महेन्द्र सिंह बागड़ी: आज़ाद हिंद फौज के अमर सपूत (Mahendra Singh Bagdi: The immortal son of the Azad Hind Fauj.)
महेन्द्र सिंह बागड़ी: आज़ाद हिंद फौज के अमर सपूत
"मैं खुद कायर अंग्रेजों के सामने हथियार डालने का ख्याल भी नहीं कर सकता। मैंने अंतिम समय तक लड़ने का निर्णय किया है।" – यह साहसिक वचन थे कैप्टन महेन्द्र सिंह बागड़ी के, जिन्होंने आज़ाद हिंद फौज में अद्वितीय वीरता का परिचय दिया।
प्रारंभिक जीवन और सेना में प्रवेश
महेन्द्र सिंह बागड़ी का जन्म 1886 ई. में उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले की पट्टी मल्ला दानपुर के बगड़ गांव में हुआ। उनके पिता का नाम धन सिंह बागड़ी था। युवावस्था में ही उन्होंने देशसेवा का मार्ग चुना और 1914 में लैंसडौन स्थित गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हो गए। यहां उन्होंने अपनी लगन और कौशल से 2/18वीं रॉयल गढ़वाल राइफल्स में सूबेदार के पद तक पदोन्नति प्राप्त की।
आजाद हिंद फौज से जुड़ाव
जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में मलाया में आज़ाद हिंद फौज का गठन हुआ, तो महेन्द्र सिंह बागड़ी इसमें शामिल हो गए। उन्हें सेकंड इंफेंट्री रेजिमेंट की तीसरी बटालियन का कमांडर नियुक्त किया गया। उनकी नेतृत्व क्षमता और साहसिक व्यक्तित्व ने उन्हें फौज में विशेष पहचान दिलाई।
बर्मा में अद्वितीय वीरता
फरवरी 1945 में कैप्टन बागड़ी को बर्मा के पोपा क्षेत्र में शत्रु-सेना की बाढ़ को रोकने का आदेश मिला। ब्रिटिश, अमेरिकी, और ब्रिटिश-भारतीय सेनाएं असम के रास्ते बर्मा में प्रवेश कर रही थीं। इस कठिन परिस्थिति में, बागड़ी ने अपनी बटालियन को संगठित कर असाधारण वीरता दिखाई।
काब्यू की लड़ाई
30 मार्च 1945 को काब्यू नामक स्थान पर उन्होंने अपने सैनिकों के साथ दुश्मनों का जमकर मुकाबला किया।
आखिरी युद्ध और बलिदान
22 अप्रैल 1945 को टौंडविंगी के पास, दुश्मन के टैंकों ने उनकी बटालियन को घेर लिया। इस स्थिति में, बागड़ी ने आत्मसमर्पण की जगह वीरता से लड़ने का निर्णय लिया। अपने सैनिकों को प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने कहा:
"हमें या तो लज्जाजनक आत्मसमर्पण करना चाहिए या एक सच्चे सैनिक की भांति लड़ते-लड़ते जान देनी चाहिए।"
इसके बाद, उन्होंने अपने 100 सैनिकों के साथ शत्रु पर आक्रमण किया। हाथ में हथगोले और ज्वलनशील बोतलें लेकर उन्होंने दुश्मन के टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों पर हमला किया। इस भीषण संघर्ष में, बागड़ी को गोली लगी, और वे वीरगति को प्राप्त हुए।
अंग्रेजों की प्रतिक्रिया
उनकी वीरता देखकर अंग्रेज अधिकारी तक स्तब्ध रह गए। मेजर-जनरल शाहनवाज खान ने कहा:
"अंग्रेज यह नहीं समझ सकते थे कि भारत के सच्चे सपूत रणक्षेत्र में मारे जा सकते हैं, लेकिन झुके नहीं जा सकते।"
महेन्द्र सिंह बागड़ी का प्रेरणादायक योगदान
कैप्टन बागड़ी का बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर है। उन्होंने यह दिखाया कि भारत के सच्चे सपूत कभी भी हार स्वीकार नहीं कर सकते। उनकी अद्वितीय वीरता और देशभक्ति हमेशा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
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Poem:
वीर बागड़ी की गाथा कहे हर पीढ़ी,
सच्चे सपूत, जो रहे सदा अडिग और सीधी।
रणभूमि में दिखाया साहस महान,
भारत माता के सपूत का सदा करें सम्मान।
FQCs (Frequently Asked Questions)
महेन्द्र सिंह बागड़ी: आज़ाद हिंद फौज के अमर सपूत
1. महेन्द्र सिंह बागड़ी कौन थे?
