गोरखों का न्याय प्रशासन एवं दण्ड व्यवस्था
गोरखा शासन के दौरान न्याय प्रणाली को लेकर कोई निश्चित और संगठित प्रणाली नहीं थी। प्रत्येक अफसर अपने पद के अनुसार, जैसा उचित समझता था, वैसा निर्णय देता था। दीवानी और फौजदारी के छोटे-मोटे मामलों का निपटारा उस क्षेत्र के सैन्य अधिकारियों द्वारा किया जाता था। गोरखा अधिकारी युद्धों में व्यस्त रहते थे, इस कारण न्याय का कार्य उनके मातहत अधिकारियों को सौंप दिया जाता था, जिन्हें 'विचारी' कहा जाता था। अपराधों की सुनवाई सरल थी, लेकिन निश्चित प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता था।
न्याय प्रणाली की प्रक्रिया
अपराधों की सुनवाई शुरू करने से पहले वादी और प्रतिवादी से 'हरिवंश' की प्रति ली जाती थी। सरहदी मामलों में निर्णय लेने के लिए अग्नि-परीक्षा की जाती थी, जिसे सामान्य भाषा में 'दिव्य' कहा जाता था। गोरखा शासन में विभिन्न प्रकार की अग्नि-परीक्षाएं प्रचलित थीं, जिनमें से तीन प्रमुख 'दिव्य' थे:
- गोलादीप: इस परीक्षा में वादी-प्रतिवादी को गर्म लोहे की छड़ को पकड़कर एक निश्चित दूरी तय करनी होती थी। यदि कोई व्यक्ति निर्धारित दूरी को तय नहीं कर पाता, तो उसे दोषी माना जाता था।
- तराजुदीप: इस परीक्षा में व्यक्ति को तराजू में पत्थरों से तौला जाता था। तौलने के बाद अगले दिन पुनः तौलकर यह देखा जाता कि वह हल्का हुआ या नहीं। यदि हल्का होता तो उसे निर्दोष माना जाता था, लेकिन यदि वह भारी होता, तो उसे दोषी माना जाता था।
- कढ़ाईदीप: इसमें एक कढ़ाई में तेल गरम किया जाता था, और दोषी समझे गए व्यक्ति से अपना हाथ उसमें डालने को कहा जाता था। यदि हाथ जलता नहीं था तो व्यक्ति निर्दोष माना जाता था, लेकिन यदि हाथ जलता था, तो उसे दोषी मान लिया जाता था।
अन्य 'दिव्य' की परीक्षा
ब्रिटिश कमिश्नर जी. डब्ल्यू. ट्रेल ने कुछ अन्य 'दिव्य' परीक्षाओं का उल्लेख किया है, जिनमें शामिल हैं:
- तीर का दीप: इसमें दोषी को पानी में डुबोकर रखा जाता था, और जब तक कोई तीर का निशाना लगा कर वापस नहीं आता, तब तक वह पानी में रहता था।
- बौकाटि हारया का दीप: इस परीक्षा में तैरना न जानने वाले बच्चों को तालाब में छोड़ दिया जाता था। जो ज्यादा समय तक जीवित रहता, उसे निर्दोष माना जाता था।
- काली हल्दी का दीप: यह संभवतः जहर की परीक्षा थी, जिसमें काली हल्दी खाने वाले को जीवित रहने पर निर्दोष माना जाता था।
- घात का दीप: इस परीक्षा में एक विवादित वस्तु या नगदी को न्याय देवता के मंदिर में रखा जाता था। यदि वह व्यक्ति निर्दोष होता और उसके परिवार में छह महीने में कोई मृत्यु नहीं होती, तो उसे निर्दोष माना जाता था।
गोरखा शासन में दण्ड व्यवस्था
गोरखा शासन में दण्ड प्रणाली भी अनिश्चित थी। सामान्यतः दण्ड का निर्धारण राजकोष को ध्यान में रखते हुए किया जाता था। देशद्रोह के लिए मौत की सजा दी जाती थी, और हत्या के दोषी को पेड़ पर लटका दिया जाता था। ब्राह्मणों के मामले में, यदि उन्हें हत्या का दोषी पाया जाता, तो उन्हें देश से निकाल दिया जाता था। अन्य अपराधों के लिए ब्राह्मणों की संपत्ति जब्त कर जुर्माना लगाया जाता था। चोरी के मामलों में ब्राह्मणों की शिखा काट दी जाती थी।
गोरखा शासन में अपराधियों को आतंकित करने के लिए अंग-भंग करने का दण्ड भी प्रचलित था। उदाहरण के लिए, व्यभिचारी पुरुष को मृत्युदण्ड, और स्वैरिणी स्त्री की नाक काटने की सजा दी जाती थी। आत्महत्या करने वाले के परिवार से जुर्माना वसूला जाता था। गाय को मारने और शूद्र द्वारा जातीय नियमों के उल्लंघन के लिए भी मृत्युदण्ड का प्रावधान था।
गोरखा न्याय व्यवस्था का प्रभाव
गोरखा न्याय व्यवस्था में प्राणदण्ड सामान्य था और इसमें कोई भी वर्ण अछूता नहीं था। छोटे अपराधों के लिए अर्थदण्ड लिया जाता था, जबकि बड़े अपराधों के लिए अंग-भंग और मृत्युदण्ड की सजा दी जाती थी। इस प्रकार की कठोर न्याय व्यवस्था ने गोरखा शासन के दौरान क्षेत्र में भय का माहौल बना दिया, जिसके कारण अपराधों में कमी आई।
गोरखा शासन के दण्ड विधान और न्याय प्रणाली का असर उत्तराखंड के ग्रामीण अंचलों में भी देखा जाता है, जहां अभी भी कुछ 'दिव्य' प्रचलन में हैं। इस प्रकार की न्याय व्यवस्था ने गोरखा काल में अपराधों को नियंत्रित किया और न्याय का एक अलग ही रूप प्रस्तुत किया।
Frequently Asked Questions (FAQs) - गोरखों का न्याय प्रशासन एवं दण्ड व्यवस्था
गोरखा शासन के दौरान न्याय व्यवस्था कैसी थी?
