दीवान सिंह कनवाल | जीवनी | कुमाऊँनी गायक
उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर में अल्मोड़ा के दीवान सिंह कनवाल का नाम विशेष स्थान रखता है। कुमाऊंनी संगीत और लोक कला के इस महानायक ने अपने गीतों से ना केवल कुमाऊं बल्कि समूचे उत्तराखंड का नाम रोशन किया है। उनकी गायकी का सफर लगभग 35 वर्षों का है और इस दौरान उन्होंने कई कुमाऊंनी गाने गाए हैं, जो आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।
शुरुआत और शिक्षा दीवान सिंह कनवाल का जन्म अल्मोड़ा के खत्याड़ी गांव में हुआ। वे 1983 में एम.कॉम की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए और इसके बाद उन्होंने बी ग्रेड आकाशवाणी नजीबाबाद से गायन की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने बी हाई ग्रेड आकाशवाणी अल्मोड़ा से भी गायन में अपनी पहचान बनाई। स्वर्गीय जीवन बिष्ट जी ने उन्हें फिल्म 'मेघा आ' में गाने का पहला अवसर प्रदान किया, जिससे उनका गायन सफर शुरू हुआ। इसके साथ ही उन्होंने लेखन भी शुरू किया और अपने लिखे हुए गीतों को खुद ही गाया और कम्पोज़ किया।
रामलीला और थियेटर से गायकी की ओर बचपन में दीवान जी ने रामलीलाओं में कई किरदारों का मंचन किया। उन्होंने अल्मोड़ा के हुक्का क्लब से रामलीला में मंदोदरी का पहला रोल निभाया। इससे उनका गायन में रुचि बढ़ी और धीरे-धीरे थियेटर की ओर भी उनका रुझान बढ़ा। 1984 में वे दिल्ली गए और मोहन उप्रेती जी के थियेटर ग्रुप पृथ्वी लोक कला केन्द्र से जुड़ गए। दिल्ली में रहते हुए उन्होंने लोक नाटकों का मंचन किया और गायकी की तकनीक को भी सीखा।
लोक नाटकों और फिल्मों में योगदान दीवान सिंह कनवाल ने कई लोक नाटकों का निर्देशन किया है, जिनमें 'कल बिष्ट', 'गंगनाथ', 'हरू हीत', 'सुरजू कुँवर जोत माला', 'अजुआ बफौल' जैसे नाटक शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने कुमाऊंनी फिल्मों में भी पार्श्व गायन किया है। उनके कुछ प्रसिद्ध गाने हैं – 'हुड़की घमा घम', 'नंदा चालीसा', 'जय मय्या बाराही', 'जय गोलू देव', 'मेघा आ', 'बलि वेदना', और 'ऐ गे बहार'। उनके गीतों ने हमेशा कुमाऊंनी संगीत को आगे बढ़ाया और युवाओं के बीच एक अलग पहचान बनाई।
कुमाऊंनी संस्कृति में योगदान कनवाल जी का संगीत न केवल उनकी पहचान है, बल्कि उन्होंने कुमाऊंनी लोक संस्कृति को भी संरक्षित रखा है। उनका मानना है कि लोक कला को बढ़ावा देने से नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने में मदद मिलती है। उन्होंने कहा कि पहले के गाने और आज के गाने में अंतर आ गया है, और अब युवा कलाकार नए रूप में संगीत प्रस्तुत कर रहे हैं।
हिमालय लोक कला केन्द्र दीवान सिंह कनवाल न केवल एक गायक हैं, बल्कि वे 'हिमालय लोक कला केन्द्र' के संस्थापक भी हैं। इस संस्था के माध्यम से वे कुमाऊंनी कला और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।
समाज में योगदान और सम्मान दीवान सिंह कनवाल का योगदान केवल संगीत तक सीमित नहीं है। वे सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और अल्मोड़ा में होने वाली रामलीला और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा और वे हमेशा कुमाऊंनी लोक कला के संरक्षक के रूप में याद किए जाएंगे।
आज भी उनके गाए गए गीतों का जादू पहाड़ों में छाया हुआ है, और उनकी गायकी से कुमाऊंनी संगीत का समृद्ध इतिहास जीवित रहता है। उनके आगामी गीतों का इंतजार किया जा रहा है, जो कुमाऊंनी संगीत के संसार में नई ऊर्जा भरेंगे।
Frequently Asked Questions (FQCs) - दीवान सिंह कनवाल
दीवान सिंह कनवाल कौन हैं?
