सूर्य देव की उत्पत्ति का रहस्य /The secret of the origin of the Sun God

सूर्य देव की उत्पत्ति का रहस्य: वैदिक ज्ञान और विज्ञान का संगम

सूर्य, सृष्टि के आधार और ऊर्जा का स्त्रोत हैं। विज्ञान के दृष्टिकोण से देखें तो सूर्य के बिना जीवन असंभव है। वहीं, वैदिक काल से सूर्य देव की पूजा होती आई है। वेदों और शास्त्रों में सूर्य की महिमा का उल्लेख है। लेकिन सवाल उठता है कि सूर्य की उत्पत्ति कैसे हुई? शास्त्रों में इसका रहस्य विस्तार से वर्णित है।


ब्रह्मांड में सूर्य की उत्पत्ति

शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा जी के मुख से "ऊँ" शब्द का उच्चारण हुआ, जो सूर्य के सूक्ष्म स्वरूप का आधार बना। इसके बाद "भू:", "भुव:", और "स्व:" शब्द उत्पन्न हुए, जो "ऊँ" में विलीन होकर सूर्य के स्थूल स्वरूप का निर्माण करते हैं। सृष्टि के प्रारंभ में प्रकट होने के कारण उन्हें आदित्य कहा गया।


सूर्य का जन्म: एक पौराणिक कथा

ब्रह्मा जी के पुत्र मरिचि और उनके पुत्र महर्षि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री अदिति से हुआ। अदिति के गर्भ से तेजस्वी बालक के रूप में सूर्य का जन्म हुआ। उन्हें आदित्य नाम दिया गया क्योंकि वह अदिति के पुत्र थे। सूर्य ने असुरों का नाश कर देवताओं की रक्षा की।


सूर्य देव का गोत्र और जाति

शास्त्रों के अनुसार, सूर्य का गोत्र कश्यप और जाति ब्राह्मण मानी जाती है। उनकी जन्मस्थली कलिंग देश है।


सूर्य देव का स्वरूप और रथ

सूर्य का रथ अद्भुत है:

  • रथ में केवल एक पहिया है, जिसे संवत्सर कहा जाता है।
  • इसे सात रंगों वाले घोड़े खींचते हैं।
  • सारथी अरुण हैं, जो लंगड़े हैं।
  • रथ की लगाम के स्थान पर सांपों की रस्सियां हैं।
    श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, रथ के पहिये में 12 मास रूपी आरे, 6 ऋतु रूपी नेमिषा और 3 चौमासे रूपी नाभि होती हैं।

सूर्य की पत्नियां और संतान

सूर्य देव की दो पत्नियां हैं:

  1. संज्ञा (विश्वकर्मा की पुत्री)
    • संतानें: वैवस्वत मनु, यम, यमुना, अश्विनी कुमार द्वय, और रैवन्त।
  2. छाया (संज्ञा का रूप)
    • संतानें: शनि, तपती, विष्टि, और सावर्णि मनु।

सूर्य देव का बीज मंत्र और पूजा

सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने के लिए निम्न मंत्रों का जाप करें:

  • बीज मंत्र: "ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः"
  • सामान्य मंत्र: "ऊँ घृणि सूर्याय नमः"

सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए:

  • गुड़, गुग्गल, लाल चंदन, अर्क की समिधा और कमल के फूल अर्पित करें।
  • प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य दें और रविवार का व्रत करें।

सूर्य की महिमा और ऊर्जा का स्त्रोत

सूर्य की महादशा 6 वर्ष की होती है। उनका प्रिय रत्न माणिक्य है। सूर्य का धातु सोना और तांबा है। सूर्य के बिना जीवन संभव नहीं है, और इसलिए वे सृष्टि के सबसे महत्वपूर्ण देवता माने जाते हैं।


जय सूर्य देव भगवान की!
ऊँ घृणि सूर्याय नमः।

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