माणा गांव में घंटाकर्ण मंदिर के कपाट खुले: एक श्रद्धा का उत्सव (Doors of Ghantkarna Temple opened in Mana village: A festival of devotion)

माणा गांव में घंटाकर्ण मंदिर के कपाट खुले: एक श्रद्धा का उत्सव

परिचय:

बदरीनाथ धाम के क्षेत्र रक्षक भगवान घंटाकर्ण का मंदिर, माणा गांव में स्थित है, जो भारत के अंतिम गांव के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ हर साल, बदरीनाथ के कपाट खुलने के डेढ़ महीने बाद, घंटाकर्ण मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोले जाते हैं। इस विशेष अवसर पर माणा गांव के भोटिया जनजाति के ग्रामीणों और तीर्थयात्रियों ने श्रद्धा और भक्ति भाव से मंदिर में पूजा-अर्चना की, साथ ही भजन-कीर्तन का आयोजन किया। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहाँ के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व को भी उजागर करता है।


घंटाकर्ण मंदिर के कपाट खुलने की विशेषता:

हर साल की तरह इस बार भी बृहस्पतिवार को विधिपूर्वक घंटाकर्ण मंदिर के कपाट खोले गए। इस अवसर पर ग्राम प्रधान पंकज बड़वाल, मेला अध्यक्ष मोहन सिंह मोल्फा और अन्य प्रमुख व्यक्तित्वों की उपस्थिति रही। साथ ही, इस दिन से तीन दिवसीय जेठ पुजाई मेला की शुरुआत हुई, जो मंदिर के महात्म्य को और बढ़ाता है।

घंटाकर्ण के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

घंटाकर्ण भगवान को महादेव शिव के भैरव अवतार के रूप में पूजा जाता है। इन्हें उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में प्रमुख रूप से क्षेत्रपाल देवता के रूप में माना जाता है, जो गाँव और इलाके की रक्षा करते हैं। माणा गांव में भगवान घंटाकर्ण के अवतार और उनके क्षेत्रपाल रूप के बारे में कई लोककथाएँ और पुराणिक कथाएँ प्रचलित हैं।

घंटाकर्ण की उत्पत्ति और श्रद्धा:

लोककथाओं के अनुसार, घंटाकर्ण देवता शिव के परम भक्त थे। उनकी पूजा शैव और अन्य धर्मों जैसे जैन और बौद्ध में भी होती है। उन्हें क्षेत्रपाल देवता के रूप में पूरे उत्तराखंड और अन्य क्षेत्रों में पूजा जाता है। घंटाकर्ण का मंदिर हर 12 साल में महाकुंभ के जैसे बड़े मेलों का आयोजन करता है, जैसे कि लोस्तु बडियार गढ़ और अन्य स्थानों में।

धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव:

घंटाकर्ण मंदिर में पूजा के दौरान ढोल-दमाऊं और अन्य स्थानीय वाद्य यंत्रों की ध्वनि के बीच भगवान घंटाकर्ण की पूजा अर्चना की जाती है। खासकर जब बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होते हैं, तब माणा गांव स्थित घंटाकर्ण मंदिर के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं, जो धार्मिक मान्यता के अनुसार एक महत्वपूर्ण कड़ी है।

घंटाकर्ण मंत्र और आराधना:

भगवान घंटाकर्ण की पूजा में एक विशेष मंत्र का जाप किया जाता है, जिसे सर्वरोगों की ओषधि माना जाता है:

श्री घंटाकर्ण मूल मंत्र:

ॐ घंटाकर्ण महावीर, सर्वव्याधि विनाशक,
विस्फोटक भयम प्राप्तो रक्ष रक्ष महाबल||1||

यत्र त्वम् तिष्टते देव, लिखितोअक्षर पंक्तिभी,
रोगास्तत्र पर्णश्यान्ती , वात पित कफोढ्भावा||2||
 
तत्र राज भयं नास्ति, यान्ति कर्ने जपक्ष्यम, 
शाकिनी भूत बेताल, राकक्षासा च प्रभवतिन ||3||

न अकाले मरणम तस्य न सर्पेंन द्स्यन्ते,
अग्निस्चौर भयम नास्ति , घंटाकर्णओ नमोस्तुते ||4||
 
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं घंटाकर्णये ठ: ठ : ठ: स्वाहा 
जय श्री घंटाकर्ण 

समाप्ति:

घंटाकर्ण भगवान के प्रति आस्था और विश्वास यहां के लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। उनके भक्त हर साल इस दिन अपने परिवार और गांव की सुख-समृद्धि के लिए पूजा करते हैं और उनकी आशीर्वाद की कामना करते हैं। श्री घंटाकर्ण के प्रति श्रद्धा और उनकी महिमा का यह उत्सव न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखता है।

अंत में, घंटाकर्ण मंदिर का महत्व सिर्फ एक धार्मिक स्थल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह माणा गांव और बदरीनाथ धाम के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जीवन का एक अहम हिस्सा है।

घंटकर्ण मंदिर (माणा गांव) के लिए FQCs (Frequently Quoted Concepts):

1. बद्रीनाथ के रक्षक देवता (क्षेत्रपाल देवता)

  • घंटकर्ण को बद्रीनाथ धाम के क्षेत्रपाल देवता के रूप में पूजा जाता है।
  • मंदिर के कपाट बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने और बंद होने के साथ ही खोले और बंद किए जाते हैं।

2. अनूठी पूजा और परंपराएं

  • सर्दियों में घंटकर्ण की मूर्ति को एक गुप्त स्थान पर रखा जाता है और वसंत ऋतु में विधिपूर्वक मंदिर में पुनर्स्थापित किया जाता है।
  • जेठ पूजाई मेला तीन दिनों तक चलता है, जो मंदिर के कपाट खुलने के साथ आरंभ होता है।

3. घंटकर्ण की उत्पत्ति

  • घंटकर्ण को शिव के भैरव रूप का अवतार माना जाता है, जो भक्तों की रक्षा और नकारात्मक शक्तियों का नाश करते हैं।
  • वे हिंदू, जैन और बौद्ध परंपराओं से जुड़े हुए हैं और रक्षा एवं समृद्धि के प्रतीक हैं।

4. स्थानीय लोककथाओं से संबंध

  • गढ़वाल में घंटकर्ण को समृद्धि और धन के देवता के रूप में पूजा जाता है।
  • जागर परंपराओं में उन्हें पांडवों के वंशज या भीम और हिडिंबा के पुत्र के रूप में भी वर्णित किया गया है।

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