डोल आश्रम: आध्यात्मिक और ध्यान का ऐसा केंद्र जिसे कहा जाता है उत्तराखंड का पांचवां धाम (Dol Ashram: Such a Center of Spiritual and Meditation)

डोल आश्रम: आध्यात्मिक और ध्यान का ऐसा केंद्र जिसे कहा जाता है उत्तराखंड का पांचवां धाम

उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है, और इसका कारण है यहाँ के प्राचीन देवी-देवता, ऋषि-मुनियों और आध्यात्मिकता की गहरी जड़ें। इस राज्य की वादियाँ, पर्वत, नदियाँ और यहाँ का सांस्कृतिक धरोहर प्रत्येक व्यक्ति को आकर्षित करता है। यही कारण है कि हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ आकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यहाँ के आश्रम न केवल आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं, बल्कि व्यक्ति को मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रदान करते हैं। ऐसा ही एक विशेष स्थान है डोल आश्रम, जो उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। इसे श्री कल्याणिका हिमालय देवस्थानम के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं इस आश्रम के बारे में विस्तार से।

डोल आश्रम का स्थान और वातावरण

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के लमगड़ा ब्लॉक में स्थित डोल आश्रम, शहरी भीड़-भाड़ और तनावपूर्ण जीवन से बहुत दूर, प्रकृति के बीच एक शांति का प्रतीक है। यहाँ पहुंचते ही आपको ताजगी, शांति और प्रकृति का आनंद लेने का मौका मिलता है। हरे-भरे जंगल, ठंडी ताजी हवा, पक्षियों की मधुर ध्वनियाँ और प्राकृतिक सौंदर्य इस आश्रम को एक अद्भुत अनुभव प्रदान करते हैं। यह आश्रम न केवल एक ध्यान केंद्र है, बल्कि एक ऐसी जगह है जहां व्यक्ति अपनी मानसिक और आत्मिक शांति प्राप्त कर सकता है। यहाँ आने से पर्यटक न केवल अपने तनाव को दूर करते हैं, बल्कि आत्मिक संतुलन भी प्राप्त करते हैं।

डोल आश्रम की खासियत

डोल आश्रम की सबसे बड़ी खासियत यहाँ स्थित श्रीपीठम है, जो विश्व का सबसे बड़ा और सबसे भारी श्रीयंत्र है। इस यंत्र का निर्माण 2012 से 2018 के बीच हुआ था, और यह यंत्र अष्ट धातु से निर्मित है, जिसका वजन लगभग डेढ़ टन (150 कुंतल) है। इसे 18 अप्रैल 2018 से लेकर 29 अप्रैल 2018 तक के अनुष्ठानों में स्थापित किया गया था। श्रीयंत्र को धन की देवी माँ लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है और यह वैदिक आस्था को जोड़ने के लिए यहाँ स्थापित किया गया है। इस यंत्र की स्थापना के बाद से यह आश्रम की मुख्य आस्था का केंद्र बन गया है।

श्रीपीठम का आकार भी विशाल है, इसमें एक साथ 500 लोग ध्यान और योग कर सकते हैं। यह स्थान ध्यान के लिए एक आदर्श स्थल बन चुका है, जहां हर किसी को शांति और आंतरिक ऊर्जा का अनुभव होता है।

डोल आश्रम का इतिहास

डोल आश्रम की स्थापना बाबा कल्याणदास जी ने 1991 में की थी। बाबा जी ने 12 साल की आयु में घर छोड़ दिया था और देश के विभिन्न धार्मिक स्थानों का भ्रमण किया था। जब वह कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए, तो वहाँ उन्हें माँ भगवती के दर्शन हुए, जिसके बाद उन्हें हिमालय में एक आश्रम बनाने की प्रेरणा मिली। उन्होंने अल्मोड़ा के हरे-भरे जंगलों में इस आश्रम का निर्माण किया, जो आज एक आध्यात्मिक और ध्यान केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है।

डोल आश्रम की सुविधाएँ

इस आश्रम में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पूरी सुविधा उपलब्ध है। यहाँ रहने, खाने और चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इसके अलावा, एक विशाल मेडिटेशन हॉल है जिसमें एक साथ 500 लोग ध्यान और योग कर सकते हैं। यहाँ संस्कृत विद्यालय भी है, जहाँ आसपास के गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए यहाँ एक डिस्पेंसरी भी है और एक एंबुलेंस की सुविधा भी उपलब्ध है।

इसके अतिरिक्त, आश्रम में 120 लोगों के लिए इन-हाउस मेस, गर्म और ठंडा पानी की सुविधा भी है, जिससे यहां रहने और खाने का अनुभव और भी बेहतर बनता है।

डोल आश्रम क्यों खास है?

