मंगलेश डबराल: समकालीन हिंदी कविता का अद्वितीय नाम (Manglesh Dabral: The unique name of contemporary Hindi poetry)
मंगलेश डबराल: समकालीन हिंदी कविता का अद्वितीय नाम
मंगलेश डबराल (16 मई 1948 - 9 दिसम्बर 2020) भारतीय हिंदी कविता के महान कवियों में एक महत्वपूर्ण नाम है। उत्तराखंड के काफलपानी गांव में जन्मे मंगलेश डबराल ने अपनी कविताओं से समकालीन समाज, राजनीति और संस्कृति के जटिल पहलुओं को गहरे तरीके से उजागर किया। वे न केवल कवि थे, बल्कि एक समर्पित लेखक, अनुवादक और संपादक भी थे।
जीवन परिचय
मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई 1948 को टिहरी गढ़वाल के काफलपानी गांव में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई। बाद में, वे दिल्ली चले आए और हिंदी पत्रकारिता में अपना योगदान दिया। उन्होंने हिंदी पैट्रियट और प्रतिपक्ष जैसी पत्रिकाओं में कार्य किया और बाद में, पूर्वाग्रह जैसी साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका के सहायक संपादक रहे।
साहित्य जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के बाद, मंगलेश डबराल ने जनसत्ता में साहित्य संपादक के रूप में भी कार्य किया। उनके लेखन और संपादन कार्य ने उन्हें एक सम्मानित साहित्यकार बना दिया। वे नेशनल बुक ट्रस्ट से भी जुड़े रहे और साहित्य के क्षेत्र में अपना योगदान दिया।
निधन
मंगलेश डबराल का निधन 9 दिसम्बर 2020 को कोरोना से संक्रमित होने के कारण गाजियाबाद के एक अस्पताल में हुआ। उनका निधन साहित्य जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति थी।
प्रमुख कृतियाँ
मंगलेश डबराल के काव्य संग्रहों की सूची इस प्रकार है:
- पहाड़ पर लालटेन (1981)
- घर का रास्ता (1988)
- हम जो देखते हैं (1995)
- आवाज़ भी एक जगह है
- नए युग में शत्रु
इसके अलावा, उनके गद्य संग्रह लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन भी पाठकों के बीच बहुत प्रसिद्ध हुए। एक बार आयोवा उनके यात्रा वृतांत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
सम्मान और पुरस्कार
मंगलेश डबराल को उनकी काव्य-रचनाओं के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए। इनमें ओमप्रकाश स्मृति सम्मान (1982), श्रीकान्त वर्मा पुरस्कार (1989), और साहित्य अकादमी पुरस्कार (2000) जैसे सम्मान शामिल हैं। उन्हें हिंदी अकादमी द्वारा साहित्यकार सम्मान भी प्राप्त हुआ था।
अनुवाद कार्य
मंगलेश डबराल की कविताओं का अनुवाद कई प्रमुख विदेशी भाषाओं में हुआ है। इन भाषाओं में अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, डच, फ्रांसीसी, स्पानी, इतालवी, पुर्तगाली, बल्गारी, पोलिश और अन्य शामिल हैं। उनके काव्य-संग्रह आवाज़ भी एक जगह है का इतालवी में अनुवाद अंके ला वोचे ऐ उन लुओगो और अंग्रेजी में दिस नम्बर दज़ नॉट एग्ज़िस्ट के रूप में प्रकाशित हुआ।
कविता में दृष्टिकोण
मंगलेश डबराल की कविताएँ सामान्यतः समाज के निचले तबके, उनकी पीड़ा और संघर्ष को केंद्रित करती थीं। उन्होंने सामंती और पूंजीवादी व्यवस्था का आलोचनात्मक प्रतिकार किया, लेकिन उनका यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के बजाय एक सुंदर स्वप्न रचने के रूप में था। उनके कविता-संग्रहों में यह समकालीन कविता के प्रयोगशीलता, बौद्धिकता और संवेदनशीलता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
मंगलेश डबराल की महत्वपूर्ण कविताएँ
- अन्तराल
- अनुपस्थिति
- अभिनय
- आदिवासी
- आसान शिकार
- जापान: दो तस्वीरें
- नए युग में शत्रु
- होटल
- हमारे देवता
- घटती हुई ऑक्सीजन
निष्कर्ष
मंगलेश डबराल का लेखन भारतीय साहित्य के एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में देखा जाएगा। उनकी कविताओं ने न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान भी दिलाई। उनकी काव्य-रचनाएँ आज भी पाठकों के बीच उतनी ही प्रभावशाली हैं, जितनी पहले थीं। उनका योगदान सदैव याद रखा जाएगा, और उनकी कविताएँ समकालीन साहित्य को प्रेरणा देने का कार्य करती रहेंगी।
मंगलेश डबराल पर FAQ (Frequently Asked Questions)
1. मंगलेश डबराल कौन थे?
