इतिहास के भूले-बिसरे पन्नों से: रानी कत्युरी की कहानी (From the forgotten pages of history: The story of Rani Katyuri)

इतिहास के भूले-बिसरे पन्नों से: रानी कत्युरी की कहानी

उत्तराखंड की वीरांगना रानी कत्युरी, जिन्हें हम जिया रानी के नाम से भी जानते हैं, कुमाऊँ के कत्युरी राजवंश की एक अनमोल धरोहर थीं। वे उस समय की एक ऐसी रानी थीं, जिनकी वीरता और संघर्ष की गाथाएँ आज भी उत्तराखंड के कण-कण में गूंजती हैं। उन्हें उत्तराखंड की लक्ष्मीबाई के रूप में भी सम्मानित किया जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने राज्य, अपने लोगों और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए युद्ध लड़ा और एक अमर विरासत छोड़ गए।

कुमाऊं का कत्युरी राजवंश और जिया रानी

कत्युरी राजवंश का इतिहास भारतीय इतिहास के मध्ययुगीन युग से जुड़ा हुआ है, और इस वंश का शासन कुमाऊं क्षेत्र में छठी से ग्यारहवीं सदी तक रहा। इस वंश के राजा सूर्यवंशी कहलाते थे, क्योंकि इनकी उत्पत्ति अयोध्या के शालिवाहन शासकों से मानी जाती थी। कत्युरी राजवंश का प्रमुख केंद्र कुमाऊं था, जहां कई प्रसिद्ध मंदिरों और स्थापत्य कला के अद्भुत उदाहरण बने, जैसे द्वाराहाट, जागेश्वर, और बैजनाथ।

रानी जिया का जन्म और प्रारंभिक जीवन

रानी जिया का वास्तविक नाम मौला देवी था। वे हरिद्वार (मायापुर) के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थीं। उनका विवाह कुमाऊं के कत्युरी सम्राट प्रीतम देव से हुआ। विवाह के बाद मौला देवी को राजमाता का दर्जा मिला और उन्हें जिया रानी के नाम से जाना जाने लगा। उनकी वीरता का क़िस्सा हर ओर फैलने लगा।

तैमूर का आक्रमण और रानी जिया की वीरता

ईस्वी 1398 में मध्य एशिया के लूटेरे शासक तैमूर लंग ने भारत पर आक्रमण किया। तैमूर की सेना ने हरिद्वार और आसपास के क्षेत्रों को रौंदा और हत्याओं तथा धर्म परिवर्तन के साथ अत्याचार किया। इस हमले के बाद पुंडीर राजवंश के सदस्य कुमाऊं के नकौट क्षेत्र में शरण लेने को मजबूर हुए।

जब तैमूर की सेना ने कुमाऊं के पहाड़ी क्षेत्रों की ओर बढ़ने की योजना बनाई, तो जिया रानी ने कुमाऊं के राजपूतों को एकत्रित कर तैमूर की सेना का सामना किया। रानीबाग में एक भीषण युद्ध हुआ, जिसमें तैमूर की सेना को भारी नुकसान हुआ। हालांकि, बाद में अतिरिक्त मुस्लिम सेना के आक्रमण के कारण जिया रानी की सेना को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उनका साहस और वीरता इतिहास में अमर हो गया।

सतीत्व की रक्षा और रानीबाग की कहानी

जब जिया रानी की सेना हार गई, तो उन्होंने सतीत्व की रक्षा के लिए एक गुफा में छिपने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि जिया रानी ने गौला नदी में स्नान करने के दौरान मुस्लिम सेना द्वारा घेर लिए जाने पर शिव के भक्त होने के नाते अपने आपको शिला में बदल लिया। आज भी गौला नदी के किनारे एक शिला पाई जाती है, जिसका आकार कुमाऊँनी घाघरे जैसा है। यह शिला जिया रानी के सतीत्व की प्रतीक मानी जाती है।

