पहाड़ी समाज में नारी की भूमिका: त्याग, संघर्ष और समर्पण (The role of women in the hill society: sacrifice, struggle, and dedication.)

पहाड़ी समाज में नारी की भूमिका: त्याग, संघर्ष और समर्पण

पहाड़ी समाज में नारी का जीवन संघर्ष और समर्पण का प्रतीक है। चाहे खेतों में कठिन मेहनत हो, जंगलों से पशुओं के लिए चारा लाना हो, या घर की देखभाल और बच्चों का पालन-पोषण करना, पहाड़ की स्त्रियों का जीवनचक्र इन सभी जिम्मेदारियों से भरा हुआ है। उनकी यह कठिनाइयां तब और बढ़ जाती हैं जब अधिकांश पुरुष रोजगार के लिए मैदानों में चले जाते हैं। परिवार से दूर रहकर जीवनयापन की इस परंपरा ने पहाड़ की महिलाओं को न केवल घर बल्कि समाज का स्तंभ बना दिया है।

पहाड़ी लोककथा: रामी बौराणी की अमर गाथा

ऐसी ही एक कथा है रामी बौराणी की, जो पहाड़ी समाज में नारी की पतिव्रता, त्याग और समर्पण का प्रतीक है।

कहानी का सारांश

रामी अपने पति बीरू के साथ एक गांव में रहती थी। बीरू सीमा पर देश की रक्षा में गया हुआ था, और रामी अपने सास के साथ घर संभाल रही थी। 12 साल बीत गए, लेकिन बीरू का कोई समाचार नहीं आया। इन वर्षों में रामी ने खेतों और जंगलों में दिन-रात मेहनत की और पति के लौटने का इंतजार किया।

बारह वर्षों के बाद बीरू एक जोगी का वेश धारण कर अपने गांव लौटा। उसने अपनी पत्नी के पतिव्रत की परीक्षा लेने के लिए रामी से कई सवाल पूछे। रामी ने उसका सामना साहस और गरिमा के साथ किया। जोगी रूपी बीरू ने रामी से कहा:

"बाटा गौड़ाई कख तेरो गौं च?
बोल बौराणी क्या तेरो नौं च?"

जवाब में रामी ने अपने पति के इंतजार का दर्द व्यक्त करते हुए कहा:

"रौतु की बेटी छौं, रामी नौं छ,
सेटु की बहू, पाली गौं छ।
मेरा स्वामी न मैं छोड़्यों पर,
निर्दयी ह्वैगिन मैंई फर।"

जोगी के रूप में पति की परीक्षा में खरी उतरने के बाद, रामी का पतिव्रत, समर्पण और त्याग सामने आया। अंत में, बीरू ने अपना भेष त्यागकर अपनी सच्चाई बताई। यह जानकर रामी और उसकी सास की खुशी का ठिकाना न रहा।


नारी की भूमिका का महत्व

रामी की यह कथा हर पहाड़ी स्त्री के संघर्ष और समर्पण को रेखांकित करती है। पहाड़ की नारी घर की रीढ़ है। उसका जीवन त्याग, धैर्य और साहस का उदाहरण है। उनके बलिदानों ने पहाड़ी समाज को सुदृढ़ और संस्कारित बनाया है।

लोकगीतों में नारी का योगदान

रामी की कहानी को गीतों और कविताओं के माध्यम से अमर बनाया गया। बलदेव प्रसाद "दीन" की लिखी पंक्तियाँ इसे और जीवंत करती हैं:

"माळु का पात मा धरि भात,
मैं तेरा भात नि लंदु हाथ।
रामी की स्वामी की थाळी मांज,
भात दे रोटी मैं खौलू आज।"

नारी का महत्व और समाज को संदेश

यह कथा यह संदेश देती है कि नारी के संघर्ष और समर्पण को पहचानना और उसका सम्मान करना हर समाज का दायित्व है। पहाड़ की इन महिलाओं का जीवन दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके बलिदानों ने न केवल परिवार को बल्कि पूरे समाज को मजबूत बनाया है।

नारी को समर्पित कविता

"नारी है शक्ति का स्वरूप,
त्याग और ममता का रूप।
पर्वत सी उसकी सहनशीलता,
समाज की रीढ़ उसकी प्रबलता।"


निष्कर्ष

पहाड़ी समाज में नारी का योगदान अविस्मरणीय है। उनकी कहानी केवल उनके संघर्ष की नहीं, बल्कि उनके साहस, समर्पण और प्रेम की भी है। रामी बौराणी जैसे उदाहरण हमें यह सिखाते हैं कि नारी का सम्मान करना ही सच्चा समाज निर्माण है।

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