उत्तराखण्ड की जलवायु एवं मृदा
उत्तराखण्ड की जलवायु
उत्तराखण्ड की जलवायु विभिन्न भौगोलिक और ऊँचाई के आधार पर विभाजित की गई है। राज्य में छह प्रमुख जलवायु क्षेत्र पाए जाते हैं:
- उपोष्ट जलवायु क्षेत्र (900 मीटर तक)यह क्षेत्र भाबर, तराई और दून क्षेत्र में स्थित है। यहाँ की जलवायु उपोष्ण होती है, जो गर्म और आर्द्र होती है।
- गर्म शीतोष्ण जलवायु क्षेत्र (900-1800 मीटर)इस क्षेत्र की जलवायु गर्म शीतोष्ण होती है, जहाँ गर्मी और सर्दी का संतुलन रहता है। इस ऊँचाई पर जंगलों का समृद्ध विकास होता है।
- शीत शीतोष्ण जलवायु क्षेत्र (1800-3000 मीटर)इस क्षेत्र में ठंडक का प्रभाव अधिक होता है, और यहाँ की जलवायु शीत शीतोष्ण होती है, जो बर्फबारी के लिए भी प्रसिद्ध है।
- अल्पाइन जलवायु क्षेत्र (3000-4200 मीटर)इस क्षेत्र की जलवायु अल्पाइन होती है, जहाँ ठंड अधिक होती है और बर्फीले इलाके अधिक होते हैं।
- हिमानी जलवायु क्षेत्र (4200 मीटर से ऊपर)यहाँ की जलवायु अत्यंत ठंडी होती है, और यह क्षेत्र हमेशा बर्फ से ढका रहता है।
- शीत शुष्क जलवायु क्षेत्र (2500-3500 मीटर)इस क्षेत्र में शीतल और शुष्क जलवायु पाई जाती है, जहाँ वर्षा की मात्रा बहुत कम होती है और तापमान भी काफ़ी कम रहता है।
उत्तराखण्ड की जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में अक्षांशीय स्थिति, वायुदाब और पवनों की गति शामिल हैं। यहाँ की जलवायु हिमाचल प्रदेश की तुलना में अधिक गर्म और आर्द्र होती है।
उत्तराखण्ड की प्रमुख ऋतुएँ
उत्तराखण्ड में ऋतुओं का विश्लेषण मुख्य रूप से तीन प्रमुख ऋतुओं में किया जाता है:
- ग्रीष्म ऋतु (मार्च से जून तक)ग्रीष्म ऋतु में तापमान काफी बढ़ जाता है, विशेष रूप से दून घाटी और पन्तनगर जैसे स्थानों पर। इस समय अधिकतम तापमान पन्तनगर में होता है, जबकि जोशीमठ में न्यूनतम तापमान रिकॉर्ड किया जाता है।
- वर्षा ऋतु (जुलाई से अक्टूबर तक)वर्षा ऋतु में दक्षिण-पश्चिमी मानसून से उत्तराखण्ड में भारी वर्षा होती है। इस दौरान, शिवालिक और भावर क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा होती है। वर्षा की कुल मात्रा 150-200 सेमी तक होती है।
- शीत ऋतु (नवंबर से मार्च तक)शीत ऋतु में उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में ठंड का असर बढ़ जाता है। इस दौरान, पश्चिमी चक्रवात से वर्षा होती है और राज्य के ऊँचे क्षेत्रों में बर्फबारी होती है।
उत्तराखण्ड में ग्रीष्म ऋतु को रुड़ी, वर्षा ऋतु को यसक्याल (चौमासा), और शीत ऋतु को यून्द कहा जाता है। शीत ऋतु में सबसे अधिक वर्षा पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, अल्मोड़ा और देहरादून जैसे क्षेत्रों में होती है।
उत्तराखण्ड की मृदाएँ
उत्तराखण्ड की मृदा पर्वतीय प्रकार की होती है, जो मुख्य रूप से अपरदन (erosion) से प्रभावित होती है। इसके अलावा, यहाँ की मृदा में चूना और फॉस्फोरस की कमी पाई जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली मृदाओं के प्रकार निम्नलिखित हैं:
- टर्शियरी मृदायह मृदा मुख्य रूप से शिवालिक पहाड़ियों और दून घाटी में पाई जाती है। यह हल्की बलुई और छिद्रमय होती है।
- क्वार्ट्ज मृदायह मृदा नैनीताल जिले के भीमताल क्षेत्र में पाई जाती है। इसकी प्रकृति हल्की और अनुपजाऊ होती है।
- दोमट मृदायह मृदा शिवालिक पहाड़ियों के निचले ढालों और दून घाटी में पाई जाती है। इसकी विशेषताएँ हल्का चिकनापन, चूना, लौह अंश और जैव पदार्थों की उपस्थिति हैं।
- ज्वालामुखी मृदायह मृदा भीमताल क्षेत्र (नैनीताल) में पाई जाती है, जिसका निर्माण आग्नेय चट्टानों के टूटने से हुआ है।
- पर्वतीय छिछली मृदायह मृदा उत्तराखण्ड के कम वर्षा वाले उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है। यह मृदा विशेष रूप से शुष्क जलवायु, वायु अपक्षय और हिमानी अपरदन से प्रभावित होती है।
- चरागाह मृदायह मृदा उच्च पर्वतीय ढालों या घास के मैदानों में पाई जाती है। इसमें कार्बनिक तत्व उच्च मात्रा में होते हैं और इसकी प्रकृति हल्की क्षारीय होती है।
FAQs)
1. उत्तराखंड की जलवायु को किस प्रकार वर्गीकृत किया गया है?
