोत्री
- 3230मी0 की ऊंचाई पर 6किमी ऊपर कुलिंद पर्वत है, जिस कारण यमुना को कालिन्दी नदी भी कहा जाता है।
- कालिन्दी पर्वत बन्दरपुछ पर्वत श्रेणी का हिस्सा
- बंदरपुछ पर्वत नाम पड़ने का कारण है कि लंका विजय के बाद हनुमान जी ने श्रीमुख पर्वत (चौखम्बा) की इस श्रृंखला पर तप किया था अतः इसे बंदरपुछ कहा गया।
- यहां 1850 में लकड़ी का मंदिर सुदर्शन शाह ने बनवाया।
- शीतकालीन पूजा स्थल- खरसाली गांव का सोमेश्वर देवालय है।
समीपवर्ती तीर्थ
- तप्त कुण्ड- सूर्य कुण्ड के नीचे।
- सूर्य कुण्ड- मंदिर के ऊपर की ओर स्थित गर्म जल का कुण्ड हैं
- मुखारबिन्दु- सूर्य कुण्ड के समीप दो धारायें फव्वारे के रूप में।
- गौरी कुण्ड- उमा कुण्ड भी कहा जाता है।
- सप्तऋषि कुण्ड - यमुनोत्री से 6 किमी दूर।
प्रमुख घाट-
- मणिकर्णिका घाट,
- बोटकाचार्य घाट,
- गौघाट (तांबाखानी नामक स्थान पर कमलाकार पाषाण शिला।)
प्रमुख समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं
- गढ़ रैबार -1974 में शुरू। जनपद बनने के बाद छपने वाला प्रथम समाचार पत्र इसके सम्पादक सुरेन्द्र भट्ट
- पर्वतवाणी - 1974 पीताम्बर जोशी द्वारा शुरू किया गया।
- उत्तरीय आवाज - 1988 में दिनेश नौटियाल ने इसे शुरू किया।
- रवाई मेल - 1998 जनजाति क्षेत्र रवाई से छपने वाला प्रथम समाचार पत्र जिसके सम्पादक राजेन्द्र सिंह असवाल थे।
- भूख - 1986 उत्तरकाशी की युवा साहित्य कला संगम सस्था के युवा रचनाकारों ने शुरू किया गया।
- वीर गढ़वाल - 1982 बर्फिया लाल जुवांठा ने शुरू किया।
उत्तरकाशी जिले के प्रमुख मेले और त्योहार by jaidevbhumi uttarakhand best pdf
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