लोक गायक जीत सिंह नेगी - जीवन वृत्त
रचनाएँ (गढ़वाली में)
प्रकाशित
- गीत गंगा : गीत संग्रह
- जौंल मगरी : गीत संग्रह
- छम घुंघुरू बाजला : गीत संग्रह
- मलेथा की कूल : ऐतिहासिक गीत नाटक
- भारी भूल : सामाजिक नाटक
अप्रकाशित
- जीतू बगड्वाल : ऐतिहासिक गीत नाटिका
- राजू पोस्टमैन : एकांकी
- रामी : गीत नाटिका
- पतिव्रता रामी : हिंदी नाटक
- राजू पोस्टमैन : एकांकी हिंदी रूपांतर
लोक गायक जीत सिंह नेगी: उत्तराखंडी लोक के आद्यकवि
उत्तराखंडी लोक संगीत के पितामह और गायक जीत सिंह नेगी के गीत हमेशा पहाड़ी लोक को थिरकाते रहेंगे। उनके हाथों से गीतों का निर्माण हुआ, जो आज भी गढ़वाली संस्कृति और लोकगीतों के कर्णधार माने जाते हैं। उनका योगदान गढ़वाली गीतों के प्रचार-प्रसार में अनमोल रहा है।
गीतों से लोक जीवन में समृद्धि
1955 में आकाशवाणी दिल्ली से गढ़वाली गीतों का प्रसारण शुरू हुआ और इसमें जीत सिंह नेगी को गायक के रूप में पहली बार पहचान मिली। उनका प्रसिद्ध गीत "तू होली ऊंची डांड्यूं मा बीरा घसियारी का भेष मा..." ने सभी उत्तराखंडवासियों को छू लिया। इस गीत ने लोकगीतों के इतिहास में एक नया मोड़ लाया, जिसने लोगों के दिलों में जगह बनाई।
लोक गीतों के साथ-साथ कालजयी नाटकों का रचनाकार
नेगी जी ने गढ़वाली नाटकों की रचना भी की, जिनमें मलेथा की कूल, भारी भूल, और जीतू बगड्वाल प्रमुख हैं। इन नाटकों का मंचन देश के विभिन्न हिस्सों में किया गया। उनका लेखन और गायन दोनों ही उत्तराखंड की लोक संस्कृति के महत्वपूर्ण स्तंभ बने।
संस्कृति और परंपराओं के प्रति आस्था
नेगी जी की कला न केवल लोक संस्कृति की समृद्धि की दिशा में थी, बल्कि उन्होंने हमेशा इसे संजोने और बढ़ावा देने की कोशिश की। उनकी पीड़ा थी कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान को ठेस पहुँच रही है और इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा।
उपलब्धियाँ और योगदान
- गढ़वाली लोकगीतों के विभिन्न लुप्त, अद्र्धलुप्त धुनों को संजोने और रचनाकार के रूप में उनके योगदान को स्वीकार किया गया।
- उन्होंने उत्तराखंड की धुनों को समृद्ध किया और अन्य पहाड़ी प्रदेशों की धुनों को भी सम्मिलित किया।
- उनके द्वारा रचित गीतों और नाटकों का आकाशवाणी दिल्ली, लखनऊ, और नजीबाबाद से प्रसारण हुआ।
नेगी जी का अंतिम संदेश
लोक गायक जीत सिंह नेगी के अंतिम साक्षात्कार में उन्होंने अपनी संस्कृति और लोक गीतों के संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि यदि पहाड़ी गीतों और लोक कला को ध्यान में नहीं रखा गया, तो यह धीरे-धीरे लुप्त हो जाएगी।
FQCs (Frequently Asked Questions)
1. जीत सिंह नेगी का जन्म कब और कहां हुआ था?
- उत्तर: जीत सिंह नेगी का जन्म 2 फरवरी 1925 को उत्तराखंड के ग्राम अयाल पट्टी पैडुलस्यूं, पौड़ी गढ़वाल में हुआ था।
2. जीत सिंह नेगी के माता-पिता कौन थे?
- उत्तर: उनके पिता का नाम सुल्तान सिंह नेगी और माता का नाम रूपदेई देवी था।
3. जीत सिंह नेगी की शिक्षा क्या थी?
- उत्तर: जीत सिंह नेगी की शिक्षा कंडारा (पौड़ी गढ़वाल) से शुरू हुई थी। बाद में उन्होंने मिडिल की शिक्षा म्यांमार (मेमियो) में प्राप्त की और गवर्नमेंट कॉलेज पौड़ी गढ़वाल से मैट्रिक तथा डीएवी कॉलेज देहरादून से इंटरमीडिएट की पढ़ाई की।
4. जीत सिंह नेगी ने अपनी संगीत यात्रा की शुरुआत कब और कैसे की?
- उत्तर: 1955 में आकाशवाणी दिल्ली से गढ़वाली गीतों का प्रसारण शुरू हुआ, और जीत सिंह नेगी को रेडियो पर गायक के रूप में पहली बार मौका मिला। इसके बाद उनके गीतों ने लोक संगीत में एक नई पहचान बनाई।
5. जीत सिंह नेगी के कौन-कौन से प्रसिद्ध गीत और नाटक हैं?
- उत्तर: उनके प्रसिद्ध गीत संग्रहों में गीत गंगा, जौंल मगरी, छम घुंघुरू बाजला शामिल हैं। उनके प्रसिद्ध नाटकों में मलेथा की कूल, भारी भूल, जीतू बगड्वाल और रामी शामिल हैं।
6. जीत सिंह नेगी के गीतों की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?
- उत्तर: उनके गीतों में पहाड़ी जीवन, प्रेम, दुख, अभाव और लोक संस्कृति का वास्तविक चित्रण होता था। उन्होंने कई गीतों के माध्यम से प्रवासी पहाड़ी जीवन के संघर्ष को भी उजागर किया।
7. नेगी जी के गीतों का उत्तराखंडी संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा?
- उत्तर: जीत सिंह नेगी के गीतों ने उत्तराखंडी लोक संस्कृति को समृद्ध किया। उनके गीतों में पहाड़ी जीवन की सरलता, शुद्धता और दर्द को महसूस किया जा सकता है, जिससे यह गीत उत्तराखंड के लोगों के दिलों में हमेशा बसे रहेंगे।
8. नेगी जी ने किस प्रकार के नाटकों की रचना की?
- उत्तर: नेगी जी ने ऐतिहासिक और सामाजिक विषयों पर आधारित नाटकों की रचना की, जैसे कि मलेथा की कूल और भारी भूल। इन नाटकों का मंचन भारत के विभिन्न शहरों में हुआ और ये सांस्कृतिक धरोहर के रूप में पहचाने गए।
9. जीत सिंह नेगी का आखिरी समय कैसा था?
- उत्तर: उनकी वृद्धावस्था में उनका स्वास्थ्य कमजोर हो गया था, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी कला और संस्कृति के प्रति अपने संकल्प को कमजोर नहीं होने दिया। उनका निधन 21 जून 2020 को हुआ।
10. जीत सिंह नेगी का उत्तराखंड की संस्कृति को लेकर क्या दृष्टिकोण था?
- उत्तर: जीत सिंह नेगी उत्तराखंड की संस्कृति को समृद्ध करने के लिए हमेशा चिंतित रहे। उन्होंने लोक गीतों और नाटकों के माध्यम से उत्तराखंड की लोक संस्कृति की रक्षा और संवर्धन की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने उत्तराखंड की भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कई बार आवाज उठाई।
टिप्पणियाँ