जय माँ नंदा देवी: नंदा देवी राजजात यात्रा – 20 पड़ावों का वर्णन (Jai Maa Nanda Devi: Nanda Devi Rajjat Yatra – 20 Stages of Pilgrimage)
जय माँ नंदा देवी: नंदा देवी राजजात यात्रा – 20 पड़ावों का वर्णन
माँ नंदा देवी राजजात यात्रा की पौराणिक गाथा
माँ नंदा देवी की राजजात यात्रा उत्तराखंड की सबसे पवित्र और ऐतिहासिक धार्मिक यात्राओं में से एक है। यह यात्रा माँ नंदा को उनके ससुराल कैलाश भेजने की परंपरा है। लोक कथाओं और इतिहास में माँ नंदा को गढ़वाल और कुमाऊँ की इष्ट देवी माना गया है। माँ नंदा देवी को राजराजेश्वरी कहा जाता है, और उन्हें शिव की बहन अथवा स्वरूप भी माना गया है।
राजजात यात्रा करीब 280 किलोमीटर की कठिन और रोमांचक यात्रा है, जिसमें श्रद्धालु दुर्गम पहाड़ों, घने जंगलों, पथरीले रास्तों और बर्फीले क्षेत्रों को पार करते हैं। यह यात्रा 12 वर्ष के अंतराल में होती है और इसमें चौसिंग्या खाडू (चार सींग वाला भेड़) विशेष आकर्षण का केंद्र होता है।
नंदा देवी राजजात के 20 पड़ाव
- ईड़ाबधाणीयात्रा का पहला पड़ाव ईड़ाबधाणी है। ढोल-दमाऊं की ध्वनि के बीच माँ नंदा देवी का भव्य स्वागत होता है।
- नौटीयात्रा का दूसरा पड़ाव नौटी गाँव है, जहाँ मंदिर में माँ नंदा का जागरण और विशेष पूजा होती है।
- कांसुवातीसरे पड़ाव कांसुवा में राजवंशी कुंवर भव्य स्वागत करते हैं। यहाँ भराड़ी देवी और कैलापीर देवता के मंदिरों में पूजा होती है।
- सेमसेम गाँव यात्रा का चौथा पड़ाव है। यहाँ गैरोली और चमोला गाँव की छंतोलियाँ यात्रा में शामिल होती हैं।
- कोटीपांचवे पड़ाव कोटी में देवी के लिए विशेष प्रार्थनाएँ होती हैं। धारकोट, घड़ियाल और सिमतोली से होकर यहाँ पहुंचते हैं।
- भगोतीयह माँ नंदा के मायके का अंतिम पड़ाव है। यहाँ केदारु देवता की छंतोली यात्रा का हिस्सा बनती है।
- कुलसारीकुलसारी ससुराल का पहला पड़ाव है। यहाँ माँ नंदा की पूजा अमावस्या के दिन होती है।
- चेपड्यूंयहाँ भव्य मेला लगता है। बुटोला थोकदारों का यह गाँव माँ नंदा की भक्ति के लिए प्रसिद्ध है।
- नंदकेशरीनौवां पड़ाव नंदकेशरी में गढ़वाल और कुमाऊँ की कई छंतोलियाँ मिलती हैं।
- फल्दियागांवयहाँ माँ नंदा की विशेष आरती होती है। यह पड़ाव भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण ठहराव है।
- मुंदोलीयहाँ माँ नंदा का स्वागत पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ किया जाता है।
- वाणवाण गाँव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
- गैरोलीपातलतेरहवां पड़ाव गैरोलीपातल का है, जो प्रकृति की अनुपम छटा से भरा हुआ है।
- वैदनीचौदहवां पड़ाव वैदनी में माँ नंदा का विशेष पूजन होता है। यहाँ से यात्रा और कठिन हो जाती है।
- पातरनचौंणियांयह स्थान यात्रा का पन्द्रहवां पड़ाव है। भक्त यहाँ माँ नंदा के दर्शन हेतु विश्राम करते हैं।
- शिला समुद्रसोलहवां पड़ाव शिला समुद्र दुर्गम चढ़ाई के बाद आता है।
- चंदनियाघाटसत्रहवां पड़ाव चंदनियाघाट, प्रकृति प्रेमियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है।
- सुतोलअठारहवां पड़ाव सुतोल गाँव में माँ नंदा देवी के भव्य पूजन के साथ यात्रा की थकान मिटती है।
- घाटउन्नीसवां पड़ाव घाट, जहाँ श्रद्धालु माँ नंदा को विशेष भेंट अर्पित करते हैं।
- वापसी – नौटी (नंदप्रयाग)यात्रा के समापन पर माँ नंदा को पुनः नौटी लाया जाता है। इस अंतिम पड़ाव में विशाल आयोजन और विशेष पूजा होती है।
नंदा देवी राजजात यात्रा की विशेषता
- चौसिंग्या खाडू (चार सींग वाला भेड़): यात्रा का नेतृत्व करता है।
- 280 किलोमीटर की कठिन यात्रा: 20 दिन और 20 पड़ावों में पूरी होती है।
- सांस्कृतिक एकता: गढ़वाल और कुमाऊँ के लोग मिलकर माँ नंदा की इस ऐतिहासिक यात्रा में शामिल होते हैं।
जय माँ नंदा देवी!
