पृथक उत्तराखंड के संघर्ष का इतिहास /उत्तराखंड राज्य आन्दोलन (History of the struggle for a separate Uttarakhand / Uttarakhand statehood movement )

पृथक उत्तराखंड के संघर्ष का इतिहास: एक सामाजिक-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

उत्तराखंड राज्य का आंदोलन केवल एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं था, बल्कि यह एक सामाजिक और राजनीतिक चेतना का रूप था। यह न केवल एक राज्य की आवश्यकता की अभिव्यक्ति था, बल्कि इसके साथ ही बेहतर समाज और संघर्षशील व्यक्तित्व के निर्माण का भी संकल्प जुड़ा हुआ था। उत्तराखंड राज्य का आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका था और इसने प्रदेश के विकास, संस्कृतियों, और पहाड़ी समाज के हक की आवाज़ उठाई थी।

उत्तराखंड राज्य आंदोलन की शुरुआत

उत्तराखंड राज्य आंदोलन की शुरुआत 1897 में कुमाऊं क्षेत्र से हुई थी। इस समय कुमाऊं पर अंग्रेजों का शासन था, जबकि गढ़वाल में राजतंत्रीय व्यवस्था बनी हुई थी। कुमाऊं के प्रमुख ब्राह्मणों और समाज सेवियों ने 1815 की संधि के बाद कुमाऊं के ब्रिटिश साम्राज्य के संरक्षण में आने की बात महारानी विक्टोरिया को याद दिलाई थी।

स्वतंत्रता संग्राम और क्षेत्रीय नेताओं का योगदान

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उत्तराखंड के क्षेत्रीय नेता जैसे गोविंद बल्लभ पंत, बद्रीदत्त पांडे, और हरगोविंद पंत ने राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती दी। इन नेताओं के योगदान से राज्य की आवश्यकता की भावना ने राष्ट्रीय रूप लिया।

1952 में नया मोड़

1952 में उत्तराखंड राज्य के लिए संघर्ष में एक नया मोड़ आया। इस समय कामरेड पी. सी. जोशी ने राज्य के आंदोलन को मार्क्सवादी दृष्टिकोण से जोड़ा और इसे आर्थिक और सामाजिक दिशा दी। पी. सी. जोशी के नेतृत्व में राज्य की स्वायत्तता की परिकल्पना को और मजबूती मिली।

उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी और उक्रांद का गठन

उत्तराखंड राज्य आंदोलन में 1979 में उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी का गठन हुआ, जिसने राज्य के लिए संघर्ष को और गति दी। 1980 में मसूरी में डॉ. देवीदत्त पंत के नेतृत्व में उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) की स्थापना हुई, जो राज्य के लिए आवाज़ उठाने वाला एक प्रमुख राजनीतिक मंच बन गया। उक्रांद ने राज्य के निर्माण के लिए शान्तिपूर्ण तरीके से आंदोलन करने का संकल्प लिया।

उक्रांद का संघर्ष और विधायी सफलता

उक्रांद के आंदोलन को विधायी और संसदीय चुनावों में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन 1989 में जसवंत सिंह विष्ट के नेतृत्व में उक्रांद ने विधानसभा में उत्तराखंड राज्य के गठन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। उक्रांद ने अपने संघर्ष में एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ जारी किया, जिसमें चंद्रनगर को प्रस्तावित राज्य की राजधानी के रूप में चुना गया।

राजनीतिक संघर्ष और अंततः राज्य का गठन

1990 के दशक में उत्तराखंड राज्य का आंदोलन राजनीतिक दलों के बीच एक गंभीर मुद्दा बन गया। भाजपा और कांग्रेस के बीच शाब्दिक विवाद और राजनीति ने उत्तराखंड राज्य के गठन की दिशा को प्रभावित किया। 1991 में भाजपा ने उत्तराखंड राज्य के लिए जोरदार वकालत की और राज्य के मुद्दे को अपने चुनावी अभियान का हिस्सा बनाया।

उत्तराखंड का गठन और उसका प्रभाव

15 जनवरी, 1992 को उक्रांद ने चंद्रनगर को उत्तराखंड राज्य की प्रस्तावित राजधानी के रूप में घोषित किया और 1993 के मध्यावधि चुनावों में अपनी सक्रियता दिखायी। इन प्रयासों के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ। उत्तराखंड राज्य के गठन ने पहाड़ी समाज की स्थिति को नया दिशा दी और उनके विकास के अवसरों को बढ़ावा दिया।

उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन की घटनाएँ:

उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के दौरान कई हिंसक घटनाएँ हुईं, जिनमें से प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं:

1. खटीमा गोलीकाण्ड (1 सितंबर, 1994)

यह दिन उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का काला दिन माना जाता है, जब पुलिस ने बिना चेतावनी दिए आन्दोलनकारियों पर अंधाधुंध फायरिंग की। इस गोलीकाण्ड में सात आन्दोलनकारी शहीद हो गए, जिनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं:

  • भगवान सिंह सिरौला
  • प्रताप सिंह
  • सलीम अहमद
  • गोपीचन्द
  • धर्मानन्द भट्ट
  • परमजीत सिंह
  • रामपाल

इस घटना में कई अन्य लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे।

2. मसूरी गोलीकाण्ड (2 सितंबर, 1994)

खटीमा गोलीकाण्ड के विरोध में मसूरी में भी आन्दोलन हुआ। पुलिस ने एक बार फिर आन्दोलनकारियों पर गोलीबारी की, जिसमें लगभग 21 लोग घायल हुए और तीन आन्दोलनकारी शहीद हो गए।
शहीद लोग:

  • बेलमती चौहान
  • हंसा धनई
  • बलबीर सिंह
  • धनपत सिंह
  • मदन मोहन ममगई
  • राय सिंह बंगारी

3. मुजफ्फरनगर गोलीकाण्ड / रामपुर तिराहा काण्ड (2 अक्टूबर, 1994)

दिल्ली रैली में जा रहे आन्दोलनकारियों पर मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे में पुलिस ने बर्बरता दिखाई। निहत्थे आन्दोलनकारियों पर गोलियां चलायी गईं और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया। इस घटना में सात आन्दोलनकारी शहीद हो गए।
शहीद लोग:

  • सूर्यप्रकाश थपलियाल
  • राजेश लखेड़ा
  • रविन्द्र सिंह रावत
  • राजेश नेगी
  • सतेन्द्र चौहान
  • गिरीश भद्री
  • अशोक कुमार कैशिव

4. देहरादून गोलीकाण्ड (3 अक्टूबर, 1994)

मुजफ्फरनगर गोलीकाण्ड के बाद देहरादून में भी प्रदर्शन हुए। इस दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज किया और फायरिंग भी की, जिससे तीन आन्दोलनकारी शहीद हो गए।
शहीद लोग:

  • बलवन्त सिंह सजवाण
  • राजेश रावत
  • दीपक वालिया

5. कोटद्वार काण्ड (3 अक्टूबर, 1994)

कोटद्वार में भी पुलिस ने आन्दोलनकारियों पर लाठीचार्ज और राइफल के बट से हमला किया। इस हमले में दो आन्दोलनकारी शहीद हो गए।
शहीद लोग:

  • राकेश देवरानी
  • पृथ्वी सिंह बिष्ट

6. नैनीताल गोलीकाण्ड

नैनीताल में भी विरोध प्रदर्शनों का दौर था, जहाँ पुलिस ने प्रताप सिंह नामक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी।

शहीद लोग:

  • प्रताप सिंह

7. श्रीयन्त्र टापू (श्रीनगर) काण्ड (7-10 नवंबर, 1994)

श्रीयन्त्र टापू पर आन्दोलनकारियों ने आमरण अनशन किया। पुलिस ने इस स्थान पर पहुँचकर हिंसा की, जिसमें दो युवकों की राइफल और लाठी से पीटकर हत्या कर दी।
शहीद लोग:

  • राजेश रावत
  • यशोधर बेंजवाल

इन घटनाओं ने उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन को और भी उग्र बना दिया और राज्य के लिए संघर्ष की दिशा को प्रकट किया।

निष्कर्ष

उत्तराखंड राज्य आंदोलन का इतिहास केवल एक राज्य की आवश्यकता की अभिव्यक्ति नहीं था, बल्कि यह एक संघर्ष था जो समाजिक और राजनीतिक चेतना के साथ जुड़ा हुआ था। इस आंदोलन ने पहाड़ी समाज की आवाज़ को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाया बल्कि उसे एक मजबूत राजनीतिक मंच भी दिया। आज उत्तराखंड की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिति में इस संघर्ष की महत्वपूर्ण भूमिका है।

उत्तराखंड राज्य के गठन से आज भी राज्य के लोग अपनी पहचान और विकास के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और इस आंदोलन का इतिहास हमें यह सिखाता है कि किसी भी संघर्ष में समाज की सक्रिय भूमिका और राजनीतिक समझ की कितनी अहमियत होती है।


