अबोध बंधु बहुगुणा: गढ़वाली साहित्य का सूर्य
(यह लेख स्व. श्रीमती सरजू देवी अबोध बहुगुणा को समर्पित है, जिनका संबल हमेशा अबोध जी के साथ रहा।)
गढ़वाली साहित्य में अबोध बंधु बहुगुणा का नाम सूर्य की भांति चमकता है। उनके योगदान को शब्दों में समेटना आसान नहीं है। उन्होंने न केवल गढ़वाली साहित्य की विविध विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएं दीं, बल्कि प्रकाशन की भी व्यवस्थित शुरुआत की। उनकी रचनाएं गढ़वाली साहित्य के हर पहलू पर अमिट छाप छोड़ती हैं।
जीवन परिचय
अबोध बंधु बहुगुणा का जन्म 15 जून 1927 को पौड़ी गढ़वाल के झाला गांव में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने पौड़ी से हाई स्कूल और सेकेंडरी की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद नागपुर विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र और हिंदी में एमए की डिग्री हासिल की।
साहित्यिक योगदान
अबोध बंधु बहुगुणा ने गढ़वाली साहित्य की लगभग हर विधा में अपनी लेखनी चलाई। उनकी रचनाएं साहित्य के उच्च मानकों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
काव्य
- भुम्याळ: गढ़वाली का प्रथम महाकाव्य।
- तिड़का: हास्य-व्यंग्य पर आधारित कविता संग्रह।
- रण मंडाण: वीर रस की कविताओं का संग्रह।
- पार्वती: 100 गढ़वाली गीतों का संग्रह।
- घोल: गढ़वाली में अतुकांत कविताओं की शुरुआत।
- दैसत: आक्रांता आधारित कविताएं।
- कणखिल: अनुभवजन्य कविताओं का संग्रह।
- शैलोदय: नव प्रयोग और पारंपरिक कविताओं का संग्रह।
- आंख पंख: बच्चों के लिए कविताएं।
नाटक
- माई को लाल: श्रीदेव सुमन के जीवन पर आधारित नाटक।
- चक्रचाल: 12 गद्य नाटक और 4 गीतनाटक।
- मलेथा कूल: माधो सिंह भंडारी के कृत्य पर आधारित नाटक।
- अंतिम गढ़: कफ्फू चौहान के जीवन पर आधारित नाटक।
कथाएं
- कथा कुमुद और रगड्वात: गढ़वाली कहानियों का संग्रह।
उपन्यास
- भुजत्यूं भविष्य: गढ़वाली में उपन्यास लेखन की शुरुआत।
भाषा और व्याकरण
- गढ़वाली व्याकरण की रूपरेखा: गढ़वाली भाषा के व्याकरण पर आधारित।
- धुंया ळ: गढ़वाली गीतों और लोकगीतों का संग्रह।
समीक्षा और साहित्य इतिहास
- गाड मटयेकी गंगा: गढ़वाली गद्य साहित्य का संग्रह।
- शैलवाणी: गढ़वाली कविता और कवियों की जीवनी तथा काव्य समीक्षा।
गद्य और संस्मरण
- एक कौंळी किरण: संस्मरणात्मक लेख।
पुरस्कार और सम्मान
अबोध बंधु बहुगुणा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए:
- 1979: लोक भारती नागरिक सम्मान।
- 1984: जयश्री सम्मान।
- 1991: गढ़वाली भासा संगम द्वारा ‘सुविधा’ सम्मान।
- 2003: काव्य भूषण पुरस्कार।
- उत्तर प्रदेश सरकार: तीन बार सम्मानित।
संदर्भ और विशेषताएं
अबोध बंधु बहुगुणा ने गढ़वाली साहित्य को न केवल नई पहचान दी बल्कि इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसारित किया। उनकी रचनाओं में गढ़वाल की संस्कृति, लोकजीवन, परंपराएं और संघर्ष का अद्भुत चित्रण मिलता है।
निष्कर्ष
अबोध बंधु बहुगुणा न केवल गढ़वाली साहित्य के निर्माण में मील का पत्थर साबित हुए, बल्कि उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी बनकर दिखाया। उनका नाम हमेशा गढ़वाली साहित्य के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।
संदर्भ:
- भीष्म कुकरेती के लेख और गढ़वाली साहित्य के ऐतिहासिक दस्तावेज।
गढ़वाली कविता: एक समृद्ध साहित्यिक विरासत
गढ़वाली कविता, अपनी अनूठी भाषा, भावनाओं और विषयों के साथ, साहित्य जगत में अपनी महत्वपूर्ण पहचान रखती है। यह लेख गढ़वाली कविता के विकास के विभिन्न चरणों, प्रमुख कवियों, और उनके उल्लेखनीय संग्रहों पर प्रकाश डालता है।
गढ़वाली कविता का तीसरा विकास काल (1951-1975)
