ऐतिहासिक है अल्मोड़ा का शै भैरव मंदिर: एक धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर (Almora's Shay Bhairav Temple is historic)

ऐतिहासिक है अल्मोड़ा का शै भैरव मंदिर: एक धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर

अल्मोड़ा का शै भैरव मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह कुमाऊं की संस्कृति, इतिहास, और कला का भी अहम हिस्सा है। यह मंदिर अल्मोड़ा नगर के केंद्र में स्थित है और नगरवासियों के लिए एक श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है। शै भैरव को भगवान शिव के रौद्र रूप भैरव के रूप में पूजा जाता है, जिन्हें रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि अत्यधिक रोचक है, जो हमें इस स्थल के महत्व को समझने में मदद करती है।

शै भैरव मंदिर का इतिहास और स्थापना

अल्मोड़ा नगर में शै भैरव मंदिर की स्थापना का सम्बन्ध चंद शासक उद्योत चंद (1678–98) के समय में हुए एक षड़यंत्र से है। इस षड़यंत्र में लोक देवता भोलानाथ, उनके प्रति आस्था रखने वाली साध्वी और उनके अजन्मे शिशु की हत्या कर उनके शरीर के अंगों को नगर के विभिन्न स्थानों पर भूमिगत कर दिया गया था। बाद में इन्हीं स्थानों पर अष्ट भैरव मंदिरों की स्थापना की गई। यह मंदिर नगर के रक्षक के रूप में स्थापित किए गए थे।

अल्मोड़ा के अष्ट भैरव

अल्मोड़ा में स्थापित आठ भैरवों के मंदिरों को अष्ट भैरव कहा जाता है। इन मंदिरों में कालभैरव, बटुक भैरव, बाल भैरव, शै भैरव, गढ़ी भैरव, आनंद भैरव, गौर भैरव, और खुटकुणी भैरव के रूप में पूजा की जाती है। इतिहासकार बद्रीदत्त पांडे के अनुसार, इन मंदिरों की स्थापना का उद्देश्य अल्मोड़ा नगर को बुरी शक्तियों और आपदाओं से बचाना था।

शै भैरव मंदिर की संरचना

शै भैरव मंदिर का निर्माण चंदवंशीय राजा उद्योत चंद ने कराया था, और इसकी स्थापत्य कला प्राचीन कुमाऊं वास्तुकला का आदर्श उदाहरण है। इस मंदिर में गर्भगृह के बाहर अर्धमंडप और स्तंभों पर काष्ठ निर्मित छत है। इस मंदिर में एक प्रदक्षिणा पथ भी बनाया गया है, जहां श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं। मंदिर में स्थापित एक धातु निर्मित घंटा भी था, जो वर्तमान में राजकीय संग्रहालय अल्मोड़ा में प्रदर्शित है।

शै भैरव मंदिर का सांस्कृतिक महत्व

शै भैरव मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह अल्मोड़ा की सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा है। यहाँ हर वर्ष भैरव अष्टमी और शनि जयंती जैसे धार्मिक अवसरों पर विशेष आयोजन होते हैं। इन आयोजनों में भक्तों की भारी संख्या मंदिर में पूजा-अर्चना करने आती है। मंदिर में प्रसाद चढ़ाने की परंपरा भी है, जिसमें भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के बाद खीर, गुड़, जलेबी जैसी चीजें चढ़ाते हैं।

साल 2001 में मंदिर परिसर में शनिदेव मंदिर की भी स्थापना की गई, जिससे यहाँ के धार्मिक आयोजनों की महत्ता और बढ़ गई। इसके अलावा, कुमाऊं मंडल की ऐतिहासिक राजजात यात्रा के दौरान मंदिर में सामूहिक आरती का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं।

कुमाऊं की धार्मिकता में शै भैरव का स्थान

अल्मोड़ा को "आठ भैरवों और नौ दुर्गाओं की नगरी" कहा जाता है। यहाँ के लोग मानते हैं कि इन भैरव देवताओं की कृपा से ही नगर सुरक्षित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब भी कोई आपत्ति या संकट आता है, तो ये देवता नगरवासियों की रक्षा करते हैं। शै भैरव के भक्तों का विश्वास है कि यहाँ की पूजा-अर्चना से उनकी मनोकामनाएँ शीघ्र पूर्ण होती हैं, और उनके जीवन में शांति एवं सुख-सुविधाएँ आती हैं।