Frequently Asked Questions (FQCs) on the History of the Uttarakhand Statehood Struggle (पृथक उत्तराखंड के संघर्ष का इतिहास)

  1. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन कब शुरू हुआ?
    उत्तराखंड राज्य आन्दोलन 1897 में शुरू हुआ था, जब कुमाऊं से इसकी हल्की शुरुआत हुई थी।

  2. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
    उत्तराखंड राज्य आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य एक पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग करना था, ताकि पहाड़ी क्षेत्रों का समुचित विकास हो सके।

  3. उत्तराखंड के राज्य आन्दोलन का शुरुआती कारण क्या था?
    अंग्रेजों द्वारा कुमाऊं पर कब्जा करने के बाद कुमाऊं की राजनीतिक पहचान खत्म हो गई, जबकि गढ़वाल का राजतंत्रीय अस्तित्व बना रहा।

  4. क्या 1815 की संधि का उत्तराखंड के राज्य आन्दोलन से संबंध था?
    हां, 1815 की संधि के बाद कुमाऊं पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया था, जिससे कुमाऊं के लोग अपनी पहचान और स्वतंत्रता को लेकर संघर्ष कर रहे थे।

  5. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान किसने पहाड़ी समाज में सुधार की बात की?
    कामरेड पी. सी. जोशी ने उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में मार्क्सवादी दर्शन को पर्वतीय समाज में लागू किया और आर्थिक आयाम की बात की।

  6. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के कौन-कौन से प्रमुख नेता थे?
    उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में गोविंद बल्लभ पंत, बद्रीदत्त पांडे, हरगोविंद पंत, और पी. सी. जोशी जैसे नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  7. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में कामरेड पी. सी. जोशी का योगदान क्या था?
    कामरेड पी. सी. जोशी ने उत्तराखंड राज्य आन्दोलन को आर्थिक दृष्टि से सशक्त किया और इसे एक सशक्त आन्दोलन का रूप दिया।

  8. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन का महत्वपूर्ण मोड़ कब आया?
    1979 में उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में महत्वपूर्ण मोड़ आया जब 'उत्तराखंड क्रांति दल' का गठन हुआ और राज्य के लिए एक राजनीतिक मंच की आवश्यकता महसूस की गई।

  9. उत्तराखंड राज्य के लिए पहली बार राजनीतिक मंच की शुरुआत कब हुई?
    उत्तराखंड क्रांति दल के गठन के साथ 1979 में राज्य के लिए एक राजनीतिक मंच की शुरुआत हुई।

  10. उत्तराखंड क्रांति दल का प्रमुख लक्ष्य क्या था?
    उत्तराखंड क्रांति दल का मुख्य लक्ष्य पहाड़ी क्षेत्र के आठ जिलों को एक पृथक राज्य का दर्जा दिलवाना था।

  11. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान कितनी बार संविधान पारित हुआ?
    1980 में उत्तराखंड क्रांति दल द्वारा हल्द्वानी में आयोजित महासम्मेलन में उत्तराखंड राज्य के लिए एक संविधान पारित किया गया।

  12. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान किसने पहला ब्लू प्रिंट जारी किया?
    उत्तराखंड क्रांति दल ने 15 जनवरी 1992 को पृथक राज्य के लिए पहला ब्लू प्रिंट जारी किया।

  13. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान गैरसैंण का क्या महत्व था?
    गैरसैंण को उत्तराखंड राज्य के लिए प्रस्तावित राजधानी के रूप में चुना गया था और वहां राज्य निर्माण की नींव रखी गई।

  14. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में भाजपा की भूमिका क्या थी?
    भा.ज.पा. ने उत्तराखंड राज्य आन्दोलन को अपना मुद्दा बनाया और 'उत्तरांचल' शब्द का प्रयोग शुरू किया।

  15. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान मुलायम सिंह यादव का क्या योगदान था?
    1992 में मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखंड राज्य की जरूरत को स्वीकार करते हुए, राज्य के गठन के लिए एक समिति का गठन किया।

  16. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के लिए कौन से प्रमुख राजनीतिक दलों का समर्थन था?
    उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में कांग्रेस और भाजपा जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों का समर्थन मिला, हालांकि प्रारंभ में कांग्रेस विरोधी थी।

  17. उत्तराखंड राज्य के गठन के समय क्या समस्याएं थीं?
    उत्तराखंड राज्य के गठन के समय राजधानी, प्रशासनिक ढांचा और विकास की गति जैसे मुद्दे सामने आए थे।