इस अवधि में गढ़वाली कविताओं ने विविधता और गहराई प्राप्त की। कवियों ने सामाजिक मुद्दों, प्राकृतिक सौंदर्य, और मानव जीवन की जटिलताओं को अपनी कविताओं में चित्रित किया।
प्रमुख कवि और उनकी कृतियाँ:
- लक्ष्मी प्रसाद दर्दुली – मिखाइल एक लंबी कविता (1957)
- उम्मेद सिंह नेगी – दांडी कांथी (1960)
- शिव नंद पांडे – उजियाली (1962)
- जीत सिंह नेगी – गीत गंगा (1963)
- राम प्रसाद पोखरियाल – छुनियाल (1963)
- धर्म नंद जमलोकी – मेघदूत काव्य (1971)
- पूरन पंत पथिक – पथ गीत (1975)
गढ़वाली कविता का चौथा विकास काल (1976-1981)
इस अवधि में गढ़वाली कविताएँ मानव संवेदनाओं, पर्यावरणीय मुद्दों, और यथार्थवादी दृष्टिकोण पर केंद्रित रहीं। कवियों ने अपने विचारों और अनुभवों को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
उल्लेखनीय कवि और उनकी रचनाएँ:
- अबोध बंधु बहुगुणा – भुम्याल (गढ़वाली भाषा का पहला महाकाव्य)
- लोकेश नवानी – फन्ची (1977)
- भगवान सिंह रावत – माया मेलुडी (1977)
- गंगा जमुना – माटी बाटी (1977) (चिपको आंदोलन को समर्पित)
- कन्हैया लाल डंडरियाल – अंजवाल (1978)
स्वर्ण युग: 1975-1981
यह समय गढ़वाली साहित्य के लिए स्वर्ण युग कहा जाता है। इस काल में गढ़वाली कविता ने सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाया।
प्रमुख पत्रिकाएँ:
- बदौली (संपादक: गोविंद चातक)
- गढ़ गौरव (संपादक: कुंवर सिंह कर्मठ)
- मैती (संपादक: सतेश्वर सती)
- हिलन्स (संपादक: अर्जुन सिंह गुसाईं)
शैलानी (1981) के लिए योगदानकर्ता
शैलानी में विभिन्न कवियों की 80 से अधिक कविताएँ शामिल हैं। प्रमुख कवि और उनकी रचनाओं की संख्या:
- अबोध बंधु बहुगुणा – 3 कविताएँ
- भगवती चरण निर्मोही – 3 कविताएँ
- कन्हैया लाल डंडरियाल – 3 कविताएँ
- घनश्याम रतूड़ी – 2 कविताएँ
- भगवान सिंह रावत – 2 कविताएँ
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प्रश्न 1:
अबोध बंधु बहुगुणा कौन थे?
उत्तर:
अबोध बंधु बहुगुणा गढ़वाली भाषा के प्रसिद्ध कवि, लेखक और नाटककार थे। उन्हें "गढ़वाली साहित्य का सूर्य" कहा जाता है। उन्होंने गढ़वाली भाषा और संस्कृति को समृद्ध करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 2:
उनका जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर:
अबोध बंधु बहुगुणा का जन्म 16 जून 1916 को टिहरी गढ़वाल के मलेथा गांव में हुआ था।
प्रश्न 3:
गढ़वाली साहित्य में अबोध बंधु बहुगुणा का क्या योगदान है?
उत्तर:
उन्होंने गढ़वाली साहित्य में कविता, नाटक, उपन्यास और आलोचना जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी रचनाएँ गढ़वाली भाषा और संस्कृति का उत्कृष्ट चित्रण करती हैं।
प्रश्न 4:
अबोध बंधु बहुगुणा की प्रमुख रचनाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं:
- भुम्याळ (कविता संग्रह)
- तिड़का (कविता संग्रह)
- मलेथा कूल (नाटक)
- अंतिम गढ़ (नाटक)
- भुजत्यूं भविष्य (उपन्यास)
प्रश्न 5:
"भुम्याळ" कविता संग्रह में क्या विशेषता है?
उत्तर:
"भुम्याळ" में गढ़वाली संस्कृति, ग्रामीण जीवन और पर्वतीय समाज का यथार्थ चित्रण किया गया है। यह गढ़वाली साहित्य का एक प्रमुख काव्य संग्रह है।
प्रश्न 6:
गढ़वाली नाटकों में अबोध बंधु बहुगुणा का योगदान क्या है?
उत्तर:
अबोध बंधु बहुगुणा ने गढ़वाली नाटकों को एक नई पहचान दी। उनके नाटक "मलेथा कूल" और "अंतिम गढ़" गढ़वाल के ऐतिहासिक और सामाजिक मुद्दों पर आधारित हैं।
प्रश्न 7:
उन्होंने गढ़वाली भाषा और व्याकरण पर क्या कार्य किया?
उत्तर:
अबोध बंधु बहुगुणा ने गढ़वाली व्याकरण और भाषा पर गहन अध्ययन किया। उनकी पुस्तक "गाड मटयेकी गंगा" गढ़वाली भाषा के संरचनात्मक और साहित्यिक महत्व को दर्शाती है।
प्रश्न 8:
अबोध बंधु बहुगुणा को कौन-कौन से पुरस्कार मिले?