आधुनिक समय में शै भैरव मंदिर

वर्तमान समय में, शै भैरव मंदिर का महत्व और बढ़ गया है। स्थानीय व्यापारी और श्रद्धालु समय-समय पर मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य करवाते रहते हैं। 1991 में मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था, और इसके बाद से यह स्थान अल्मोड़ा की धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बन चुका है। श्रद्धालु इस मंदिर में अपनी श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करने आते हैं, और यहां के आयोजनों में शामिल होकर धार्मिक संतोष प्राप्त करते हैं।

निष्कर्ष

अल्मोड़ा का शै भैरव मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह कुमाऊं की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। यहां की पूजा पद्धतियाँ, भव्यता और मंदिर का इतिहास इस स्थान को विशेष बनाते हैं। इस मंदिर की शरण में आकर लोग अपने जीवन की परेशानियों का समाधान ढूंढ़ते हैं, और यहाँ के धार्मिक आयोजनों में भाग लेकर मानसिक शांति का अनुभव करते हैं।

FQCs (Frequently Asked Questions) 

1. शै भैरव मंदिर कहां स्थित है?

शै भैरव मंदिर अल्मोड़ा नगर के लाला बाजार के पास मिलन चौक के पीछे स्थित है।

2. शै भैरव मंदिर का निर्माण किसने कराया था?

शै भैरव मंदिर का निर्माण चंदवंशीय राजा उद्योत चंद ने कराया था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, राजा मोहन सिंह ने इसे भूमि गूंठ में चढ़ाया था।

3. शै भैरव के चमत्कारों के बारे में क्या माना जाता है?

भक्तों का मानना है कि शै भैरव के मंदिर में की गई मनौतियों और फरियादों की त्वरित सुनवाई होती है। इसे मनौती पूरी करने वाला मंदिर माना जाता है।

4. शै भैरव मंदिर में कौन-कौन सी परंपराएं निभाई जाती हैं?

शै भैरव मंदिर में प्रत्येक वर्ष भैरव अष्टमी और शनि जयंती के अवसर पर भंडारे और पूजा आयोजन किए जाते हैं। इसके अलावा माघी खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा भी है।

5. शै भैरव मंदिर की वास्तुकला कैसी है?

शै भैरव मंदिर की वास्तुकला में प्राचीन कुमाऊंनी शैली का पालन किया गया है। गर्भगृह में देवता की प्रतिष्ठा की गई है, और मंदिर में प्रस्तर निर्मित स्तंभों के साथ काष्ठ निर्मित छत है।

6. क्या शै भैरव मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए कोई विशेष समय है?

हां, शै भैरव मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए भैरव अष्टमी और शनि जयंती जैसे विशेष अवसर होते हैं, जब भक्तों की संख्या अधिक होती है और भंडारे का आयोजन भी होता है।

7. शै भैरव मंदिर में प्रसाद क्या चढ़ाया जाता है?

शै भैरव मंदिर में विभिन्न अवसरों पर खीर, गुड़, जलेबी और अन्य सामग्रियों का प्रसाद चढ़ाया जाता है। मनौती पूरी होने पर भक्त सिन्दूर, माला और फूल चढ़ाते हैं।

8. क्या शै भैरव मंदिर में कोई ऐतिहासिक धरोहर रखी गई है?

हां, शै भैरव मंदिर में एक धातु निर्मित घंटा था, जिस पर संस्कृत में लेख उत्कीर्ण था। यह घंटा अब राजकीय संग्रहालय अल्मोड़ा में प्रदर्शित है।

9. अल्मोड़ा में भैरव बाबा के कितने मंदिर हैं?

अल्मोड़ा में भैरव बाबा के 8 मंदिर हैं, जिनमें से शै भैरव, काल भैरव, बटुक भैरव, बाल भैरव, खुटकुणी भैरव, गढ़ी भैरव, आनंद भैरव और गौर भैरव के रूप में उनकी पूजा की जाती है।

10. क्या शै भैरव मंदिर के आसपास कोई अन्य धार्मिक स्थल हैं?

हां, अल्मोड़ा नगर में अष्ट भैरव और नौ दुर्गा मंदिर स्थित हैं, जो नगर की सुरक्षा और धार्मिक महत्व को बढ़ाते हैं।

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