जागेश्वर धाम मंदिर: अल्मोड़ा के जागेश्वर धाम में स्वयं विराजित है भोलेनाथ, ये है प्रथम शिवलिंग, जानें इससे जुड़ी कहानी (Jageshwar Dham Temple: Jageshwar Dham of Almora )
जागेश्वर धाम मंदिर: अल्मोड़ा के जागेश्वर धाम में स्वयं विराजित है भोलेनाथ, ये है प्रथम शिवलिंग, जानें इससे जुड़ी कहानी
जागेश्वर धाम उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह समुद्र तल से 1,870 मीटर की ऊंचाई पर और अल्मोड़ा से 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस धाम की विशेषता यह है कि यह भगवान शिव के प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध है और एक धार्मिक स्थल के रूप में महत्वपूर्ण है। यह स्थान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी पर्यटकों को आकर्षित करता है। इस क्षेत्र के घने देवदार के जंगल और आसपास बहती नदी इसे एक अत्यंत शांति और संतुलन का अनुभव देती है।
जागेश्वर धाम का नामकरण कैसे हुआ?
जागेश्वर धाम का नाम 'जाग' और 'ईश्वर' शब्दों से लिया गया है। यहाँ भगवान शिव के एक ज्योतिर्लिंग की उपस्थिति के कारण इसे 'जागेश्वर' कहा जाता है। इस स्थान का महत्व विभिन्न पुराणों में बताया गया है, जिसमें इसे भगवान शिव की तपोस्थली के रूप में विशेष स्थान प्राप्त है। जागेश्वर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व इस बात से भी स्पष्ट होता है कि इसे उत्तराखंड के पांचवे धाम के रूप में माना जाता है।
ऐसी है मान्यता
यहां की मान्यता के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती आज भी एक साथ वृक्ष रूप में विराजमान हैं। देवदार के वृक्षों से घिरी यह घाटी श्रद्धालुओं को एक दिव्य अनुभव प्रदान करती है। खास बात यह है कि यहां आने वाले भक्त मंदिर परिसर में स्थित एक विशाल देवदार के पेड़ की जड़ों से भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन करते हैं। इसे बहुत ही प्राचीन माना जाता है।
जागेश्वर मंदिर समूह और वास्तुकला
जागेश्वर धाम में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर स्थित हैं। इनमें से प्रमुख और सबसे सुंदर मंदिर महामृत्युंजय महादेव का है, जो इस धाम का मुख्य मंदिर भी है। इसके अलावा, भैरव, माता पार्वती, केदारनाथ, हनुमान, मृत्युंजय महादेव, और माता दुर्गा के मंदिर भी यहां स्थित हैं। इन मंदिरों का निर्माण पत्थरों की बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है, और उनकी वास्तुकला केदार शैली में है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण इसके पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व में छिपा है।
भगवान शिव का प्रथम ज्योतिर्लिंग
जागेश्वर धाम में स्थित नागेश्वर शिवलिंग भगवान शिव के प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां भगवान शिव की पूजा सबसे पहले लिंग रूप में की गई थी। इसके अलावा, यह भी माना जाता है कि आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने इस स्थल का दौरा किया और यहां पूजा की परंपरा को सुनिश्चित किया। साथ ही, उन्होंने यहां से दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ व्यवस्थाएं भी बनाई।
मंदिरों की स्थापना और इतिहास
मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव और कुश ने यहां यज्ञ किया था और उन्होंने ही इस मंदिर समूह की स्थापना की थी। इस यज्ञ की पवित्रता और प्रभाव को देखते हुए यहां की भूमि को आशीर्वादित माना जाता है। माना जाता है कि पांडवों ने भी यहां पूजा की थी और उनका यह आश्रय इस स्थान के ऐतिहासिक महत्व को और बढ़ाता है।
महाशिवरात्रि का मेला
जागेश्वर धाम में महाशिवरात्रि के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित होते हैं। यहां शिव की पूजा और हवन का आयोजन विशेष रूप से होता है। इसे 'पंच महा तीर्थ' के रूप में भी देखा जाता है, और इस दौरान यहां आए श्रद्धालु न केवल पूजा करते हैं बल्कि दिव्य अनुभव भी प्राप्त करते हैं।
कैसे पहुंचे जागेश्वर धाम?