उत्तर:
उन्हें साहित्य और कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त हुए।
प्रश्न 9:
उनकी रचनाओं का गढ़वाली समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
उनकी रचनाओं ने गढ़वाली समाज में साहित्यिक जागरूकता लाई। उनकी कविताएँ और नाटक गढ़वाली भाषा और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने में सहायक रहे।
प्रश्न 10:
अबोध बंधु बहुगुणा को "गढ़वाली साहित्य का सूर्य" क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
उन्हें "गढ़वाली साहित्य का सूर्य" इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने गढ़वाली साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और इसे एक अलग पहचान दी।
1. गढ़वाली कविता क्या है?
गढ़वाली कविता, उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र की पारंपरिक काव्यशैली है। यह कविता स्थानीय बोलचाल की भाषा, भावनाओं, और समाजिक मुद्दों को व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम रही है। गढ़वाली कवि अपनी कविता में स्थानीय जीवन, संस्कृति, और प्रकृति को चित्रित करते हैं।
2. गढ़वाली कविता के प्रमुख कवि कौन हैं?
गढ़वाली कविता के प्रमुख कवियों में लक्ष्मी प्रसाद दर्दुली, शैल कुंज पुंडीर, उम्मेद सिंह नेगी, हर्षपति रतूड़ी, शिव नंद पांडे, और जीत सिंह नेगी शामिल हैं। इन कवियों ने गढ़वाली साहित्य को समृद्ध किया है और उनकी कविताओं में सामाजिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक मूल्यों का समावेश होता है।
3. गढ़वाली कविता के प्रमुख काव्य संग्रह कौन से हैं?
गढ़वाली कविता के प्रमुख काव्य संग्रहों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- लक्ष्मी प्रसाद दर्दुली - मिखाइल एक लंबी कविता (1957)
- जीत सिंह नेगी - गीत गंगा (1963)
- शिव नंद पांडे - उजियाली (1962)
- हर्षपति रतूड़ी - जीवन सती (1960)
4. गढ़वाली कविता के विकास की प्रमुख अवधियाँ क्या हैं?
गढ़वाली कविता का विकास चार प्रमुख अवधियों में हुआ:
- प्रारंभिक चरण (1951-1960): इस अवधि में कविता संग्रह प्रकाशित होने लगे और गढ़वाली कविता का एक नया रूप सामने आया।
- मध्य चरण (1961-1975): इस अवधि में कवियों ने विविध शैलियों और विषयों का समावेश किया, जैसे व्यंग्य, रोमांस और देशभक्ति।
- स्वर्ण युग (1976-1981): इस समय में कविता में यथार्थवाद की ओर एक बड़ा कदम बढ़ा, और गढ़वाली कवियों ने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।
- आधुनिक दौर (1981-वर्तमान): इस दौर में गढ़वाली कविता में नई तकनीकी और भावनात्मक गहराई देखने को मिलती है।
5. गढ़वाली कविता में किन विषयों को प्राथमिकता दी जाती है?
गढ़वाली कविता में समाजिक मुद्दे, देशभक्ति, प्रकृति, लोकजीवन, ग्रामीण जीवन की कठिनाइयाँ और ऐतिहासिक घटनाओं को प्रमुखता दी जाती है। कवि अपनी रचनाओं के माध्यम से गढ़वाल की समृद्ध संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों को प्रस्तुत करते हैं।
6. क्या गढ़वाली कविता को समझने के लिए गढ़वाली भाषा का ज्ञान जरूरी है?
हां, गढ़वाली कविता को पूरी तरह से समझने के लिए गढ़वाली भाषा का ज्ञान लाभकारी होता है। हालांकि, गढ़वाली कविताओं के हिंदी या अंग्रेजी अनुवाद भी उपलब्ध हैं, जिनसे आप कविता का मर्म समझ सकते हैं।
7. गढ़वाली कविता में किस प्रकार की शैलियाँ पाई जाती हैं?
गढ़वाली कविता में विभिन्न शैलियाँ पाई जाती हैं, जैसे-
- गद्य कविता: जहां गद्य और कविता का मिश्रण होता है।
- लघु कविता: छोटी-छोटी कविताएँ जो सीधे संदेश देती हैं।
- महाकाव्य: जैसे बहुगुणा का "भूमिला" महाकाव्य, जिसमें गढ़वाली संस्कृति की गहरी छाप होती है।
8. गढ़वाली कवियों का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा है?
गढ़वाली कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज को जागरूक किया और स्थानीय समस्याओं, पारंपरिक मूल्यों, और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित किया। उनके शब्दों में गहरी सामाजिक भावना और बदलाव की प्रेरणा मिलती है।
9. गढ़वाली कविता में किस प्रकार की छंद प्रणाली अपनाई जाती है?
गढ़वाली कविता में पारंपरिक छंद प्रणाली अपनाई जाती है, जिसमें स्थानीय लोक गीतों और गीतों की ध्वनि और लय का प्रभाव होता है। इन छंदों का उद्देश्य कविता को संगीतमय और प्रभावी बनाना होता है।
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