पहाड़ी गाँव की कविता: प्रकृति की गोद में
प्रस्तावना
पहाड़ी गाँव, जहाँ प्रकृति ने अपना सर्वश्रेष्ठ रचनात्मकता से काम किया है। इस ब्लॉग में हम एक कविता के माध्यम से पहाड़ी गाँव की सुंदरता, संस्कृति, और वहां की जीवनशैली को साझा करेंगे।
कविता: पहाड़ी गाँव
पहाड़ी गाँव, प्रकृति का आवरण ओढे,
सर्वत्र हरियाली ही हरियाली,
प्रदूषण से कोसों दूर,
कृषक हैं जिसके माली।
पक्षियों के विचरते झुण्ड,
धारे का पवित्र पानी,
वृक्षों पर बैठकर,
निकालते सुन्दर वाणी।
घुगती घने वृक्ष के बीच बैठकर,
दिन दोफरी घुर घुर घुराती,
सारी के बीच काम करती,
नवविवाहिता को मैत की याद आती।
सीढीनुमा घुमावदार खेत,
भीमळ और खड़ीक की डाळी,
सरसों के फूलों का पीला रंग,
गेहूं, जौ की हरियाली।
पहाड़ की पठाळ से ढके घर,
पुराणी तिबारी अर् डि़न्डाळि,
चौक में गोरु बाछरु की हल चल,
कहीं सुरक भागती बिराळि।
आज देखने भी नहीं जा पाते,
लेकिन, आगे बढ़ते हैं पाँव,
कल्पना में दिखते हैं प्रवास में,
अपने प्यारे "पहाड़ी गाँव"।
निष्कर्ष
यह कविता हमें याद दिलाती है कि पहाड़ी गाँव केवल एक स्थान नहीं हैं, बल्कि यह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यहाँ की हरियाली, संस्कृति, और जीवनशैली हमें प्राकृतिक सौंदर्य का अहसास कराती है। हमें इन गाँवों की रक्षा और संरक्षण का प्रयास करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसकी सुंदरता का अनुभव कर सकें।
आपके विचार:
आपका पहाड़ी गाँव कैसा है? अपने अनुभव और यादें हमारे साथ साझा करें।
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