  18. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान प्रमुख नेता कौन थे जिन्होंने जमानत खोई?
    1993 के मध्यावधि चुनावों में काशी सिंह ऐरी के अलावा अन्य सभी नेता अपनी जमानत खो बैठे थे।

  19. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान सबसे बड़ा झटका क्या था?
    1987 में उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) को विभाजन का सामना करना पड़ा था, जब दल की बागडोर काशी सिंह ऐरी के हाथ में चली गई।

  20. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में किसने पहली बार राज्य निर्माण का प्रस्ताव रखा?
    1992 में जसवंत सिंह विष्ट ने उत्तराखंड राज्य के लिए विधान सभा में पहला प्रस्ताव रखा।

  21. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में कब 'उत्तरांचल' शब्द का प्रयोग शुरू हुआ?
    भा.ज.पा. ने उत्तराखंड आन्दोलन में 'उत्तरांचल' शब्द का प्रयोग 1991 में किया।

  22. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के लिए कौन से प्रमुख संगठन सक्रिय थे?
    उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान 'उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी', 'उत्तराखंड क्रांति दल', और 'उत्तराखंड राज्य संघर्ष समिति' जैसी प्रमुख संस्थाएं सक्रिय थीं।

  23. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में किसने सामाजिक सुधार का काम किया?
    सुन्दरलाल बहुगुणा, कमलाराम, और चण्डी प्रसाद भट्ट जैसे सामाजिक सुधारवादियों ने राज्य आन्दोलन को सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से भी आगे बढ़ाया।

  24. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान शिक्षित युवकों का क्या योगदान था?
    शिक्षित नवयुवकों ने उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में अहम भूमिका निभाई और नये विचारों के साथ आन्दोलन को आगे बढ़ाया।

  25. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में किसने 'मार्क्सवादी दृष्टिकोण' अपनाया?
    कामरेड पी. सी. जोशी ने उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में 'मार्क्सवादी दृष्टिकोण' को अपनाया।

  26. उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद क्या बदलाव आये?
    उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद पहाड़ी क्षेत्रों में विकास की गति बढ़ी और स्थानीय प्रशासन में सुधार हुआ।

  27. उत्तराखंड राज्य के गठन में कौन से प्रमुख नेता शामिल थे?
    उत्तराखंड राज्य के गठन में गोविंद बल्लभ पंत, काशी सिंह ऐरी, जसवंत सिंह विष्ट और इन्द्रमणि बडोनी जैसे प्रमुख नेताओं का योगदान था।

  28. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान किसने सबसे पहले राज्य निर्माण का प्रस्ताव रखा?
    उत्तराखंड क्रांति दल ने 1992 में सबसे पहले उत्तराखंड राज्य निर्माण का प्रस्ताव रखा।

  29. उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद कौन सी समस्याएं सामने आईं?
    राज्य के गठन के बाद संसाधनों की कमी, रोजगार, और बाहरी क्षेत्र से भेदभाव जैसी समस्याएं सामने आईं।

  30. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में किसका योगदान महत्वपूर्ण था?
    सुन्दरलाल बहुगुणा और काशी सिंह ऐरी का योगदान महत्वपूर्ण था, जिन्होंने आन्दोलन को एक नये दिशा दी।

  31. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान कौन से नेता जेल गये थे?
    उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के दौरान कई नेता जेल गए, जिनमें काशी सिंह ऐरी और जसवंत सिंह विष्ट शामिल थे।

  32. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में किसने शांति और लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन चलाने की बात की थी?
    उत्तराखंड क्रांति दल ने 1980 में शांति और लोकतांत्रिक तरीकों से राज्य की मांग को चलाने का संकल्प लिया था।

  33. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में किसने सबसे पहले आंदोलन को सांस्कृतिक दृष्टिकोण से जोड़ा?
    कामरेड पी. सी. जोशी ने आंदोलन को सांस्कृतिक दृष्टिकोण से जोड़ा था, और उसे आर्थिक आयाम दिया था।

  34. उत्तराखंड राज्य आन्दोलन का इतिहास राष्ट्रीय स्तर पर कैसे फैल गया?
    उत्तराखंड राज्य आन्दोलन ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई और कई राष्ट्रीय नेताओं ने इस मुद्दे को अपना समर्थन दिया।

  35. उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद पहाड़ी समाज में क्या बदलाव आए?
    उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद पहाड़ी समाज में सशक्तिकरण, शिक्षा, और सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव आए।

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