झंगोरा खिचड़ी पर एक छोटी सी कविता - A short poem on Jhangora Khichdi

झंगोरा खिचड़ी पर एक छोटी सी कविता

"पहाड़ों का स्वाद, झंगोरा खिचड़ी"

झंगोरा का स्वाद निराला,
पहाड़ी धरती का है ये लाला।
हर कण में छिपी सेहत की रीत,
मिटे भूख, मिले मन को प्रीत।

मूंग दाल संग इसका मेल,
स्वाद और सेहत, दोनों का खेल।
हल्दी, अदरक, मसालों की धारा,
स्वाद में डुबो दे हर निवाला प्यारा।

धनिया की खुशबू, जीरे की झनकार,
हर कौर में जादू, अनोखा उपहार।
घी की बूँदें जब संग में मिल जाएं,
तो दिल भी बस झूमने को आए।

झंगोरा खिचड़ी, पौष्टिक है ये खान,
सादगी में बसी है इसका गान।
प्यारे पहाड़ों का ये तोहफा अमर,
स्वाद में है अद्वितीय, सेहत का समर्पण प्रखर।

झंगोरा खिचड़ी पर कविता

पहाड़ों की माटी की खुशबू है इसमें,
झंगोरा खिचड़ी, सेहत की कसम है इसमें।
धान नहीं, ये है उत्तराखंड का मोती,
हर दाने में छिपी है जीवन की ज्योति।

सादगी में बसा इसका स्वाद निराला,
जीरा-हल्दी संग, सब्जियों का उजाला।
दाल संग मिलकर बनता ये व्यंजन प्यारा,
हर कौर में बसे हैं पहाड़ों के नजारा।

नमक, मसाले का अद्भुत मेल,
घर के आंगन में ये फैलाए अपना खेल।
सर्द हवाओं में गर्मी का एहसास,
झंगोरा खिचड़ी से मिटे भूख का प्यास।

ग्लूटेन से रहित, हर दिल को भाए,
स्वास्थ्य के पथ पर ये हमें ले जाए।
बच्चों से बूढ़ों तक सबको भाए,
झंगोरा खिचड़ी, हर थाली सजाए।

तो चलो, इसे पकाओ, स्वाद से भर लो जीवन,
उत्तराखंड की धरोहर, ये खिचड़ी है अमूल्य रत्न।
खुशबू, सेहत और प्यार से सजी थाली,
झंगोरा खिचड़ी में बसी है पहाड़ों की कहानी।

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