उत्तराखंड की लोक कला एवं संस्कृति (Folk Art and Culture of Uttarakhand)

उत्तराखंड की लोक कला एवं संस्कृति

उत्तराखंड की लोक कला और संस्कृति अपनी अनूठी परंपराओं, गीतों, नृत्यों और वाद्ययंत्रों के कारण विशेष स्थान रखती है। इस राज्य की सांस्कृतिक धरोहरें पर्वतीय जीवन की कठिनाइयों और प्राकृतिक सुंदरता से प्रेरित हैं।

उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य

धार्मिक और परंपरागत नृत्य

  • धार्मिक नृत्य: देवता को प्रसन्न करने के लिए वाद्ययंत्रों और गीतों के माध्यम से किए जाते हैं।

  • पस्वा: धार्मिक नृत्य के समय जिस व्यक्ति पर देवता आते हैं, उसे पस्वा कहा जाता है।

  • मृत अशांत आत्मा नृत्य: मृतकों की आत्मा की शांति के लिए किया जाने वाला नृत्य, जिसमें रासो गीतों का गायन और डमरू तथा थाली का प्रयोग होता है। इसके प्रकार हैं:

    • चर्याभूत नृत्य

    • हन्त्या भूत नृत्य

    • व्यराल नृत्य

    • सैद नृत्य

    • घात नृत्य

    • छल्या भूत नृत्य

लोक नृत्य

  • रणभूत नृत्य: युद्ध में वीरगति को प्राप्त लोगों के सम्मान में।

  • थड़िया नृत्य: बसंत पंचमी से मेष संक्रांति तक वैवाहिक स्त्रियों द्वारा खुले मैदानों में किया जाता है।

  • चौफुला नृत्य: गढ़वाल क्षेत्र का श्रृंगारिक नृत्य, जिसमें वाद्ययंत्रों का उपयोग नहीं होता। ताली, पैरों की थाप और पाजेब की ध्वनि इसका मुख्य आकर्षण है।

  • छोलिया नृत्य: युद्ध कौशल पर आधारित तलवार नृत्य।

  • रम्माण: मुखोटे पहनकर किया जाने वाला नृत्य जिसे यूनेस्को द्वारा 'विश्व अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर' में शामिल किया गया है।

उत्तराखंड के प्रमुख लोकगीत

  • चौफुला गीत: प्रेम, रति और विरह के भावों से युक्त गीत।

  • झुमैला गीत: बसंत पंचमी से विषुवत संक्रांति तक गाया जाने वाला वेदनापूर्ण गीत।

  • बारहमासा गीत: गढ़वाली स्त्रियों द्वारा बारह महीनों के लक्षणों का वर्णन करते हुए गाया जाता है।

  • बाजूबन्द नृत्य गीत: प्रणय संवाद पर आधारित नृत्य गीत।

  • जागर गीत: देवताओं और पौराणिक व्यक्तियों के सम्मान में गाए जाते हैं।

  • भडी गीत: वीरों की जीवनी से संबंधित गीत।

उत्तराखंड के वाद्ययंत्र

  • ढोल: साल की लकड़ी और तांबे से बना मुख्य वाद्ययंत्र। बाईं ओर बकरी और दाईं ओर बारहसिंघा की खाल चढ़ी होती है।

  • दमाऊं: चंद्र ढोल के साथ बजाया जाने वाला तांबे का वाद्ययंत्र।

  • मशकबीन: थैलीनुमा वाद्ययंत्र जिसमें पाँच बांसुरियां लगी होती हैं।

  • हुड़की: एक फुट लंबा, बकरी की खाल से बना वाद्ययंत्र।

  • मोछंग: पशुचारकों द्वारा बजाया जाने वाला होठों पर टिकाकर अंगुली से बजाया जाने वाला यंत्र।

उत्तराखंड की लोक कला और संस्कृति की यह अनमोल धरोहर सदियों से पर्वतीय जीवन को जीवंत बनाए हुए है। इन सांस्कृतिक परंपराओं के माध्यम से उत्तराखंड की जीवनशैली, रीति-रिवाज और ऐतिहासिक गौरव प्रकट होते हैं।

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