डोल आश्रम न केवल एक योग और ध्यान केंद्र है, बल्कि यह उत्तराखंड का पांचवा धाम भी माना जाता है। यहाँ के श्रीयंत्र और श्रीपीठम इसे अन्य आश्रमों से अलग बनाते हैं। इसके विशाल आकार और धार्मिक महत्व के कारण यह जगह लाखों श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुकी है।

कैसे पहुंचे डोल आश्रम

  1. सड़क मार्ग से: आनंद विहार, दिल्ली से बस द्वारा हल्द्वानी पहुंचकर टैक्सी से डोल आश्रम पहुंचा जा सकता है।
  2. ट्रेन द्वारा: निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम रेलवे स्टेशन है, जो आश्रम से लगभग 64 किमी दूर है।
  3. हवाई मार्ग से: निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर हवाई अड्डा है, जो डोल आश्रम से 97 किमी दूर स्थित है।

निष्कर्ष

डोल आश्रम, जो प्रकृति की गोदी में स्थित एक अद्वितीय आध्यात्मिक स्थल है, हर व्यक्ति को आत्मिक शांति और मानसिक स्वास्थ्य प्रदान करने का एक सशक्त माध्यम है। यहाँ का शांत वातावरण, योग और ध्यान केंद्र, और विशाल श्रीयंत्र इसे न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश और विदेशों से श्रद्धालुओं के लिए एक आकर्षण का केंद्र बना चुका है।

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Frequently Asked Questions (FAQ) 


1. डोल आश्रम कहां स्थित है?

डोल आश्रम उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के लमगड़ा ब्लॉक में स्थित है, जो हरे-भरे पहाड़ों और घने जंगलों के बीच एक शांतिपूर्ण स्थान पर स्थित है।


2. डोल आश्रम की स्थापना कब हुई थी?

डोल आश्रम की स्थापना 1991 में तपस्वी बाबा कल्याणदास जी ने की थी।


3. डोल आश्रम को 'उत्तराखंड का पांचवा धाम' क्यों कहा जाता है?

डोल आश्रम को 'उत्तराखंड का पांचवा धाम' इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां पर एक विशाल और विश्व का सबसे बड़ा श्रीयंत्र स्थापित किया गया है, जो धार्मिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है।


4. डोल आश्रम में श्रीयंत्र की क्या विशेषता है?

डोल आश्रम में स्थापित श्रीयंत्र की विशेषता यह है कि यह विश्व का सबसे बड़ा और सबसे भारी श्रीयंत्र है, जो अष्ट धातु से निर्मित है और इसका वजन लगभग 150 कुंतल है।


5. डोल आश्रम में ध्यान और योग की सुविधाएं क्या हैं?

यहां एक विशाल ध्यान और योग कक्ष है, जिसमें 500 लोग एक साथ ध्यान और योग कर सकते हैं। यहां का वातावरण शांति और संतुलन को बढ़ावा देता है।


6. डोल आश्रम के मुख्य आकर्षण क्या हैं?

डोल आश्रम के मुख्य आकर्षण में 126 फुट ऊंचा श्रीपीठम और यहां स्थित श्रीयंत्र शामिल हैं। ये दोनों आश्रम के प्रमुख आकर्षण हैं और श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराते हैं।


7. डोल आश्रम में रहने और खाने की सुविधाएं हैं?

हां, डोल आश्रम में श्रद्धालुओं के लिए रहने और खाने की सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां एक 120 लोगों की क्षमता वाला मेस है, जिसमें गर्म और ठंडा पानी जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।


8. डोल आश्रम में चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं?

हां, डोल आश्रम में एक डिस्पेंसरी है और प्रसव पीड़ित महिलाओं के लिए एंबुलेंस की सुविधा भी उपलब्ध है।


9. डोल आश्रम तक कैसे पहुंचा जा सकता है?

  • सड़क मार्ग से: दिल्ली से आनंद विहार बस स्टेशन से बस द्वारा हल्द्वानी पहुंच सकते हैं और फिर टैक्सी द्वारा आश्रम जा सकते हैं।
  • ट्रेन से: काठगोदाम रेलवे स्टेशन डोल आश्रम के निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो यहां से 64 किमी दूर है।
  • हवाई मार्ग से: पंतनगर हवाई अड्डा डोल आश्रम से 97 किमी दूर है और यहां से टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है।

10. डोल आश्रम का उद्देश्य क्या है?

डोल आश्रम का मुख्य उद्देश्य योग, ध्यान और वैदिक शिक्षा को बढ़ावा देना है। यह आश्रम न केवल आध्यात्मिक साधना का केंद्र है बल्कि यहां गरीब बच्चों के लिए संस्कृत विद्यालय भी संचालित किया जाता है।

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