हीरा सिंह राणा: पहाड़ की लोक संस्कृति के अमर गायक (Hira Singh Rana: Immortal singer of the folk culture of the mountain)

हीरा सिंह राणा: पहाड़ की लोक संस्कृति के अमर गायक

परिचय
हीरा सिंह राणा उत्तराखंड की लोक संस्कृति और लोक संगीत के वह अमर कलाकार थे, जिन्होंने अपनी आवाज़ और गीतों के माध्यम से पहाड़ों की सुंदरता, समस्याओं और संघर्षों को हर दिल तक पहुँचाया। 16 सितंबर, 1942 को अल्मोड़ा जिले के डंढोली गांव (मनिला) में जन्मे राणा जी का जीवन पहाड़ों की मिट्टी से जुड़ा हुआ था। उनका प्रारंभिक संघर्ष दिल्ली और कोलकाता में हुआ, लेकिन प्रवास का मोह त्यागकर वे अपने पहाड़ लौटे और लोक संस्कृति के सबसे बड़े वाहक बन गए।

संगीत की शुरुआत
हीरा सिंह राणा ने अपने गीतों से उत्तराखंड की लोकभाषा, संस्कृति और परंपराओं को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। आकाशवाणी, दूरदर्शन और विभिन्न मंचों पर उनके गीतों ने उत्तराखंड की लोक संस्कृति को पहचान दिलाई। उनके गीतों में पहाड़ी जीवन का यथार्थ, प्राकृतिक सुंदरता, सामाजिक संघर्ष और सांस्कृतिक विविधता झलकती है।

लोकगीतों में पहाड़ का चित्रण
हीरा सिंह राणा के गीत पहाड़ों की प्रकृति और मानवीय भावनाओं का अद्भुत संगम हैं। उनके प्रसिद्ध गीत “के भला मनिखा हो हमारा पहाड़ मा” और “बारामासा” में पहाड़ी जीवन की भौगोलिक और सांस्कृतिक झलक मिलती है। गीतों में हर महीने के बदलते मौसम और उससे जुड़े सामाजिक बदलाव को बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

उनके गीत “हे मेरी मानिला डानी, हम तेरी बलाइ ल्यूला” में पहाड़ की भौगोलिक विशेषताओं को भक्ति रस में पिरोया गया है। वहीं, “रंगीला बिंदी घाघरी काई धोती लाल किनार वाइ” जैसे गीतों में श्रृंगार रस और प्रकृति के प्रतीकों का अनूठा प्रयोग दिखता है।

उत्तराखंड आंदोलन में योगदान
हीरा सिंह राणा केवल लोक गायक नहीं, बल्कि उत्तराखंड के आंदोलनों की आवाज़ भी थे। उनके गीत “लसका कमर बांधा, हिम्मत का साथा, फिर भोल उज्याली होली” ने राज्य आंदोलन के दौरान लोगों में जोश भर दिया। इस गीत ने संघर्ष के कठिन समय में पहाड़वासियों को एकजुट होने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी।

प्रकृति और लोकसंस्कृति के प्रति प्रेम
हीरा सिंह राणा ने अपने गीतों में हमेशा पहाड़ों की सुंदरता और दर्द को उकेरा। उनका गीत “त्यर पहाड़, म्यर पहाड़” उत्तराखंड की सच्चाई को बयां करता है—जहां बुजुर्ग पहाड़ों से जुड़े रहते हैं, राजनीति ने पहाड़ों को तोड़ा है, और युवा उन्हें छोड़कर चले गए हैं।

उत्तराखंड लोकसंस्कृति के संरक्षक
राणा जी ने उत्तराखंड के लोकगीतों को विश्व सांस्कृतिक मंच पर स्थापित किया। उनका कविता संग्रह “प्यूली” और “बुरांश” आज भी लोकगीतों की समृद्धि का प्रतीक है। उनके गीतों ने उत्तराखंड की संस्कृति को नई पहचान दिलाई और लोकभाषा, बोली, तथा परंपराओं को जीवित रखा।