- गोरखों के शासनकाल में कोई निर्धारित न्याय प्रणाली नहीं थी। प्रत्येक अधिकारी अपने अनुसार फैसले करता था, और छोटे-मोटे मामले सैन्य अधिकारियों द्वारा निपटाए जाते थे।
गोरखों के न्याय प्रणाली में 'दिव्य' का क्या मतलब था?
- 'दिव्य' एक प्रकार की अग्नि-परीक्षा थी, जिसमें आरोपी को विभिन्न तरीकों से परीक्षण किया जाता था जैसे 'गोला दीप', 'तराजु दीप', और 'कढ़ाई दीप'।
'गोला दीप' क्या होता था?
- 'गोला दीप' एक अग्नि परीक्षा थी, जिसमें आरोपी को गरम लोहे की छड़ के साथ एक निश्चित दूरी तय करनी होती थी। यदि वह तय दूरी नहीं कर पाता, तो उसे दोषी मान लिया जाता था।
'तराजु दीप' का क्या तरीका था?
- इसमें आरोपी को पत्थरों से तौला जाता था। यदि तौले गए पत्थरों का वजन अगले दिन बढ़ जाता, तो उसे दोषी मान लिया जाता।
'कढ़ाई दीप' में किस तरह की परीक्षा होती थी?
- 'कढ़ाई दीप' में आरोपी को एक उबले हुए तेल में हाथ डालने के लिए कहा जाता था। यदि हाथ जलता नहीं था, तो उसे निर्दोष माना जाता था, लेकिन अगर हाथ जलता था, तो उसे दोषी माना जाता था।
गोरखों के न्याय में अन्य 'दिव्य' प्रकार क्या थे?
- अन्य 'दिव्य' में शामिल थे 'तीर का दीप', 'बौकाटि हारया का दीप', 'काली हल्दी का दीप', और 'घात का दीप'।
'घात का दीप' कैसे काम करता था?
- इसमें आरोपी को मन्दिर में रखी वस्तु को उठाने के लिए कहा जाता था। यदि छह महीने के भीतर परिवार में कोई मृत्यु नहीं होती, तो उसे निर्दोष माना जाता था।
गोरखों के दण्ड विधान के क्या प्रमुख उदाहरण थे?
- गोरखों का दण्ड विधान बहुत कठोर था। देशद्रोह के लिए मौत की सजा, हत्या के लिए पेड़ पर लटकाना, और ब्राह्मणों को हत्या के लिए देश से निकाल देना, आदि प्रचलित थे।
गोरखा शासन में किस तरह के अपराधों के लिए दण्ड दिया जाता था?
- व्यभिचार, आत्महत्या, चोरी, और गाय हत्या जैसे अपराधों के लिए गोरखा शासन में कठोर दण्ड की व्यवस्था थी, जिसमें मृत्युदण्ड, अंग-भंग, और जुर्माना शामिल थे।
क्या गोरखा शासन में किसी विशेष वर्ग को विशेष दण्ड मिलते थे?
- ब्राह्मणों के लिए विशेष दण्ड थे, जैसे कि हत्या के लिए उन्हें देश से बाहर किया जाता था और चोरी के लिए उनकी शिखा काटी जाती थी।
गोरखों के दण्ड विधान में किन-किन अपराधों के लिए जुर्माना लिया जाता था?
- गोरखा शासन में जुर्माना कई प्रकार के अपराधों के लिए लिया जाता था, जैसे कि गढ़वाल क्षेत्र में महिलाओं द्वारा छत पर चढ़ने पर जुर्माना और छोटे-छोटे अपराधों के लिए अर्थदण्ड वसूला जाता था।
क्या गोरखा न्याय व्यवस्था के कारण अपराधों में कमी आई थी?
- हाँ, गोरखा न्याय व्यवस्था में कठोर दण्ड और भय का माहौल था, जिससे क्षेत्र में अपराधों में कमी आई थी।
गोरखा न्याय व्यवस्था में 'कठोरता' के बारे में क्या कहा गया है?
- गोरखा शासन के दौरान न्याय और दण्ड प्रणाली में कठोरता थी, जिससे जनता में हमेशा भय का माहौल बना रहता था और अपराध कम होते थे।
क्या गोरखा न्याय व्यवस्था में 'न्याय देवता' का कोई महत्व था?
- हाँ, गोरखा न्याय व्यवस्था में 'न्याय देवता' के मंदिरों में रखी गई वस्तुएं और नगदी पर आधारित फैसले किए जाते थे, जिसे 'घात का दीप' के रूप में जाना जाता था।
क्या गोरखा शासन में सजा की कोई विशेष प्रणाली थी?
- गोरखा शासन में सजा की प्रणाली का निर्धारण अपराध की गंभीरता के अनुसार किया जाता था। कुछ अपराधों के लिए मृत्युदण्ड, कुछ के लिए जुर्माना और कुछ के लिए अंग-भंग की सजा दी जाती थी।
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