माता लक्ष्मी की उत्पत्ति और उनके विभिन्न रूपों की कथा - Story of Origin of Goddess Lakshmi and her Different Forms
माता लक्ष्मी की उत्पत्ति और उनके विभिन्न रूपों की कथा
माता लक्ष्मी की उत्पत्ति को लेकर विभिन्न पुराणों में भिन्न-भिन्न कथाएं मिलती हैं, लेकिन सबसे प्रचलित कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार, जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तब लक्ष्मी जी अन्य रत्नों के साथ प्रकट हुईं। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार, माता लक्ष्मी ऋषि भृगु और उनकी पत्नी ख्याति की पुत्री हैं।

समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी की उत्पत्ति
समुद्र मंथन से कुल 14 रत्नों का उदय हुआ था, जिनमें से एक रत्न महालक्ष्मी भी थीं। महालक्ष्मी के प्रकट होते ही देवताओं और असुरों के बीच यह तय हुआ कि वे भगवान विष्णु को समर्पित की जाएंगी, क्योंकि विष्णु ही जगत के पालनकर्ता हैं। इस प्रकार लक्ष्मी का विवाह विष्णु से हुआ और वे क्षीरसागर में कमल पर निवास करने लगीं।
भृगु ऋषि की पुत्री के रूप में लक्ष्मी
एक अन्य कथा के अनुसार, लक्ष्मी जी ऋषि भृगु और ख्याति की पुत्री थीं। महर्षि भृगु विष्णु भगवान के श्वसुर थे और महालक्ष्मी को विष्णुप्रिया भी कहा जाता है।
लक्ष्मी के दो प्रमुख रूप
माता लक्ष्मी के दो प्रमुख रूप हैं:
- श्रीरूप – इस रूप में वे कमल पर विराजमान होती हैं।
- लक्ष्मी रूप – इस रूप में वे भगवान विष्णु के साथ रहती हैं।
महाभारत के अनुसार, लक्ष्मी के दो रूप और हैं:
- विष्णुपत्नी लक्ष्मी
- राज्यलक्ष्मी
इनके अलावा, लक्ष्मी के दो और रूप माने गए हैं:
- भूदेवी – जो धरती की देवी हैं।
- श्रीदेवी – जो स्वर्ग की देवी मानी जाती हैं।
अष्टलक्ष्मी: लक्ष्मी के आठ रूप
लक्ष्मी जी के आठ विशेष रूपों को अष्टलक्ष्मी कहा जाता है। ये हैं:
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- आदिलक्ष्मी – आदिशक्ति का रूप।
- धनलक्ष्मी – धन की देवी।
- धान्यलक्ष्मी – कृषि और अन्न की देवी।
- गजलक्ष्मी – हाथियों के साथ विराजमान।
- संतानलक्ष्मी – संतान सुख की देवी।
- वीरलक्ष्मी – साहस और वीरता की देवी।
- विजयलक्ष्मी – विजय की देवी।
- विद्यालक्ष्मी – विद्या और ज्ञान की देवी।
लक्ष्मी पूजा और व्रत
माता लक्ष्मी की पूजा मुख्यतः दीपावली के दिन होती है, जब उन्हें घर में धन, समृद्धि और सुख की देवी के रूप में पूजते हैं। लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त करने के लिए लक्ष्मी चालीसा और लक्ष्मी आरती का पाठ किया जाता है। उनके बीज मंत्र के रूप में 'ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नम:' का जाप किया जाता है।
माता लक्ष्मी का विवाह
माता लक्ष्मी का विवाह भगवान विष्णु से हुआ था, और इसके पीछे भी एक रोचक कथा है। जब लक्ष्मीजी ने स्वयंवर रखा, तब नारद मुनि भी उनसे विवाह करना चाहते थे, लेकिन लक्ष्मी ने अपने हृदय में विष्णु जी को पहले ही अपना पति स्वीकार कर लिया था। नारद मुनि ने विष्णु भगवान से वरदान मांगा, परंतु विष्णु जी ने नारद को वानर रूप दे दिया, और लक्ष्मीजी ने विष्णु को ही अपना पति चुना।
समुद्र मंथन और लक्ष्मी की उत्पत्ति
समुद्र मंथन से 14 रत्नों की उत्पत्ति हुई, जिनमें से महालक्ष्मी, अमृत, ऐरावत हाथी, उच्चै:श्रवा घोड़ा, पारिजात वृक्ष, धन्वंतरि वैद्य, और अंततः अमृत कलश निकले। लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी कहा जाता है, और वे अपने चार हाथों से भक्तों पर आशीर्वाद की वर्षा करती हैं।
माता लक्ष्मी के प्रिय भोग
माता लक्ष्मी को मखाना, सिंघाड़ा, बताशे, हलुआ, खीर और अनार अत्यंत प्रिय हैं। उनकी पूजा में सफेद और पीले रंग के मिष्ठान्न अर्पित किए जाते हैं। दीपावली पर विशेष रूप से लक्ष्मी का स्वागत घरों में दीप जलाकर किया जाता है।
माता लक्ष्मी के प्रमुख मंदिर
भारत में माता लक्ष्मी के कई प्रमुख मंदिर हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- महालक्ष्मी मंदिर, मुंबई
- अष्टलक्ष्मी मंदिर, चेन्नई
- पद्मावती मंदिर, तिरुपति
- लक्ष्मीनारायण मंदिर, दिल्ली
निष्कर्ष
माता लक्ष्मी धन, वैभव और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। उनका हर रूप भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि लाता है। चाहे वे समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई हों या ऋषि भृगु की पुत्री हों, उनका महत्व भारतीय संस्कृति में अति विशेष है। उनकी पूजा से घर में धन और वैभव का वास होता है।
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