FQCs (Frequently Asked Questions with Content)
1. नंदा देवी राजजात यात्रा क्या है?
उत्तर:
नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड की एक ऐतिहासिक और धार्मिक यात्रा है, जिसमें मां नंदा को उनके ससुराल कैलाश पर्वत भेजा जाता है। यह यात्रा हर 12 या उससे अधिक वर्षों में होती है और इसे एशिया की सबसे लंबी पैदल यात्रा माना जाता है।
2. मां नंदा देवी को कौन माना जाता है?
उत्तर:
मां नंदा देवी को भगवान शिव की पत्नी और पार्वती का रूप माना जाता है। गढ़वाल-कुमाऊं के लोग उन्हें "राजराजेश्वरी" के नाम से भी पूजते हैं।
3. नंदा देवी राजजात यात्रा कितनी लंबी होती है?
उत्तर:
यह यात्रा लगभग 280 किलोमीटर की दूरी को कवर करती है। यह यात्रा 20 दिनों में पूरी होती है और इसमें 20 प्रमुख पड़ाव आते हैं।
4. नंदा देवी राजजात के कितने पड़ाव हैं?
उत्तर:
राजजात यात्रा के 20 पड़ाव हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- ईड़ाबधाणी
- नौटी
- कांसुवा
- सेम
- कोटी
- भगोती
- कुलसारी
- चेपड्यूं
- नंदकेशरी
- फल्दियागांव
- मुंदोली
- वाण
- गैरोलीपातल
- वैदनी
- पातरनचौंणियां
- शिला समुद्र
- चंदनियाघाट
- सुतोल
- घाट
- वापसी नौटी
5. चौसिंग्या खाडू क्या है और इसका क्या महत्व है?
उत्तर:
चौसिंग्या खाडू एक चार सींगों वाला विशेष भेड़ है, जो मां नंदा देवी की यात्रा में शामिल होता है। श्रद्धालु इसकी पीठ पर देवी की भेंट और श्रृंगार सामग्री रखते हैं। यह खाडू होमकुंड पहुंचने के बाद हिमालय की ओर प्रस्थान करता है, जहां माना जाता है कि वह कैलाश पहुंचकर लुप्त हो जाता है।
6. राजजात यात्रा की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
माना जाता है कि 7वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा शालिपाल ने इस परंपरा की शुरुआत की। इसके बाद राजा कनकपाल ने इसे और भव्य रूप दिया।
7. नंदा देवी का मायका और ससुराल कहां माना जाता है?
उत्तर:
चमोली जिले का पट्टी चांदपुर और श्रीगुरु क्षेत्र मां नंदा का मायका माना जाता है, जबकि बधाण क्षेत्र (नंदाक क्षेत्र) को उनका ससुराल कहा जाता है।
8. राजजात यात्रा का विशेष महत्व क्या है?
