झूसिया दमाई - उत्तराखंड के लोक गायक | जीवनी (Jhoosia Damai - Folk Singer of Uttarakhand | biography)

झूसिया दमाई - उत्तराखंड के लोक गायक | जीवनी

झूसिया दमाई (1910 – 16 नवम्बर 2005) उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक थे, जिन्होंने भड़ौ गायक के रूप में कुमाऊं और नेपाल में अपनी गायकी के लिए पहचान बनाई। उनका जन्म नेपाल के बैतडी जिला स्थित ग्राम बस्कोट में हुआ था, लेकिन उनका परिवार पिथौरागढ़ के धारचूला तहसील के दूंगातोली गाँव में रह रहा था।

जीवन परिचय:

  • जन्म: 1910
  • जन्म स्थान: ग्राम बस्कोट, बैतडी जिला, नेपाल
  • पिता: श्री रानुवा दमी
  • पत्नी: श्रीमती हजारी देवी, श्रीमती सरस्वती देवी
  • व्यवसाय: लोक गायक
  • मृत्यु: 16 नवम्बर 2005

लोक गायक के रूप में पहचान:

झूसिया दमाई का परिवार वर्षों से नेपाल और कुमाऊं के विभिन्न मंदिरों में गाथाएं गाता आया था। उनका परिवार देवताओं के स्तुतिगान के रूप में विशेष रूप से पहचाना जाता था। उन्होंने अपने पिता से लोक गाथाएं सीखी थीं और यह पारंपरिक गायन कला उनकी परंपरा का हिस्सा बन गई थी। झूसिया दमाई का प्रमुख योगदान "भड़ौ गायक" के रूप में था, जहां वह वीरों की गाथाओं और कुमाऊं-नेपाल के ऐतिहासिक संदर्भों को संगीत के माध्यम से प्रस्तुत करते थे।

कुमाऊं और नेपाल के ऐतिहासिक वीर गाथाओं का गायन:

झूसिया दमाई ने 22 प्रमुख वीर गाथाओं का गायन किया था, जिनमें छुराखाती, भीम कठायत, संग्राम कार्की, कालू भण्डारी, उदाई छपलिया, नरसिंह धौनी, और कई अन्य वीरों की गाथाएं शामिल थीं। यह गाथाएं कुमाऊं और नेपाल के वीरता की कथाएं थीं, जो समय के साथ लोक गायक के माध्यम से संजोई गईं। इन वीरों ने राजा विरम देव के खिलाफ संघर्ष किया था और अपने साहसिक कार्यों से अपनी छाप छोड़ी थी।

गायकी की शैली और योगदान:

झूसिया दमाई की गायकी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था उनकी विशिष्ट शैली और बोलों का लयात्मक उच्चारण। उनके गाए हुए गीत और गाथाएं इस क्षेत्र की ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रूप में प्रस्तुत करती थीं। उनका गायन केवल एक मनोरंजन नहीं था, बल्कि यह सांस्कृतिक पहचान और परंपरा को आगे बढ़ाने का एक माध्यम भी था।

व्यक्तिगत जीवन और कड़ी मेहनत:

झूसिया दमाई का जीवन कई संघर्षों से भरा हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में पाँच शादियाँ कीं और इस दौरान उन्होंने कभी भी अपनी गायकी को नहीं छोड़ा। उनकी गायकी में जो भी भावनाएं और जीवन के अनुभव थे, वे उन्हें अपनी रचनाओं में व्यक्त करते थे। उनकी गायन शैली में समय की सच्चाई और जीवन के उतार-चढ़ाव की गहरी समझ थी।

उत्तराखंड और नेपाल की सांझी संस्कृति:

झूसिया दमाई न केवल कुमाऊं, बल्कि नेपाल में भी अत्यधिक प्रसिद्ध थे। उनका जीवन भारतीय और नेपाली संस्कृति की साझा धारा का एक जीवंत उदाहरण था। उन्होंने दोनों देशों के विभिन्न समाजों और परंपराओं के बीच सांस्कृतिक कनेक्शन स्थापित किया था। उनकी गायकी से जुड़े गीतों और गाथाओं में दोनों देशों की सामाजिक और सांस्कृतिक विविधताएं समाहित थीं।

धरोहर और विरासत:

झूसिया दमाई के योगदान को ध्यान में रखते हुए हिमालय संस्कृति और अनुसंधान संस्थान उनकी गायकी और व्यक्तित्व पर शोध कर रहा है। उनका मानना था कि इन गाथाओं को जीवित रखना जरूरी है, क्योंकि कुछ ही वर्षों में यह परंपरा समाप्त हो सकती है। उन्होंने अपनी गायकी के माध्यम से लोक संगीत की महत्वपूर्ण धरोहर को बचाए रखने की कोशिश की।

झूसिया के गीतों का प्रभाव:

झूसिया दमाई के गीतों और गाथाओं का प्रभाव न केवल उनके समय में, बल्कि आज भी महसूस किया जाता है। उनके गीतों में वीरता, त्याग, और प्रेम की गहरी छाप थी। उनका जीवन और उनकी गायकी न केवल उत्तराखंड की लोक कला का हिस्सा है, बल्कि यह नेपाल की सांस्कृतिक धरोहर का भी एक अभिन्न अंग बन चुका है।

