अल्मोड़ा: सालम के वीरों ने पत्थरों से किया ब्रिटिश फौज की तोपों का मुकाबला (Almora: Salam heroes fight British army guns with stones)
अल्मोड़ा: सालम के वीरों ने पत्थरों से किया ब्रिटिश फौज की तोपों का मुकाबला
25 अगस्त 1942 को अल्मोड़ा जिले के सालम गांव में स्वतंत्रता संग्राम का वह ऐतिहासिक अध्याय लिखा गया, जिसमें निहत्थे क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सेना की तोपों और बंदूकों का सामना केवल पत्थरों से किया। सालम के वीर नर सिंह धानक और टीका सिंह कन्याल जैसे सपूतों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर बलिदान की अमर गाथा रची।
सालम क्रांति की पृष्ठभूमि
महात्मा गांधी के "करो या मरो" के आह्वान से प्रेरित होकर, 9 अगस्त 1942 को पूरे देश में भारत छोड़ो आंदोलन की लहर दौड़ पड़ी। अल्मोड़ा जिले के सालम क्षेत्र में भी इस आंदोलन की चिंगारी भड़क उठी।
- 1919: सालम क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानी राम सिंह धौनी इलाहाबाद से बीए की पढ़ाई पूरी कर वापस लौटे और क्षेत्र में आजादी के संघर्ष की नींव रखी।
- 1921: सल्ट क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसका नेतृत्व पंडित पुरुषोत्तम उपाध्याय और लक्ष्मण सिंह अधिकारी ने किया।
25 अगस्त 1942: सालम का बलिदान दिवस
- घटना का आरंभ:
23 अगस्त को सालम के नौगांव में क्रांतिकारी एकत्र होकर अंग्रेजी शासन से लोहा लेने की योजना बना रहे थे। अंग्रेजों ने सभा पर धावा बोल दिया और कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। - 25 अगस्त:
इस घटना से क्रोधित हजारों क्रांतिकारी धामदेव के टीले पर जुटे। निहत्थे क्रांतिकारियों ने "भारत माता की जय" के नारों के साथ अंग्रेजी सेना का सामना किया।
वीरों का अदम्य साहस:
- नर सिंह धानक:
- पत्थरों से अंग्रेजी कमांडर पर हमला किया।
- गोलियों की बौछार से वीरगति को प्राप्त हुए।
- टीका सिंह कन्याल:
- अंग्रेजों की गोलीबारी में घायल होकर इलाज के दौरान शहीद हुए।
सालम क्रांति के अन्य वीर योद्धा
- मर्चराम:
- सरकारी कर्मचारियों की बंदूक छीनने के आरोप में साढ़े चार साल जेल की सजा।
- 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान नेतृत्व किया।
- 1994 में 81 वर्ष की आयु में निधन।
- अन्य क्रांतिकारी:
- प्रताप सिंह बोरा, मर्दू राम, डिकर सिंह धानक, उत्तम सिंह बिष्ट, राम सिंह आजाद, और केशर सिंह जैसे योद्धाओं ने भी जेल की यातनाएं सही।
सालम क्रांति का प्रभाव
सालम क्रांति ने पूरे क्षेत्र में आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा दी।
- 1921 से संघर्ष:
सल्ट और खुमाड़ क्षेत्र में आंदोलन के बीज पहले ही बोए जा चुके थे। - आत्मबलिदान की मिसाल:
सालम के नायकों ने संघर्ष और बलिदान से यह सिद्ध किया कि देशप्रेम की भावना हर विपत्ति से बड़ी है।
शहीदों के गांवों की स्थिति
आज, चौकुना, कांडे, और दाड़िमी जैसे शहीदों के गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
- हर साल 25 अगस्त को सालम क्रांति दिवस मनाया जाता है, लेकिन शहीदों के गांव अब भी विकास की बाट जोह रहे हैं।
सालम क्रांति का संदेश
नर सिंह धानक, टीका सिंह कन्याल, और मर्चराम जैसे वीरों का बलिदान हमें यह सिखाता है कि संघर्ष और देशभक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं। उनके बलिदान हमें प्रेरित करते हैं कि अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए हमेशा दृढ़ रहना चाहिए।
समाप्ति
सालम क्रांति का यह ऐतिहासिक अध्याय भारत के स्वतंत्रता संग्राम का स्वर्णिम पृष्ठ है। शहीदों की कुर्बानी हमें हर पल यह याद दिलाती है कि आजादी का मूल्य बहुत बड़ा है। इन वीरों के बलिदान को नमन!
जय हिंद!
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