मंगलेश डबराल समकालीन हिंदी कविता के महत्वपूर्ण और चर्चित कवि थे। उनका जन्म 16 मई 1948 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के काफलपानी गांव में हुआ था। उन्होंने साहित्यिक दुनिया में अपनी कविताओं, अनुवाद कार्य, और पत्रकारिता के योगदान से एक विशिष्ट स्थान हासिल किया।
2. मंगलेश डबराल के प्रमुख काव्य संग्रह कौन से थे?
मंगलेश डबराल के प्रमुख काव्य संग्रहों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- पहाड़ पर लालटेन (1981)
- घर का रास्ता (1988)
- हम जो देखते हैं (1995)
- आवाज भी एक जगह है
- नए युग में शत्रु
3. मंगलेश डबराल के योगदान का क्या महत्व था?
मंगलेश डबराल का साहित्यिक योगदान न केवल उनकी कविताओं तक सीमित था, बल्कि वे पत्रकारिता, अनुवाद, और समाजिक-राजनीतिक लेखन में भी सक्रिय थे। उनकी कविताओं में समाज में व्याप्त असमानताओं और पूंजीवाद की आलोचना की गई है।
4. मंगलेश डबराल को कौन से पुरस्कार मिले थे?
मंगलेश डबराल को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए, जिनमें प्रमुख हैं:
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (2000) — उनकी कविता संग्रह हम जो देखते हैं के लिए।
- दिल्ली हिन्दी अकादमी का साहित्यकार सम्मान।
- श्रीकान्त वर्मा पुरस्कार (1989)।
- ओमप्रकाश स्मृति सम्मान (1982)।
5. मंगलेश डबराल का निधन कब हुआ था?
मंगलेश डबराल का निधन 9 दिसम्बर 2020 को हुआ। वे कोरोना संक्रमित थे और गाजियाबाद के एक अस्पताल में उनका निधन हुआ।
6. मंगलेश डबराल के कविताओं का अनुवाद किस भाषाओं में हुआ है?
मंगलेश डबराल की कविताओं का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में किया गया है, जिनमें अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, डच, फ्रांसीसी, स्पानी, इतालवी, पुर्तगाली, पोलिश और बुल्गारियाई भाषाएं शामिल हैं।
7. मंगलेश डबराल की कविताओं का क्या मुख्य विषय था?
मंगलेश डबराल की कविताओं में जीवन, समाज, और राजनीति की गहरी समझ दिखाई देती है। वे सामंती बोध और पूंजीवादी छल-छद्म के खिलाफ थे और अपनी कविताओं के माध्यम से एक सुंदर और गहरे विचारों वाली दुनिया का चित्रण करते थे।
8. मंगलेश डबराल का शिक्षा जीवन कहां से हुआ था?
मंगलेश डबराल की शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई थी। इसके बाद उन्होंने दिल्ली और अन्य स्थानों पर कार्य किया और हिंदी साहित्य की दुनिया में अपनी पहचान बनाई।
9. मंगलेश डबराल ने किस पत्रिका में सहायक संपादक के रूप में काम किया था?
मंगलेश डबराल ने पूर्वाग्रह पत्रिका में सहायक संपादक के रूप में काम किया था, जो मध्यप्रदेश कला परिषद्, भारत भवन से प्रकाशित होती थी।
10. मंगलेश डबराल की कविताओं में क्या खास बात थी?
मंगलेश डबराल की कविताओं का भाषा में सौंदर्य और गहराई थी। उनकी कविताओं में समाज की समस्याओं के प्रति गहरी समझ और संवेदनशीलता दिखती थी। वे अपनी कविता में किसी शोर-शराबे के बजाय एक सूक्ष्म और विचारपूर्ण स्वप्न की रचना करते थे।
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