उत्तर:
राजजात यात्रा धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है। यह यात्रा नंदा देवी की विदाई का प्रतीक है और गढ़वाल-कुमाऊं के लोगों की आस्था का केंद्र है। साथ ही यह सांस्कृतिक एकता को भी दर्शाती है।
9. वार्षिक नंदा देवी यात्रा और राजजात यात्रा में क्या अंतर है?
उत्तर:
- वार्षिक नंदा देवी यात्रा: यह प्रतिवर्ष अगस्त-सितंबर में होती है और कुरूड़ से वेदनी कुंड तक जाती है।
- राजजात यात्रा: यह हर 12 वर्षों में होती है और नौटी गांव से शुरू होकर 280 किमी तक की दुर्गम यात्रा के बाद समाप्त होती है।
10. यात्रा के दौरान कौन-कौन सी चुनौतियां आती हैं?
उत्तर:
इस यात्रा के दौरान घने जंगलों, पथरीले मार्गों, दुर्गम चोटियों, और बर्फीले पहाड़ों को पार करना पड़ता है। यात्रा का मार्ग शारीरिक और मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण होता है।
11. यात्रा में कौन-कौन शामिल होते हैं?
उत्तर:
यात्रा में गढ़वाल-कुमाऊं के श्रद्धालु, डोलियां, छंतोलियां, नंदा जागरी (गाथा गाने वाले), और चौसिंग्या खाडू शामिल होते हैं।
12. राजजात यात्रा का अंतिम पड़ाव कौन-सा है?
उत्तर:
राजजात यात्रा का अंतिम पड़ाव होमकुंड से लौटकर नौटी है, जहां यात्रा का समापन होता है।
13. नंदा देवी राजजात का सांस्कृतिक महत्व क्या है?
उत्तर:
नंदा देवी राजजात गढ़वाल-कुमाऊं की सांस्कृतिक एकता और समृद्ध परंपरा का प्रतीक है। यह लोक गाथाओं, देवी गीतों, और सांस्कृतिक मेलों के माध्यम से एक पवित्र और ऐतिहासिक अनुभव प्रदान करती है।
14. रूपकुंड का राजजात यात्रा से क्या संबंध है?
उत्तर:
रूपकुंड यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव है। यहां पाए गए नरकंकाल और बगुवावासा की 8वीं सदी की गणेश मूर्ति यात्रा की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करते हैं।
15. नंदा देवी राजजात यात्रा में कौन-कौन से धार्मिक अनुष्ठान होते हैं?
उत्तर:
यात्रा के दौरान विभिन्न पड़ावों पर मां नंदा की विशेष पूजा-अर्चना, जागरण, भजन-कीर्तन, और पौराणिक वाद्य यंत्रों की धुन पर अनुष्ठान किए जाते हैं।
16. राजजात यात्रा में कैसे शामिल हो सकते हैं?
उत्तर:
श्रद्धालु यात्रा में डोलियों, छंतोलियों, और व्यक्तिगत रूप से पैदल चलकर शामिल हो सकते हैं। यात्रा में सामूहिक रूप से भाग लेने की परंपरा है।
17. यात्रा के दौरान किन-किन स्थानों पर मेले लगते हैं?
उत्तर:
राजजात के विभिन्न पड़ावों पर भव्य मेले लगते हैं। इनमें विशेष रूप से थराली, नंदकेशरी, और होमकुंड के मेले शामिल हैं।
18. नंदा देवी की अन्य प्रमुख नाम कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
मां नंदा देवी को शिवा, सुनंदा, शुभानंदा, और नंदिनी के नाम से भी जाना जाता है।
19. राजजात यात्रा कब आयोजित की गई थी?
उत्तर:
अंतिम नंदा देवी राजजात यात्रा वर्ष 2014 में आयोजित की गई थी।
20. नंदा देवी राजजात यात्रा को क्यों सबसे कठिन यात्रा माना जाता है?
उत्तर:
यह यात्रा कठिन पर्वतीय मार्गों, दुर्गम चोटियों, घने जंगलों, और बर्फीले क्षेत्रों से होकर गुजरती है, जिससे इसे विश्व की सबसे चुनौतीपूर्ण पैदल यात्राओं में से एक माना जाता है।
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