हिसालू: उत्तराखंड का स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक फल (Hisalu: Delicious and healthy fruit of Uttarakhand)
हिसालू के गुण और फायदे: उत्तराखंड के इस अद्वितीय फल की पहचान
परिचय:
"हिसालू" उत्तराखंड के अल्मोड़ा, नैनीताल और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक अद्वितीय और स्वादिष्ट फल है। यह फल, जो जेठ और आषाढ़ (मई-जून) के महीनों में पकता है, पहाड़ी क्षेत्र की सूखी ज़मीन पर उगने वाली छोटी झाड़ियों में पाया जाता है। इसे कुछ स्थानों पर "हिंसर" या "हिंसरु" भी कहा जाता है, और यह हिमालय की रास्पबेरी के रूप में भी जाना जाता है। इसका लेटिन नाम Rubus elipticus है और यह Rosaceae परिवार की झाड़ी है।
हिसालू के दो प्रकार होते हैं: पीला और काला। पीला हिसालू आम है, जबकि काला हिसालू कम ही मिलता है। इस फल का स्वाद खट्टा और मीठा होता है, और पकने पर यह अधिक मीठा और कम खट्टा हो जाता है। हिसालू इतना कोमल होता है कि इसे हाथ में पकडते ही टूट जाता है और जीभ में रखे जाने पर पिघल जाता है। इस फल का कुमाऊँ के लोकगीतों में भी महत्वपूर्ण स्थान है, जहां इसके स्वाद और आगमन को खुशी से मनाया जाता है। हालांकि, यह फल जल्दी खराब हो जाता है और केवल उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में ही मिलता है।
स्वास्थ्य में हिसालू के लाभ:
एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर: हिसालू में प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर को ताजगी प्रदान करते हैं और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करते हैं।
बुखार में राहत: हिसालू की जड़ों को बिच्छुघास (Indian stinging nettle) की जड़ और जरुल (Lagerstroemia parviflora) की छाल के साथ मिलाकर तैयार किया गया काढ़ा बुखार में रामबाण दवा साबित होता है।
पेट की बीमारियों के लिए: हिसालू की ताजी जड़ से प्राप्त रस का प्रयोग पेट संबंधी बीमारियों को दूर करने में मदद करता है। इसके पत्तियों की ताजगी को ब्राह्मी की पत्तियों और दूर्वा (Cynodon dactylon) के साथ मिलाकर स्वरस निकालने से पेप्टिक अल्सर की चिकित्सा की जाती है।
गले और खांसी की समस्या में: हिसालू के फलों से प्राप्त रस का प्रयोग बुखार, पेट दर्द, खांसी और गले के दर्द में लाभकारी होता है।
तिब्बती चिकित्सा में उपयोग: हिसालू की छाल का उपयोग तिब्बती चिकित्सा पद्धति में सुगंधित और कामोत्तेजक प्रभाव के लिए किया जाता है।
किडनी-टोनिक के रूप में: हिसालू का नियमित उपयोग किडनी-टोनिक के रूप में किया जाता है और यह मूत्र आना (पोली-यूरिया), योनि-स्राव, शुक्र-क्षय और शय्या-मूत्र (बच्चों द्वारा बिस्तर गीला करना) जैसी समस्याओं में भी सहायक होता है।
एंटी-डायबेटिक प्रभाव: हिसालू के फलों से प्राप्त एक्सट्रेक्ट में एंटी-डायबेटिक प्रभाव भी देखे गए हैं।
संरक्षण की आवश्यकता:
हिसालू जैसी वनस्पति को संरक्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि इसे आई.यू.सी.एन. द्वारा वर्ल्ड्स हंड्रेड वर्स्ट इनवेसिव स्पेसीज की लिस्ट में शामिल किया गया है।
हिसालू न केवल स्वाद में अद्वितीय है, बल्कि इसके स्वास्थ्य लाभ भी अनेक हैं। इस अद्भुत फल के बारे में जागरूकता फैलाना और इसे संरक्षित रखना हमारे लिए महत्वपूर्ण है।
टिप्पणियाँ