दीबा माँ मंदिर (माँ रशुलांण (रंशुली) दीबा) - एक अद्भुत स्थल की आस्था और आशीर्वाद की कहानी (Diba Maa Temple (Maa Rashulan (Rashuli) Diba))
दीबा माँ मंदिर (माँ रशुलांण (रंशुली) दीबा) - एक अद्भुत स्थल की आस्था और आशीर्वाद की कहानी
🚩 जय माता दी 🚩
दीबा माँ मंदिर, जो उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जनपद में स्थित है, एक अत्यंत पवित्र स्थल है जहाँ भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। यह मंदिर समुद्र तल से 2520 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और गढ़वाल क्षेत्र के इतिहास और आस्था से जुड़ा हुआ है।
दीबा माँ मंदिर |
दीबा माँ मंदिर का ऐतिहासिक महत्व:
दीबा माँ ने इस स्थान पर अवतार लिया था जब गोरखाओं ने पट्टी खाटली पर आक्रमण किया था। कहा जाता है कि दीबा माँ ने पहले एक पुजारी के सपने में दर्शन दिए और इस स्थल की पहचान करवाई। इस स्थान तक पहुँचने का मार्ग टेढ़ी-मेढ़ी गुफाओं से होकर जाता था। माता के दर्शन के लिए पुजारी और उनके भक्तों को कठिन संघर्ष करना पड़ता था। आज भी, जहां माता की मूर्ति स्थापित है, वहां के नीचे एक गुफा स्थित है, जिसे अब ढक लिया गया है।
एक कहानी के अनुसार, पास के गाँव की एक कन्या घास काटने के दौरान अचानक मर गई और उसी कन्या ने देवी रूप में इस स्थान पर अवतार लिया। यहाँ के प्रसाद में रसूली पेड़ के पत्ते होते हैं, जो अत्यधिक धार्मिक महत्व रखते हैं।
दीबा माँ की चमत्कारी शक्तियाँ:
दीबा माँ के बारे में एक मान्यता यह भी है कि वह गोरखाओं की आक्रमण से इस क्षेत्र की रक्षा करती थीं और सूचना देने के लिए इस स्थान पर स्थित एक विशेष पत्थर का उपयोग करती थीं। इस पत्थर को जिस दिशा में घुमाया जाता, वहाँ बारिश होने लगती थी। यह स्थान गढ़वाली भाषा में "धवड़्या" कहलाता है, जिसका अर्थ है आवाज लगाना।
विशेष पूजा और आयोजन:
दीबा माँ के मंदिर में पूजा (अठवाड) का आयोजन हर तीन या पाँच वर्षों में किया जाता है। यह आयोजन गढ़कोट ग्रामसभा द्वारा किया जाता है, जिसमें ढोल-दमाऊ, निशाण और पारंपरिक यंत्रों के साथ जात (धार्मिक जुलूस) निकाली जाती है। भक्तगण विशेष रूप से सुबह सूर्योदय से पहले माता के दर्शन करने के लिए चढ़ाई करते हैं, जो उनके लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है। यहाँ का सूर्य देवता का दर्शन किसी शिशु की तरह प्रतीत होता है और फिर कांसे की थाली की तरह दिव्य रूप में दिखाई देता है।
दीबा माँ मंदिर |
दीबा माँ के चमत्कारी दर्शन:
माँ रशुलांण दीबा के दर्शन करने के लिए विशेष नियम होते हैं। यदि कोई व्यक्ति परिवार में मृत्यु या नए बच्चे के जन्म के बाद शुद्धि नहीं करवा चुका है, तो वह यहाँ नहीं पहुँच सकता है। इसके विपरीत, कोई भी उम्रदराज या बच्चा यहाँ आसानी से चढ़ाई कर सकता है और मंदिर तक पहुँच सकता है। यहाँ के रास्ते में एक जल स्रोत भी है, जिसे लोग अपनी गगरी में भरकर मंदिर में लाते हैं और उसे पीने से कई भक्तों की प्यास बुझती है।
दीबा माँ मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:
दीबा माँ का एक और नाम रशुलन दीबा है, और उनके दर्शन बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इस स्थान पर दीबा माँ की पूजा को एक विशेष रीतियों से संपन्न किया जाता है और यह पूजा क्षेत्रीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। गाँव-गाँव के लोग यहाँ आकर माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
दीबा माँ मंदिर तक पहुंचने के मार्ग:
माँ रशुलांण दीबा मंदिर तक पहुंचने के लिए कई रास्ते हैं, जिनमें प्रमुख है पोखड़ा से शुरू होने वाली पैदल यात्रा। यह यात्रा कठिन और दुर्गम रास्तों से होकर गुजरती है, जहां पर श्रद्धालु बिना किसी समस्या के रात में भी यात्रा करते हैं। मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद, यहाँ की सुंदरता और दिव्यता में काफी वृद्धि हुई है, और यह मंदिर अब भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
दीबा माँ का भव्य मंदिर:
2009 में गढ़कोट ग्रामसभा के भक्तगणों ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया था, जिससे यह अब एक भव्य और दिव्य स्थल बन चुका है। मंदिर के नए रूप के निर्माण में लगभग 22 लाख रुपये खर्च हुए थे, जो कि गढ़कोट ग्रामसभा द्वारा प्रदान किए गए थे। यह मंदिर अब स्थानीय प्रशासन के पंजीकरण में भी है।
निष्कर्ष:
दीबा माँ मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह उत्तराखंड की संस्कृति, आस्था और गौरव का प्रतीक भी है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु अपनी आस्था के साथ हर मनोकामना पूरी करने की उम्मीद लेकर आते हैं। यह स्थल न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जय दीबा माँ की!
टिप्पणियाँ