महेन्द्र सिंह बागड़ी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज में सेवा की। वे अपनी वीरता और देशभक्ति के लिए जाने जाते हैं।
2. महेन्द्र सिंह बागड़ी का जन्म कब और कहां हुआ?
उनका जन्म 1886 ई. में उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के बगड़ गांव में हुआ था।
3. महेन्द्र सिंह बागड़ी का सेना में योगदान क्या था?
उन्होंने 1914 में गढ़वाल राइफल्स में शामिल होकर अपनी सैन्य सेवा की शुरुआत की। वे 2/18वीं रॉयल गढ़वाल राइफल्स में सूबेदार बने और बाद में आज़ाद हिंद फौज में शामिल होकर सेकंड इंफेंट्री रेजिमेंट की तीसरी बटालियन के कमांडर बने।
4. महेन्द्र सिंह बागड़ी का आज़ाद हिंद फौज से कैसे जुड़ाव हुआ?
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में मलाया में आज़ाद हिंद फौज का गठन हुआ, जिसमें महेन्द्र सिंह बागड़ी ने जुड़कर देश के लिए बलिदान देने का संकल्प लिया।
5. महेन्द्र सिंह बागड़ी ने किस युद्ध में वीरता दिखाई?
उन्होंने फरवरी 1945 में बर्मा के पोपा क्षेत्र और 30 मार्च 1945 को काब्यू के युद्ध में असाधारण वीरता दिखाई। उनका आखिरी युद्ध 22 अप्रैल 1945 को टौंडविंगी के पास लड़ा गया।
6. महेन्द्र सिंह बागड़ी का अंतिम बलिदान कैसे हुआ?
जब उनकी बटालियन को दुश्मन के टैंकों ने घेर लिया, तब उन्होंने आत्मसमर्पण के बजाय लड़ते-लड़ते वीरगति प्राप्त की। उन्होंने अपने सैनिकों को प्रेरित किया और दुश्मन के खिलाफ आखिरी दम तक संघर्ष किया।
7. अंग्रेजों की प्रतिक्रिया क्या थी?
कैप्टन बागड़ी की वीरता देखकर अंग्रेज अधिकारी भी स्तब्ध रह गए। मेजर-जनरल शाहनवाज खान ने कहा कि अंग्रेज समझ नहीं सकते थे कि भारत के सच्चे सपूत मर सकते हैं, लेकिन झुक नहीं सकते।
8. महेन्द्र सिंह बागड़ी का स्वतंत्रता संग्राम में क्या योगदान है?
उन्होंने अपनी अद्वितीय वीरता और देशभक्ति से यह साबित किया कि भारत के सपूत रणभूमि में कभी हार नहीं मानते। उनका बलिदान स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर है।
9. महेन्द्र सिंह बागड़ी का प्रेरणादायक कथन क्या है?
"मैं खुद कायर अंग्रेजों के सामने हथियार डालने का ख्याल भी नहीं कर सकता। मैंने अंतिम समय तक लड़ने का निर्णय किया है।"
10. महेन्द्र सिंह बागड़ी का योगदान आज की पीढ़ी के लिए कैसे प्रेरणा है?
उनकी वीरता और बलिदान आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाते हैं कि सच्चा देशप्रेम कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी कभी हार नहीं मानता।
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