रानीबाग और जिया रानी की गुफा

रानीबाग, कुमाऊं के प्रवेश द्वार काठगोदाम के पास स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ जिया रानी की गुफा आज भी पर्यटकों और कत्युरी वंशजों के लिए श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है। प्रतिवर्ष, कत्युरी वंशज यहाँ जिया रानी की स्मृति में इकट्ठा होते हैं और इस वीरांगना को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

अंतिम शब्द

रानी जिया की गाथाएँ केवल कुमाऊं ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड की वीरता और संघर्ष की प्रतीक हैं। उनकी वीरता, साहस और सतीत्व की रक्षा की भावना हमें अपने इतिहास और संस्कृति के प्रति गर्व और सम्मान का अहसास कराती है। वे न केवल कुमाऊं की एक अमर वीरांगना हैं, बल्कि उत्तराखंड की धरती पर गर्व करने का कारण भी हैं। उनकी वीरता और बलिदान को हमेशा याद किया जाएगा, और उनकी गाथाएँ आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।

रानी जीया (मौलम देवी पुनियार) पर FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

  1. रानी जीया (मौलम देवी पुनियार) कौन थीं?

    • रानी जीया, जिनका नाम मौलम देवी पुनियार भी है, कुमाऊं के कत्युरी वंश की एक वीर रानी थीं। उन्हें उत्तराखंड की लक्ष्मीबाई के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने तैमूर के आक्रमण के दौरान अपनी धरती और राज्य की रक्षा के लिए अद्वितीय साहस दिखाया।
  2. रानी जीया का उत्तराखंड के इतिहास में क्या महत्व है?

    • रानी जीया को तैमूर के आक्रमण के समय 1398 में उनके शौर्य और नेतृत्व के लिए याद किया जाता है। उन्होंने कुमाऊं के राजपूतों के साथ मिलकर तैमूर की सेनाओं का मुकाबला किया और अपनी भूमि और लोगों की रक्षा की। उनका साहस और राज्य के प्रति समर्पण उन्हें उत्तराखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान देता है।
  3. रानी जीया का कत्युरी वंश से क्या संबंध था?

    • रानी जीया कत्युरी वंश के राजा पृथ्वीराज देव की पत्नी थीं। उन्होंने अपनी मृत्यु के बाद भी अपने पुत्र धर्मदेव के लिए राज्य की रक्षा की और कत्युरी वंश के शासन को स्थिर रखा।
  4. रानी जीया और तैमूर के खिलाफ प्रसिद्ध युद्ध के बीच क्या संबंध था?

    • 1398 में, जब तैमूर की सेना ने कुमाऊं पर आक्रमण किया, तो रानी जीया ने कुमाऊं के राजपूतों को एकजुट करके तैमूर की सेनाओं से संघर्ष किया। यह युद्ध रानी बाग के पास लड़ा गया था, जहाँ रानी जीया की सेनाओं ने प्रारंभ में विजय प्राप्त की, लेकिन तैमूर की ओर से आई अतिरिक्त सेना के कारण अंत में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।
  5. रानी जीया की वीरता का क्या प्रमाण है?

    • रानी जीया की वीरता और साहस का प्रमाण उनकी नेतृत्व क्षमता, युद्ध कौशल और अपने राज्य के प्रति निष्ठा में देखा जाता है। उनका नाम आज भी उत्तराखंड में उनकी वीरता के लिए श्रद्धा से लिया जाता है।
  6. रानी जीया का उत्तराखंड की संस्कृति पर क्या प्रभाव था?

    • रानी जीया की वीरता और नेतृत्व ने उत्तराखंड की संस्कृति को सशक्त किया। उन्होंने अपनी भूमि की रक्षा करते हुए स्थानीय लोगों में साहस और वीरता की भावना को जगाया। उनकी कहानी आज भी कुमाऊं के लोगों के बीच प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
  7. क्या रानी जीया की कोई स्मारक या स्थल है जहां लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं?

    • रानी जीया के संघर्ष और साहस को याद करते हुए उत्तराखंड में कई स्थानों पर उनके स्मारक और उनके योगदान को सम्मानित किया गया है। विशेष रूप से कुमाऊं क्षेत्र में लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए विभिन्न स्थानों पर जाते हैं।

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