"गंगा बीच छाड़ि गे छै, न वार नै पार, तेरे पीछे लागी रयूँ, हाँ बयासी साल में तुमार शरण में आयूँ राजा..."
यह गाना उनकी वीर गाथाओं का हिस्सा था, जिसमें झूसिया ने अपनी व्यक्तिगत पीड़ा और जीवन की कठिनाइयों को व्यक्त किया था।

निष्कर्ष:

झूसिया दमाई उत्तराखंड और नेपाल की लोक संगीत परंपरा के जीवंत प्रतीक थे। उन्होंने अपनी गायकी से न केवल लोक धारा को जीवित रखा, बल्कि एक ऐसी सांस्कृतिक धरोहर को संजोया जो आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचेगी। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता, और उनकी गाथाएं हमेशा जीवित रहेंगी।

Frequently Asked Questions (FQCs) 

1. झूसिया दमाई कौन थे?

उत्तर: झूसिया दमाई एक प्रसिद्ध लोक गायक और वीरगाथा गायक थे, जिनका जन्म 1910 में नेपाल के बैतडी जिला के ग्राम बसकोट में हुआ था। वे विशेष रूप से कुमाऊं और नेपाल के वीरों की गाथाएं गाने के लिए प्रसिद्ध थे।

2. झूसिया दमाई का जन्म स्थान कहाँ था?

उत्तर: झूसिया दमाई का जन्म नेपाल के बैतडी जिले के ग्राम बसकोट में हुआ था। उनका परिवार बाद में पिथौरागढ़ जिले के दूंगातोली गाँव में बस गया था।

3. झूसिया दमाई की गायन शैली क्या थी?

उत्तर: झूसिया दमाई की गायन शैली लोक गाथाओं और वीरगाथाओं पर आधारित थी। वे विशेष रूप से भड़ौ गायक के रूप में प्रसिद्ध थे, जिनकी गाथाओं में कुमाऊं और नेपाल के वीरों की वीरता और संघर्षों का विवरण होता था।

4. झूसिया दमाई ने अपनी गायन की शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?

उत्तर: झूसिया दमाई ने अपनी गायन कला की शिक्षा अपने पिता श्री रानुवा दमाई से प्राप्त की थी, जो खुद भी लोक गायक और दमुआ वादक थे।

5. झूसिया दमाई की प्रमुख काव्य रचनाएं क्या हैं?

उत्तर: झूसिया दमाई की प्रमुख काव्य रचनाओं में महाभारत गाथा, जागर गाथा, विक्रम चंद, मुनशाही, खांशाही, भड़ौ गाथाएं शामिल हैं। उन्होंने कई वीर गाथाओं को गाया और सुनाया जो आज भी प्रचलित हैं।

6. झूसिया दमाई का योगदान क्या था?

उत्तर: झूसिया दमाई का योगदान कुमाऊं और नेपाल की लोक संस्कृति को जीवित रखने में था। उन्होंने वीरगाथाओं और लोक गाथाओं के माध्यम से इस क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति को पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित किया। उनकी गायन शैली और शब्दों में उस समय के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भों का समावेश था।

7. झूसिया दमाई की मृत्यु कब हुई?

उत्तर: झूसिया दमाई का निधन 16 नवम्बर 2005 को हुआ था।

8. झूसिया दमाई के परिवार के अन्य सदस्य कौन थे?

उत्तर: झूसिया दमाई के परिवार में उनकी दो पत्नियाँ, हजारी देवी और सरस्वती देवी शामिल थीं, जो उनके साथ गाथाओं में भाग लिया करती थीं। उनका एक बेटा, चक्रराम दमाई, भी एक प्रसिद्ध कलाकार थे।

9. झूसिया दमाई की गायन परंपरा कहाँ-कहाँ प्रचलित थी?

उत्तर: झूसिया दमाई की गायन परंपरा कुमाऊं और नेपाल दोनों में प्रचलित थी। वे नेपाल के त्रिपुरा सुन्दरी, जगन्नाथ और भगवती मंदिरों में गाथाएं गाते थे, और कुमाऊं में भी विभिन्न मंदिरों और मेलों में अपनी गायन परंपरा को निभाते थे।

10. झूसिया दमाई का संगीत किस प्रकार का था?

उत्तर: झूसिया दमाई का संगीत साधारण लोक संगीत था, जिसमें हुड़के की थाप और पारंपरिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता था। उनका गायन शैली मौखिक परंपरा पर आधारित था और उनकी गाथाओं में वीरता और संघर्ष के साथ सामाजिक संदेश भी होता था।

11. झूसिया दमाई की गायन शैली में क्या खास बात थी?

उत्तर: झूसिया दमाई की गायन शैली में शब्दों का संगीतमय और लयात्मक उच्चारण था, जो जटिलता को और बढ़ा देता था। उनके गायन में कुमाऊं और नेपाल की सांस्कृतिक धरोहर का मिश्रण था, जो उनके गाने को अद्वितीय बनाता था।

12. झूसिया दमाई के योगदान को लेकर कोई शोध हो रहा है?

उत्तर: हां, हिमालय संस्कृति एवं अनुसंधान संस्थान द्वारा झूसिया दमाई के व्यक्तित्व और गायन शैली पर शोध किया जा रहा है, ताकि उनकी कला और लोक परंपरा को संरक्षित किया जा सके।

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