- दीवान सिंह कनवाल एक प्रसिद्ध कुमाऊंनी गायक और संगीतकार हैं, जो कुमाऊंनी लोक संगीत और गायन में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। उन्होंने कुमाऊंनी फिल्म और लोक नाटकों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
दीवान सिंह कनवाल का गायन सफर कैसे शुरू हुआ?
- दीवान सिंह कनवाल का गायन सफर फिल्म 'मेघा आ' से शुरू हुआ, जिसे स्वर्गीय जीवन बिष्ट जी ने उन्हें गाने का अवसर दिया था। इसके बाद उन्होंने कुमाऊंनी संगीत में अपनी पहचान बनाई।
दीवान सिंह कनवाल ने किस थियेटर से जुड़कर गायन में शिक्षा ली?
- 1984 में, दीवान सिंह कनवाल दिल्ली गए और मोहन उप्रेती जी के थियेटर ग्रुप 'पृथ्वी लोक कला केन्द्र' से जुड़ गए, जहां उन्होंने लोक नाटकों की मंचन कला सीखी और गायन में भी अपना कौशल विकसित किया।
क्या दीवान सिंह कनवाल ने लोक नाटकों का निर्देशन किया है?
- हां, दीवान सिंह कनवाल ने कई लोक नाटकों का निर्देशन किया है, जैसे 'कल बिष्ट', 'गंगनाथ', 'हरू हीत', और 'अजुआ बफौल'। उनके निर्देशन में ये नाटक सफलतापूर्वक मंचित हुए हैं।
दीवान सिंह कनवाल के कौन से प्रसिद्ध गाने हैं?
- दीवान सिंह कनवाल के कुछ प्रसिद्ध गाने हैं: 'हुड़की घमा घम', 'नंदा चालीसा', 'जय मय्या बाराही', 'जय गोलू देव', 'मेघा आ', 'बलि वेदना', और 'ऐ गे बहार'।
क्या दीवान सिंह कनवाल ने कुमाऊंनी फिल्मों में भी गाया है?
- हां, दीवान सिंह कनवाल ने कुमाऊंनी फिल्मों में पार्श्व गायन किया है। उनके गाने कुमाऊंनी फिल्म इंडस्ट्री में महत्वपूर्ण योगदान रखते हैं।
दीवान सिंह कनवाल का वर्तमान पेशा क्या है?
- वर्तमान में, दीवान सिंह कनवाल अल्मोड़ा कॉपरेटिव बैंक में ब्रांच मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं।
क्या दीवान सिंह कनवाल ने अपनी गायकी के साथ लेखन भी किया है?
- हां, दीवान सिंह कनवाल ने अपने लिखे हुए गीतों को खुद ही गाया और कम्पोज़ किया है, और इस प्रकार वे एक लेखक भी हैं।
दीवान सिंह कनवाल के संगीत के लिए प्रेरणा कहां से मिली?
- दीवान सिंह कनवाल को गायन और संगीत की प्रेरणा अपने पिता से मिली थी। उनके पिता के प्रभाव से ही उनका कुमाऊंनी संगीत में गहरी रुचि विकसित हुई।
दीवान सिंह कनवाल ने कुमाऊंनी संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए क्या कदम उठाए हैं?
- दीवान सिंह कनवाल 'हिमालय लोक कला केन्द्र' के संस्थापक हैं, जहां वे कुमाऊंनी लोक कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। इसके अलावा, वे विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
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