मोहन उप्रेती: उत्तराखंडी लोक संस्कृति के अमर ध्वजवाहक (Mohan Upreti: The immortal flag bearer of Uttarakhandi folk culture)

मोहन उप्रेती: उत्तराखंडी लोक संस्कृति के अमर ध्वजवाहक

मोहन उप्रेती, उत्तराखंड के एक महान लोक कलाकार, रंगकर्मी और सांस्कृतिक प्रणेता थे, जिन्होंने अपनी कला और संगीत से न केवल पहाड़ों की लोक धरोहर को जीवित रखा, बल्कि उसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पहचान दिलाई। उनकी सांस्कृतिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव 17 फरवरी 1928 को हुआ, जब उनका जन्म रानीधारा, अल्मोड़ा में हुआ। मोहन उप्रेती का नाम उत्तराखंड की सांस्कृतिक धारा में अमिट रूप से अंकित है। उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

लोक संगीत में योगदान और 'बेडू पाको बारामासा' का इतिहास

मोहन उप्रेती की सांगीतिक यात्रा एक ऐतिहासिक घटना से शुरू हुई, जब उन्होंने 'बेडू पाको बारामासा' गीत को अपनी नई धुन और तर्ज में गाया। यह गीत जो कभी कुमाऊं के एक आम लोकगीत के रूप में था, मोहन के द्वारा प्रस्तुत किए जाने पर एक अनूठी धारा में परिवर्तित हो गया। इस गीत की हर पंक्ति में पहाड़ी जीवन की पीड़ा, संघर्ष और सांस्कृतिक चेतना का समावेश था। उनका यह गीत ‘नरैण काफल पाको चैता मेरी छैला’ पूरी दुनिया में गूंजने लगा और उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को नए सिरे से परिभाषित किया।

'मोहन गाता जायेगा': विद्यासागर नौटियाल का संस्मरण

प्रसिद्ध साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल ने अपनी पुस्तक 'मोहन गाता जायेगा' में मोहन उप्रेती को याद करते हुए लिखा है कि उनका योगदान न केवल लोक संगीत में था, बल्कि उनका जीवन खुद एक प्रेरणा था। उनका जेल के अंदर भैरवी गाने का क़िस्सा भी बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ उन्होंने अपनी मधुर आवाज से अन्य कैदियों को भी मंत्रमुग्ध कर दिया। उनका गाया हुआ भैरवी गीत आज भी सुनने वालों के दिलों में जीवित है।

मोहन उप्रेती का रंगमंच और सांस्कृतिक यात्रा

मोहन उप्रेती ने अपने जीवन में लगभग बाइस देशों की यात्रा की और वहां पर्वतीय लोक संस्कृति को प्रस्तुत किया। उन्होंने गढ़वाल और कुमाऊं की लोक कला को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। इसके साथ ही, उन्होंने कई नाटकों का निर्देशन किया और भारतीय लोक कला को एक नया रूप दिया। वे भारतीय कला केंद्र, दिल्ली के कार्यक्रम अधिकारी रहे और ‘पर्वतीय कला केंद्र’ की स्थापना की। उन्होंने लगभग 1500 पर्वतीय कलाकारों को प्रशिक्षित किया और 1200 से अधिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया।

सांस्कृतिक और समाजिक योगदान

मोहन उप्रेती ने लोक कला के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कुमाऊं और गढ़वाल की तेरह लोक कथाओं को मंच पर प्रस्तुत किया, जिनमें ‘रामलीला’ का पहाड़ी बोलियों में अनुवाद कर मंचन करना भी शामिल था। इसके अलावा, वे भारतीय नाट्य संघ और संगीत नाटक अकादमी से भी सम्मानित हुए थे। उनके द्वारा किए गए सांस्कृतिक कार्यों का असर न केवल उत्तराखंड, बल्कि समूचे देश और विदेश में हुआ।

संस्कारों और पुरस्कारों से नवाजे गए

मोहन उप्रेती की कला और सांस्कृतिक योगदान को कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया। 1962 में उन्हें साहित्य कला परिषद द्वारा सम्मानित किया गया, 1981 में भारतीय नाट्य संघ ने संगीत निर्देशन के लिए उन्हें पुरस्कृत किया, और 1985 में संगीत नाटक अकादमी ने उन्हें लोक नृत्यों के लिए पुरस्कार प्रदान किया। इसके अलावा, उन्हें जोर्डन में गोल्डन बियर पुरस्कार भी मिला था।