उत्तराखंड की जलवायु को छह प्रमुख क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है:
- उपोष्ण जलवायु क्षेत्र (900 मी तक)
- गर्म शीतोष्ण जलवायु क्षेत्र (900-1800 मी तक)
- शीत शीतोष्ण जलवायु क्षेत्र (1800-3000 मी तक)
- अल्पाइन जलवायु क्षेत्र (3000-4200 मी तक)
- हिमानी जलवायु क्षेत्र (4200 मी ऊपर)
- शीत शुष्क जलवायु क्षेत्र (2500-3500 मी)
2. उत्तराखंड की जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन से हैं?
उत्तराखंड की जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं:
- अक्षांशीय और देशान्तरीय स्थिति
- वायुदाब और पवनों की गति
- ऊंचाई और तापमान
3. उत्तराखंड में ग्रीष्म ऋतु की अवधि कब तक होती है?
उत्तराखंड में ग्रीष्म ऋतु की अवधि मध्य मार्च से जून तक होती है।
4. उत्तराखंड में वर्षा ऋतु कब से कब तक होती है?
उत्तराखंड में वर्षा ऋतु मध्य जून से अक्टूबर तक होती है।
5. उत्तराखंड में शीत ऋतु की अवधि कब से कब तक होती है?
उत्तराखंड में शीत ऋतु की अवधि मध्य अक्टूबर से मध्य मार्च तक होती है।
6. उत्तराखंड में वर्षा की औसत मात्रा क्या है?
उत्तराखंड में औसत वार्षिक वर्षा 150-200 सेमी के बीच होती है।
7. उत्तराखंड के किन क्षेत्रों में सबसे अधिक वर्षा होती है?
उत्तराखंड के शिवालिक, भावर और तराई क्षेत्रों में सबसे अधिक (200 सेमी से अधिक) वर्षा होती है।
8. उत्तराखंड में मृदा की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तराखंड की मृदा पर्वतीय है, जिसमें चूना और फॉस्फोरस की कमी होती है। यह विशेष रूप से अपरदन से प्रभावित होती है, और मृदा कण मोटे होते हैं।
9. उत्तराखंड में कौन-सी मृदा विशेष रूप से दून घाटी में पाई जाती है?
दून घाटी में मुख्य रूप से दोमट मृदा पाई जाती है, जिसमें हल्का चिकनापन, चूना, लौह अंश और जैव पदार्थों की उपस्थिति होती है।
10. उत्तराखंड में ज्वालामुखी मृदा कहां पाई जाती है?
उत्तराखंड में ज्वालामुखी मृदा भीमताल क्षेत्र (नैनीताल) में पाई जाती है, जो आग्नेय चट्टानों से बनी होती है।
11. उत्तराखंड के उच्च क्षेत्रों में पाई जाने वाली मृदा कौन सी है?
उत्तराखंड के उच्च क्षेत्रों में चरागाह मैदान की मृदा पाई जाती है, जो हल्की क्षारीय होती है और इसमें कार्बनिक तत्व उच्च मात्रा में पाए जाते हैं।
12. उत्तराखंड में ग्रीष्म ऋतु के दौरान सबसे अधिक और सबसे कम तापमान कहां होते हैं?
- सर्वाधिक तापमान: पन्तनगर (ऊधमसिंह नगर)
- न्यूनतम तापमान: जोशीमठ
13. उत्तराखंड में वर्षा के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तराखंड में वर्षा मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी वाले मानसून से होती है। इसके अलावा पश्चिमी चक्रवात भी शीत ऋतु में वर्षा का कारण बनता है।
14. उत्तराखंड में 'विण्टर लाइन' क्या है?
विण्टर लाइन वह घटना है, जब शीत ऋतु में सूर्यास्त के समय 15-20 मिनट तक सूर्य की लालिमा लंबी क्षैतिज रेखा के रूप में दिखाई देती है।
15. उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में क्या विशेषता पाई जाती है?
उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में 1000 मीटर से ऊपर के क्षेत्र वर्ष भर हिमाच्छादित रहते हैं।
16. उत्तराखंड में वर्षा ऋतु को स्थानीय भाषा में क्या कहा जाता है?
उत्तराखंड में वर्षा ऋतु को 'यसक्याल' या 'चौमासा' कहा जाता है।
17. उत्तराखंड में 'ओडाल' तूफान क्या है?
उत्तराखंड के निम्न भागों में आने वाले तीव्र वेग के तूफान को 'ओडाल' कहा जाता है।
टिप्पणियाँ