बचन देई: लोक संगीत की अद्वितीय गायिका (Bachan Dei: Unique singer of folk music)

बचन देई: लोक संगीत की अद्वितीय गायिका

उत्तराखंड की लोक संस्कृति में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाली लोक गायिका और नृत्यांगना बचन देई का जन्म 1948 में टिहरी गढ़वाल जिले के भिलंगना विकास खण्ड के असेना गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम मोलूराम था। महज 15 वर्ष की आयु में, बचन देई का विवाह दोणी गाँव के शिवचरण से हुआ था। उन्होंने अपनी गायन की शिक्षा पारम्परिक रूप से घर पर ही प्राप्त की, और ससुराल में आकर अपनी कला को और निखारा।

बचन देई की गायन शैली गढ़वाल के लोक जीवन में अपनी खास पहचान बना चुकी थी। उन्होंने राधाखंडी शैली, सदैई, बाजूबन्द, और जागर गायन में माहिरता हासिल की। बचन देई के गायन की विशेषता उनके मधुर स्वर और लोक संगीत में निपुणता में थी, जिससे वे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी आवाज का जादू बिखेर देती थीं। उनके पति शिवचरण भी उनके साथ सांस्कृतिक समारोहों में भाग लेते थे और गढ़वाल के विभिन्न लोक वाद्यों में पारंगत थे। उनकी गायन शैली से प्रेरित होकर प्रसिद्ध लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने भी इसे अपनाया।

बचन देई, जो कभी स्कूल का मुंह नहीं देख पाई, अपनी अनोखी गायकी और लोक संगीत के लिए गढ़वाल विश्वविद्यालय में लोक संगीत की विजिटिंग प्रोफेसर थीं। बचन देई ने जंगलों में घास काटते हुए, खेतों में काम करते हुए गीत गाना शुरू किया था। वह बेड़ा जाति से थीं, जहां गीत-संगीत का माहौल पहले से ही था। उनके परिवार में लोक संगीत की परंपरा थी, और बचन देई ने अपने रिश्तेदारों से चैती गीत सीखे थे।

लोक संगीत में गहरी पैठ:

बचन देई की आवाज में गजब का जादू था और उनके गीतों में गहरी भावनाएं थीं। उनकी गायन शैली में राधाखंडी, सदैई, बाजूबंद और जागर जैसे लोकगीतों का अद्वितीय मिश्रण था। यही वजह थी कि अनपढ़ होने के बावजूद गढ़वाल विश्वविद्यालय ने उन्हें लोक संगीत की शिक्षा देने के लिए वर्ष 2006 में विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर नियुक्त किया।

लोक गायिका के तौर पर सम्मान:

2008 में, मुझे बचन देई से मिलने का अवसर मिला। उन्हें एक बड़े कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था, और उनके साथ उनके पति शिवचरण और दामाद सत्य प्रकाश भी थे। बचन देई के कार्यक्रम में उनकी आवाज से कई बुजुर्ग महिलाएं भावुक हो गईं, जब वह एक महिला की पीड़ा को व्यक्त करते हुए बाजूबंद गा रही थीं। उस दिन बचन देई के बारे में पता चला कि उनका लोक संगीत के प्रति समर्पण अत्यंत गहरा था और वह लोक कला के संरक्षण के लिए सच्ची चिंता करती थीं।

लोक संगीत के संरक्षण का संघर्ष:

बचन देई का मानना था कि लोक गायकों को सरकार द्वारा केवल सूचना विभाग में पंजीकृत करना और साल में कुछ कार्यक्रम देना पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा था कि यदि लोक संस्कृति का संरक्षण नहीं किया गया, तो ढोल सागर की तरह चैती गीत, बाजूबंद और जागर जैसी लोक विधाएं समाप्त हो सकती हैं। उनकी यही पीड़ा थी कि यदि वह पढ़ी-लिखी होतीं तो लोक गीतों को पुस्तक की शक्ल देतीं।

पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि:

बचन देई की पुण्यतिथि पर, घनसाली में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में उन्हें याद किया गया। इस कार्यक्रम में विभिन्न संगठनों के लोग और गढ़वाल विश्वविद्यालय के शिक्षाविदों ने उनकी कला और योगदान को सम्मानित किया। गढ़वाल विश्वविद्यालय में उनके योगदान के कारण राधाखंडी शैली पर शोध कार्य किया जा रहा है, और उन्हें इस शैली की वजह से डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त हुई थी।

अंत में, बचन देई की विरासत:

बचन देई ने लोक संगीत और लोक संस्कृति के लिए अपना जीवन समर्पित किया। उनका योगदान गढ़वाल की लोक संगीत धारा में अनमोल रहेगा। उनकी आवाज और उनके गीतों में गहराई और प्रेम था, जो आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।

Frequently Asked Questions (FQCs) about Bachan Dei

  1. बचन देई कौन थीं?

    • बचन देई एक प्रसिद्ध लोक गायिका और नृत्यांगना थीं, जो उत्तराखंड की गढ़वाल संस्कृति से जुड़ी हुई थीं। उनका गायन विशेष रूप से राधाखंडी, सदैई, बाजूबन्द और जागर गायन में माहिर था।
  2. बचन देई का जन्म कब और कहां हुआ था?

    • बचन देई का जन्म 1948 में टिहरी गढ़वाल जिले के भिलंगना विकास खण्ड के असेना गाँव में हुआ था।
  3. बचन देई की गायन शैली क्या थी?

    • बचन देई की गायन शैली गढ़वाल की पारम्परिक लोक संगीत शैलियों से जुड़ी थी, जैसे राधाखंडी, सदैई, बाजूबन्द, और जागर गायन। वे राधा और कृष्ण के प्रेम गीतों को पारंपरिक रूप से गाती थीं।
  4. बचन देई के पति कौन थे?

    • बचन देई के पति शिवचरण थे, जो गढ़वाल के प्रसिद्ध लोक वाद्यों में पारंगत थे और अक्सर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उनके साथ भाग लेते थे।
  5. बचन देई को किस क्षेत्र में सम्मान मिला था?

    • उनके गायन और संगीत के असाधारण ज्ञान को देखते हुए गढ़वाल विश्वविद्यालय ने 2006 में उन्हें संगीत विभाग का विजिटिंग प्रोफेसर नियुक्त किया था।
  6. बचन देई का लोक संगीत में योगदान क्या था?

    • बचन देई ने गढ़वाल के लोक जीवन को अपने गायन और नृत्य से समृद्ध किया। उनका गायन राधाखंडी शैली में पारंपरिक प्रेम गीतों के माध्यम से विशेष रूप से लोकप्रिय था।
  7. बचन देई की मृत्यु कब हुई और किस कारण से?

    • बचन देई की मृत्यु 4 नवम्बर 2013 को हुई। वे लंबे समय से फेफड़ों के संक्रमण से जूझ रही थीं, और उचित इलाज की कमी के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
  8. बचन देई की लोक संगीत में विरासत क्या है?

    • बचन देई की गायन शैली और नृत्य ने गढ़वाल की लोक संगीत परंपरा को जीवित रखा। उनके योगदान के कारण राधाखंडी गायन की शैली को समृद्ध किया गया, और उनका काम अब भी लोक संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित है।
  9. क्या बचन देई को सरकारी सम्मान मिला था?

    • हालांकि बचन देई ने अपने जीवन में कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए, लेकिन उत्तराखंड सरकार की ओर से उन्हें सही स्तर पर सम्मान और चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाई, जिससे उनकी मृत्यु पर सवाल उठे।

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