जागेश्वर धाम तक पहुंचने के लिए आप ट्रेन, बस या टैक्सी से यात्रा कर सकते हैं। यदि आप दिल्ली या देहरादून से आ रहे हैं, तो आपको पहले काठगोदाम तक ट्रेन से यात्रा करनी होगी। इसके बाद, आप बस या टैक्सी से जागेश्वर तक पहुंच सकते हैं, जो लगभग 135 किमी की दूरी पर है। निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर, जिला नैनीताल में स्थित है।
निष्कर्ष
जागेश्वर धाम एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है जो न केवल अपनी दिव्यता और पुण्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अपनी प्राचीन वास्तुकला और प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी मशहूर है। यहां की धार्मिक मान्यताएं और पौराणिक कथाएं इसे एक आदर्श तीर्थ स्थल बनाती हैं। यदि आप भगवान शिव के भक्त हैं या आध्यात्मिक शांति की तलाश में हैं, तो जागेश्वर धाम एक अविस्मरणीय यात्रा स्थल है।
जागेश्वर धाम मंदिर से संबंधित सामान्य प्रश्न (FAQ)
जागेश्वर धाम कहां स्थित है?
जागेश्वर धाम उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्थित है, जो समुद्र तल से 1,870 मीटर की ऊंचाई पर है और अल्मोड़ा से 37 किलोमीटर दूर है।जागेश्वर धाम का धार्मिक महत्व क्या है?
यह तीर्थ स्थल भगवान शिव के प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध है। इसे उत्तराखंड का पांचवां धाम भी कहा जाता है। यहां भगवान शिव की तपोस्थली मानी जाती है और यह पुराणों में भी उल्लेखित है।जागेश्वर धाम का नाम कैसे पड़ा?
जागेश्वर धाम का नाम भगवान शिव के एक विशेष रूप से प्रतिष्ठित स्थान के रूप में पड़ा, जहां शिव की पूजा लिंग रूप में पहले बार शुरू की गई थी। यहां के पुराणों में भी इस स्थान का जिक्र मिलता है।यहां के मंदिरों की संख्या कितनी है?
जागेश्वर धाम में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं, जिनमें से 124 मंदिरों का समूह अत्यधिक प्राचीन है। इनमें से 4-5 मंदिरों में रोज पूजा-अर्चना होती है।जागेश्वर धाम में कौन-कौन से प्रमुख मंदिर हैं?
जागेश्वर धाम में महामृत्युंजय महादेव, भैरव, माता पार्वती, केदारनाथ, हनुमान, मृत्युंजय महादेव और माता दुर्गा के प्रमुख मंदिर हैं।जागेश्वर धाम में पूजा करने की क्या विशेषताएं हैं?
यहां पूजा करने से पवित्रता और शांति मिलती है। कहा जाता है कि यहां की पूजा से मृत्यु का संकट टल सकता है और मन्नतें पूरी हो सकती हैं, बशर्ते वे मंगलकारी हो।जागेश्वर धाम तक कैसे पहुंचें?
दिल्ली और देहरादून से आप काठगोदाम तक ट्रेन से आ सकते हैं, फिर वहां से बस या टैक्सी से जागेश्वर धाम तक पहुंच सकते हैं। निकटवर्ती हवाई अड्डा पंतनगर है, जो करीब 135 किलोमीटर दूर स्थित है।जागेश्वर धाम की स्थापत्य शैली कैसी है?
जागेश्वर धाम के मंदिरों का निर्माण केदार शैली में हुआ है। यह मंदिर पत्थरों की बड़ी-बड़ी शिलाओं से बने हैं, और इनकी वास्तुकला 7वीं से 12वीं शताब्दी के बीच की मानी जाती है।यहां महाशिवरात्रि पर क्या आयोजन होते हैं?
महाशिवरात्रि के दौरान यहां विशाल मेले और पूजा-पाठ का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। यह समय यहां आने के लिए विशेष रूप से उपयुक्त होता है।क्या जागेश्वर धाम के बारे में कोई ऐतिहासिक मान्यताएं हैं?
हां, मान्यता है कि यहां भगवान राम के पुत्र लव-कुश ने यज्ञ आयोजित किया था और पहले मंदिरों की स्थापना की थी। इसके अलावा, रावण, पांडव और मार्कंडेय ऋषि का भी यहां शिव पूजा का उल्लेख मिलता है।
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