मोहनसिंह मेहता: कुमाऊं के महान स्वतंत्रता सेनानी (Mohansingh Mehta: The great freedom fighter of Kumaon)

मोहनसिंह मेहता: कुमाऊं के महान स्वतंत्रता सेनानी

परिचय

मोहनसिंह मेहता (जन्म: 1897, वजूला ग्राम, अल्मोड़ा, उत्तराखंड) स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी और कुमाऊं कमिश्नरी से जेल जाने वाले पहले स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने न केवल ब्रिटिश अत्याचारों का विरोध किया बल्कि समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
मोहनसिंह मेहता का जन्म कत्यूर घाटी के वजूला गांव में हुआ। उनके पिता श्री दीवानसिंह मेहता थे। प्रारंभिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद उन्होंने अल्मोड़ा के रामजे हाई स्कूल में पढ़ाई की। सन् 1914 में वे तकनीकी शिक्षा के लिए कानपुर विश्वविद्यालय गए, लेकिन एक वर्ष बाद ही उनकी विचारधारा में परिवर्तन हुआ और उन्होंने पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया।

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

  1. कुली बेगार और कुली उतार आंदोलन
    मोहनसिंह मेहता ने कत्यूर क्षेत्र में कुली बेगार प्रथा के खिलाफ व्यापक आंदोलन चलाया। इस प्रथा में ब्रिटिश अधिकारियों के लिए स्थानीय लोगों से जबरन काम करवाया जाता था। उनके नेतृत्व में यह प्रथा समाप्त हुई।

  2. कुमाऊं परिषद में योगदान
    1916 में स्थापित कुमाऊं परिषद की कत्यूर शाखा के सभापति के रूप में मेहता जी ने क्षेत्र में जागरूकता और राष्ट्रीय भावना का संचार किया।

  3. पहली राजनीतिक गिरफ्तारी
    मार्च 1921 में, कुली बेगार आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया। यह कुमाऊं कमिश्नरी की पहली राजनीतिक गिरफ्तारी थी। जेल में रहते हुए उन्होंने पत्र लिखकर जनता को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

समाज सुधार और निर्माण कार्य

  • सन् 1926 में उन्होंने अल्मोड़ा में एक अनाथालय की स्थापना की, जो बाद में शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र में बदल गया।
  • उन्होंने बैजनाथ में ग्राम सुधार समिति का गठन किया, जिसने स्वच्छता, अस्पृश्यता निवारण, और ग्राम विकास पर कार्य किया।
  • बिच्छला कत्यूर में शिशु पालन समिति की स्थापना कर बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण पर जोर दिया।

व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन
1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण मेहता जी को गिरफ्तार कर आठ महीने की सजा और आर्थिक दंड दिया गया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई।

प्रेरणादायक उद्धरण
उनके शब्द:
"स्वराज्य के बिना न अमन होगा, न चैन। स्वराज्य ही हमारे जंगल खोलेगा और पेट की ज्वाला शांत करेगा।"
इन शब्दों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों को प्रेरित किया।

समाप्ति
मोहनसिंह मेहता का जीवन त्याग, संघर्ष और समाजसेवा का प्रतीक है। वे न केवल स्वतंत्रता संग्राम के नायक थे बल्कि समाज सुधार और जन-जागरण के अग्रदूत भी थे। उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।

जय हिंद!

FQCs: मोहनसिंह मेहता: कुमाऊं के महान स्वतंत्रता सेनानी


परिचय

  • नाम: मोहनसिंह मेहता
  • जन्म: 1897, वजूला ग्राम, कत्यूर घाटी, अल्मोड़ा, उत्तराखंड
  • विशेष योगदान: कुमाऊं कमिश्नरी से जेल जाने वाले पहले स्वतंत्रता सेनानी; समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

  • जन्म स्थान: वजूला ग्राम, कत्यूर घाटी, अल्मोड़ा।
  • पिता: श्री दीवानसिंह मेहता।
  • शिक्षा:
    • प्रारंभिक शिक्षा गाँव में।
    • रामजे हाई स्कूल, अल्मोड़ा।
    • 1914 में कानपुर विश्वविद्यालय में तकनीकी शिक्षा।
  • क्रांतिकारी परिवर्तन: 1915 में पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए।

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

कुली बेगार और कुली उतार आंदोलन

  • ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा जबरन काम कराने की प्रथा का विरोध किया।
  • आंदोलन के माध्यम से इस अन्यायपूर्ण प्रथा को समाप्त कराया।

कुमाऊं परिषद में योगदान

  • 1916 में कुमाऊं परिषद की कत्यूर शाखा के सभापति बने।
  • राष्ट्रीय चेतना और जागरूकता फैलाने का कार्य किया।

पहली राजनीतिक गिरफ्तारी

  • सन् 1921:
    • कुली बेगार आंदोलन के लिए गिरफ्तार।
    • कुमाऊं कमिश्नरी की पहली राजनीतिक गिरफ्तारी।
    • जेल से जनता को प्रेरणा देने वाले पत्र लिखे।

समाज सुधार और निर्माण कार्य

  1. अनाथालय और शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र (1926):
    • अल्मोड़ा में स्थापित।
  2. ग्राम सुधार समिति:
    • बैजनाथ में गठन।
    • स्वच्छता, अस्पृश्यता उन्मूलन, और विकास कार्य।
  3. शिशु पालन समिति:
    • बिच्छला कत्यूर में बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण पर जोर।

व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन

  1. 1941 का सत्याग्रह:
    • व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया।
    • आठ महीने की सजा और आर्थिक दंड।
  2. भारत छोड़ो आंदोलन (1942):
    • सक्रिय भूमिका निभाई।

प्रेरणादायक उद्धरण

  • "स्वराज्य के बिना न अमन होगा, न चैन। स्वराज्य ही हमारे जंगल खोलेगा और पेट की ज्वाला शांत करेगा।"
    • इस उद्धरण ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों को प्रेरित किया।

समाप्ति

मोहनसिंह मेहता का जीवन त्याग, संघर्ष और समाजसेवा का प्रतीक है। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि समाज सुधार के क्षेत्र में भी अमिट छाप छोड़ी। उनके कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे।

जय हिंद!

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