अमरता का प्रतीक

6 जून, 1997 को मोहन उप्रेती का निधन हुआ, लेकिन उनके द्वारा छोड़ी गई सांस्कृतिक धरोहर और योगदान आज भी हमारे बीच जीवित है। उनके गीत और लोक कला का प्रभाव आज भी उत्तराखंड के घर-घर में सुनाई देता है। मोहन उप्रेती का नाम हमेशा उत्तराखंड की सांस्कृतिक धारा में अमर रहेगा। वे न केवल एक कलाकार थे, बल्कि उन्होंने लोक संगीत और रंगमंच के माध्यम से समाज के भीतर उठने वाली हर बेचैनी को स्वर दिया।

मोहन उप्रेती का जीवन हम सब के लिए प्रेरणा का स्रोत है, और उनका योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता। उनके गीतों और नाटकों के जरिए उत्तराखंडी लोक कला का प्रचार-प्रसार आज भी जारी है और सदियों तक चलता रहेगा।

 FAQs (Frequently Asked Questions) 


1. मोहन उप्रेती कौन थे?

मोहन उप्रेती एक प्रसिद्ध कुमाऊंनी लोक कलाकार, रंगकर्मी और संगीतज्ञ थे। उन्होंने कुमाऊंनी और गढ़वाली लोक कला को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उनकी लोक गाथाएँ और गीत आज भी उत्तराखंड में लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।


2. मोहन उप्रेती का प्रसिद्ध गीत कौन सा है?

मोहन उप्रेती का सबसे प्रसिद्ध गीत "बेडू पाको बारामासा" है, जिसे उन्होंने नई धुन में गाया था। यह गीत कुमाऊंनी लोक संगीत का एक अहम हिस्सा बन चुका है और उत्तराखंड के घर-घर में गाया जाता है।


3. मोहन उप्रेती ने किन देशों में सांस्कृतिक कार्यक्रम किए थे?

मोहन उप्रेती ने अपने जीवन में लगभग 22 देशों की यात्रा की और वहां पर्वतीय लोक संस्कृति का प्रचार किया। इनमें अल्जीरिया, सीरिया, जॉर्डन, रोम, चीन, थाईलैंड और उत्तर कोरिया जैसे देश शामिल हैं।


4. मोहन उप्रेती ने किन क्षेत्रों में योगदान दिया था?

मोहन उप्रेती ने रंगमंच, लोक संगीत, लोक नृत्य, और पर्वतीय कला में अपना अमूल्य योगदान दिया। उन्होंने हजारों कलाकारों को प्रशिक्षित किया और हजारों सांस्कृतिक कार्यक्रमों का संचालन किया।


5. मोहन उप्रेती को किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया?

मोहन उप्रेती को उनके जीवनभर के योगदान के लिए कई महत्वपूर्ण पुरस्कार मिले, जिनमें साहित्य कला परिषद का पुरस्कार, भारतीय नाट्य संघ द्वारा संगीत निर्देशन पर पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी द्वारा लोक नृत्य के लिए पुरस्कार, और सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार शामिल हैं।


6. मोहन उप्रेती का जन्म कब हुआ था?

मोहन उप्रेती का जन्म 17 फरवरी, 1928 को अल्मोड़ा के रानीधारा क्षेत्र में हुआ था।


7. मोहन उप्रेती ने किसे अपनी प्रेरणा माना?

मोहन उप्रेती को कुमाऊंनी संस्कृति और लोक कलाकारों से प्रेरणा मिली। उन्होंने अपने जीवन को सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में जीते हुए, कुमाऊंनी लोक गीतों और नृत्यों को प्रोत्साहित किया।


8. मोहन उप्रेती की सबसे प्रसिद्ध कुमाऊंनी गाथा कौन सी है?

मोहन उप्रेती की सबसे प्रसिद्ध कुमाऊंनी गाथा "बेडू पाको बारामासा" है, जिसे उन्होंने नई धुन और लय में गाया। यह गीत आज भी लोगों के बीच लोक संगीत का एक अहम हिस्सा है।


9. मोहन उप्रेती का योगदान भारतीय लोक कला में क्या था?

मोहन उप्रेती ने भारतीय लोक कला को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को दुनिया भर में फैलाया। उनके गीतों और कार्यक्रमों ने कुमाऊं और गढ़वाल की लोक संस्कृति को एक पहचान दी।


10. मोहन उप्रेती के बारे में प्रसिद्ध लेखक किसे मानते हैं?

सुप्रसिद्ध लेखक विद्यासागर नौटियाल ने अपनी पुस्तक "मोहन गाता जायेगा" में मोहन उप्रेती को एक प्रेरणा स्रोत के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने मोहन के योगदान को संजीवनी शक्ति के रूप में बताया।

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