कुमाऊँनी शेर: पहाड़ी जीवन का दर्शन (Kumaoni Lion: The Philosophy of Mountain Life)

कुमाऊँनी शेर: पहाड़ी जीवन का दर्शन

कुमाऊँनी भाषा में लिखे ये शेर पहाड़ी जीवन की असलियत, संघर्ष और आत्मसम्मान का प्रतीक हैं। ये शेर न केवल जीवन की कठिनाइयों को बयाँ करते हैं, बल्कि पहाड़ों में बसने वाले लोगों की मजबूत इच्छाशक्ति और जुझारूपन को भी दर्शाते हैं।

नातू 'हां' करछै
ना तू 'हां' करछै ना तू 
'ना' करछै अधपगल है 
गोयू मैं आघिन पत्त ने के करछै ।।

1. ठण्ड का अहसास

खुट उदेगे फैलूंण चैनी ज्यदु चद्दर छू।
नंगेड़े खुटो को ठण्ड बहुत लागू।।

पहाड़ों में ठंड का अनुभव इतना गहरा होता है कि यहाँ नंगे पाँव चलने वालों को इसकी सर्दी झेलनी पड़ती है। कवि इस शेर में उन चुनौतियों की ओर इशारा कर रहे हैं, जिनका सामना पहाड़ी जीवन में अक्सर करना पड़ता है।

2. संघर्ष का रास्ता

मैस पाख मी चढ़नी तो आपुण धुरी मी नि चड़न चे।
चड़न तो आसान हूँ हुलेरण फगे भोते दिक्कत है जे।।

यह शेर उस जीवन संघर्ष की बात करता है, जहाँ हर छोटी सी उपलब्धि भी कठिन होती है। पहाड़ों की चोटी पर चढ़ना जीवन में ऊँचाइयाँ छूने के समान है, लेकिन रास्ता आसान नहीं होता, बहुत सी चुनौतियाँ सामने खड़ी होती हैं।

3. दर्द की गहराई

पहाड़ जय्दू भाल देखनि भतेर उदुके दर्द छिपे रूनी।
आपुण पीड़ दर्द ऊ फिर गाड़ गधेरो कुणी बतनुहि।।

पहाड़ों की ऊंचाईयों को देखकर लोग समझते हैं कि यहाँ का जीवन सुंदर और सरल है, लेकिन इसके पीछे छिपी दर्द भरी कहानियाँ अनसुनी रह जाती हैं। इस शेर में पहाड़ों के अंदर छिपे संघर्ष और भावनाओं को बड़ी ही सजीवता से प्रस्तुत किया गया है।

4. पहाड़ों की गहराई

जो पहाड़ ज्यदु ठुल हूँ विक गहराई ले उदेगु हूँ।
आसमां हू बात करछो पाताल तक टिकी हूँ।।

यह शेर पहाड़ों की महानता और गहराई को दर्शाता है। पहाड़ अपनी ऊँचाइयों में आकाश से बात करते हैं और अपनी गहराई में धरती की गहराइयों तक पहुँचते हैं। यह जीवन का प्रतीक है, जहाँ इंसान की सोच और मेहनत दोनों को उसकी ऊंचाइयों तक ले जाती हैं।

5. पहाड़ी स्वाभिमान

नि छेड़ ला -सीध साध हुनि पहाड़ी शेणी मैस।
छेड़ी गया फिर भैंस की तीस वाई उनेर रीस।।

यह शेर पहाड़ी लोगों की स्वाभिमानी प्रकृति को दर्शाता है। उन्हें जब तक शांत रखा जाए, वे किसी को कष्ट नहीं पहुँचाते, लेकिन अगर कोई उन्हें छेड़ता है, तो वे अपने स्वाभिमान के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार होते हैं। यह शेर पहाड़ी लोगों की ताकत और आत्मसम्मान को इंगित करता है।

6.  गाँव को गाँव ही रहने दो साहब ।
गाँव को गाँव ही रहने दो साहब । क्यों शहर बनाने में तुले हुवे हो.
गाँव में रहोगे तो माता-पिता के नाम से जाने जाओगे ,
और शहर में रहोगे तो.... मकान नंबर से पहचाने जायगें
देवभूमि उत्तराखंड।

निष्कर्ष

कुमाऊँनी शेरों की यह रचना पहाड़ी जीवन के विभिन्न पहलुओं को खूबसूरती से पेश करती है। यहाँ ठण्ड का अहसास, संघर्ष का रास्ता, दर्द की गहराई, और स्वाभिमान सभी को गहराई से उकेरा गया है। ये शेर न केवल कुमाऊँनी भाषा की महानता को दिखाते हैं, बल्कि उत्तराखंड के जीवन की सच्ची तस्वीर भी पेश करते हैं।


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Jaidev Bhumi

उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर, पौराणिक कथाओं और प्राकृतिक सुंदरता का अनोखा संग्रह

Jaidev Bhumi

उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ों, सांस्कृतिक धरोहर, और धार्मिक स्थलों की यात्रा पर आपका स्वागत है।

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