समाज के लिए संदेश
हीरा सिंह राणा का संदेश स्पष्ट था—“अपनी लोकभाषा, लोकसंस्कृति और परंपराओं को संजोकर रखना ही हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।” उनका मानना था कि लोकगीतों में छिपी पीड़ा और संदेश को नई पीढ़ी तक पहुँचाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष
हीरा सिंह राणा न केवल उत्तराखंड के लोकगायक थे, बल्कि पहाड़ों की आवाज़ थे। उनके गीत पहाड़ों के दर्द, संघर्ष और सौंदर्य को जीवंत करते हैं। उनका योगदान लोकसंस्कृति के लिए अमूल्य है। आज उनके जन्मदिन पर हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं और उनके द्वारा सिखाए गए लोकगीतों को सहेजने का संकल्प लेते हैं।

प्रसिद्ध पंक्तियाँ:
“त्यर पहाड़, म्यर पहाड़
रौय दुखों कु ड्यौर पहाड़
बुजुरगूं लै ज्वौड़ पहाड़
राजनीति लै ट्वौड़ पहाड़...”

हीरा सिंह राणा के अमर गीत हमें सदा प्रेरणा देते रहेंगे।

FAQs: लोक कवि हीरा सिंह राणा के बारे में

1. हीरा सिंह राणा कौन थे?

हीरा सिंह राणा एक प्रसिद्ध लोक कवि और गीतकार थे, जो उत्तराखंड की लोक संस्कृति और गीतों को देश-विदेश तक पहुंचाने के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में पहाड़ी जीवन, संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता को व्यक्त किया।

2. हीरा सिंह राणा का जन्म कब और कहां हुआ था?

हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को अल्मोड़ा जिले के डंढ़ोली गांव (मनिला) में हुआ था।

3. हीरा सिंह राणा के प्रमुख गीत कौन से थे?

हीरा सिंह राणा के प्रमुख गीतों में "के भला मनिखा हो हमारा पहाड़ मा", "आयु पूस माख", "हे मेरी मानिले हम तेरी बलाइ ल्यूला", "जुग बजाने गया बिनाई" और "लसका कमर बांधा" शामिल हैं।

4. हीरा सिंह राणा के गीतों में किस प्रकार के प्रतीकों का उपयोग किया गया है?

हीरा सिंह राणा के गीतों में पहाड़ी जीवन, प्रकृति, स्थानीय परिधानों और प्राकृतिक संसाधनों जैसे प्रतीकों का प्रयोग किया गया है। उन्होंने अपने गीतों में बंजर पहाड़ों, घाटियों, और गांवों के जीवन को सुंदर रूप में प्रस्तुत किया।

5. हीरा सिंह राणा के गीतों का उत्तराखंड के आंदोलनों में क्या योगदान था?

उनके गीतों ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विशेष रूप से, "लसका कमर बांधा" गीत ने राज्य आंदोलन में नई ऊर्जा का संचार किया और पहाड़ी जनता को संघर्ष के लिए प्रेरित किया।

6. क्या हीरा सिंह राणा ने अपने गीतों में उत्तराखंड के विकास और संघर्षों का चित्रण किया था?

हां, हीरा सिंह राणा ने अपने गीतों में उत्तराखंड के विकास, पलायन, बेरोजगारी और अन्य सामाजिक मुद्दों का चित्रण किया। उन्होंने "त्यर पहाड़ म्यर पहाड़" जैसे गीतों में राज्य की स्थितियों का खंडन किया और सुधार की आवश्यकता जताई।

7. हीरा सिंह राणा ने अपने जीवन में किस प्रकार के गीत गाए?

उन्होंने विभिन्न प्रकार के गीत गाए, जिनमें भक्ति गीत, श्रृंगार गीत, सामाजिक और सांस्कृतिक गीत शामिल हैं। उनके गीतों में पहाड़ी जीवन की सादगी, संघर्ष, और प्यार का सुंदर चित्रण मिलता है।

8. हीरा सिंह राणा का योगदान लोक संगीत और संस्कृति में क्या था?

हीरा सिंह राणा का योगदान लोक संगीत और संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण था। उन्होंने उत्तराखंड की लोक संस्कृति और लोक गीतों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत किया और इसे पहचान दिलाई।

9. हीरा सिंह राणा का कविता संग्रह कब प्रकाशित हुआ था?

1987 में उनका कविता संग्रह "प्युली व बुराशं" प्रकाशित हुआ, जिसमें उनके गीतों और कविताओं का संकलन था।

10. हीरा सिंह राणा का योगदान उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत के लिए क्या था?

हीरा सिंह राणा ने उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को न केवल संजोया, बल्कि उसे देश-दुनिया में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई। उनके गीतों ने पहाड़ी समाज की समस्याओं और सौंदर्य को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया।

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