नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा: एक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल (Nanda Devi Temple Almora: A Historical Religious Site)

नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा: एक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल

NANDA DEVI MANDIR ALMORA IN HINDI

कुमाऊं क्षेत्र का नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर न केवल कुमाऊं क्षेत्र के भक्तों के लिए, बल्कि पूरे उत्तराखंड और भारत के विभिन्न हिस्सों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी एक श्रद्धा का केन्द्र बन चुका है। कुमाऊंनी शिल्प शैली से निर्मित यह मंदिर चंद वंश की ईष्ट देवी मां नंदा को समर्पित है और यह मंदिर 1000 वर्षों से भी पुराना है। इस मंदिर का स्थापत्य और उसकी दीवारों पर उकेरी गई कलाकृतियां इसे विशेष बनाती हैं।

हर साल सितंबर में नंदा देवी मेला आयोजित होता है, जहां हजारों श्रद्धालु आते हैं और यह अवसर एक विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन में बदल जाता है। इस दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है और भव्य शोभायात्राएं निकलती हैं।

नंदा देवी मंदिर का इतिहास

नंदा देवी मंदिर का इतिहास कुमाऊं के चंद शासकों से जुड़ा हुआ है। 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद ने बधाणकोट किले से मां नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा को लाकर अल्मोड़ा में मल्ला महल में स्थापित किया था। इसके बाद राजा जगत चंद ने नंदा देवी की मूर्ति को मल्ला महल में फिर से स्थापित किया। मंदिर की स्थापत्य शैली और उसकी धार्मिक महत्वता समय के साथ और भी बढ़ी, खासकर 17वीं शताब्दी में जब राजा उद्योत चंद ने पार्वतीश्वर और उद्योत चंद्रेश्वर नामक शिव मंदिर बनवाए।

इतिहास के अनुसार, ब्रिटिश कमिश्नर ट्रेल के दृष्टिहीन होने पर नंदा देवी मंदिर की महिमा का अनुभव करते हुए उनकी आंखों की रोशनी फिर से लौट आई, जिससे नंदा देवी के प्रति श्रद्धा और भी बढ़ी।

नंदा देवी मेला

हर साल, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को नंदा देवी मेला अल्मोड़ा में लगता है, जो कि कुमाऊं क्षेत्र के सबसे बड़े मेले में से एक है। इस मेले की शुरुआत कदली वृक्ष (केले के पेड़) की पूजा से होती है। इसके बाद, पारंपरिक रूप में पूजा की जाती है और नंदा देवी की मूर्तियों का निर्माण शुरू होता है। मेला एक भव्य शोभायात्रा के साथ समाप्त होता है, जिसमें मां नंदा की मूर्तियों को भक्तों के विशाल समूह के साथ घुमाया जाता है।

मेला में हजारों लोग पारंपरिक वेशभूषा में शामिल होते हैं और यह मेला सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक विश्वासों का प्रतीक बन जाता है। इस दौरान, नंदा देवी के भक्त अपनी श्रद्धा और आस्था को प्रकट करने के लिए यहां आते हैं।

नंदा देवी राजजात

नंदा देवी राजजात यात्रा कुमाऊं की ऐतिहासिक यात्रा है, जो हर 12 वर्ष में एक बार आयोजित होती है। यह यात्रा मां नंदा के मायके से कैलास भेजने की परंपरा से जुड़ी हुई है, जिसकी शुरुआत 7वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा शालिपाल ने की थी। यात्रा के दौरान देवी की मूर्ति को विभिन्न स्थानों से लेकर गंतव्य तक पहुंचाया जाता है। यह यात्रा कुमाऊं के विभिन्न गांवों से होती हुई अपने गंतव्य तक जाती है और हर पड़ाव पर विशेष पूजा-अर्चना होती है।

राजजात के दौरान देवी की मूर्तियों की विशेष पूजा होती है और देवी के भक्तों द्वारा विभिन्न धार्मिक कार्य संपन्न किए जाते हैं। इस यात्रा के दौरान चारों ओर श्रद्धा का सैलाब उमड़ता है और यात्रा के प्रत्येक पड़ाव पर भक्तों की आस्था दिखाई देती है।

नंदा देवी मंदिर की महत्वता

नंदा देवी मंदिर का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि यह कुमाऊं क्षेत्र के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा है। इस मंदिर के परिसर में कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक स्थल हैं, जिनकी संरचना कुमाऊंनी शिल्प शैली को दर्शाती है।

यह मंदिर न केवल कुमाऊं के लोगों का बल्कि देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं का भी प्रिय स्थल है। यहां आयोजित होने वाला नंदा देवी मेला एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में पहचान बना चुका है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक बन गया है।

नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा का यात्रा करना एक अद्वितीय अनुभव है, जहाँ धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक धरोहर, और ऐतिहासिक महत्व का संगम होता है। यहां की शोभायात्राएं, मेलों, और मंदिर की भव्यता एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती हैं, जो हर श्रद्धालु और पर्यटक को अपने साथ जोड़ती है।

निष्कर्ष

नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह कुमाऊं की समृद्ध संस्कृति और इतिहास का प्रतीक है। यहां हर साल आयोजित होने वाले नंदा देवी मेला और राजजात यात्रा इस मंदिर की महत्वता को और भी बढ़ाते हैं। यह मंदिर न केवल श्रद्धा का केन्द्र है, बल्कि यहां आने वाले लोगों को एक अनोखा सांस्कृतिक और धार्मिक अनुभव प्रदान करता है।

(FAQs) 

1. नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा कहाँ स्थित है?

  • नंदा देवी मंदिर कुमाऊं क्षेत्र के अल्मोड़ा शहर में स्थित है। यह शहर उत्तराखंड राज्य के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है।

2. नंदा देवी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व क्या है?

  • नंदा देवी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व 1000 साल पुराना है। इसे चंद वंश की ईष्ट देवी के रूप में पूजा जाता है। यहां हर साल सितंबर में नंदा देवी मेला आयोजित किया जाता है, जो बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है।

3. नंदा देवी मंदिर का निर्माण कब हुआ था?

  • नंदा देवी मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी के अंत में हुआ था, जब कुमाऊं के राजा उद्योत चंद ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

4. नंदा देवी मेले की खासियत क्या है?

  • नंदा देवी मेला एक प्रसिद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव है, जो प्रतिवर्ष सितंबर में आयोजित होता है। इस मेले में मां नंदा-सुनंदा की भव्य शोभायात्रा निकलती है और लोग पारंपरिक वेशभूषा में भाग लेते हैं।

5. नंदा देवी राजजात यात्रा क्या है?

  • नंदा देवी राजजात यात्रा एक धार्मिक यात्रा है जो गढ़वाल के राजा शालिपाल द्वारा शुरू की गई थी। यह यात्रा हर 12 साल में होती है और यह माता नंदा को हिमालय भेजने की परंपरा का हिस्सा है। यात्रा के दौरान श्रद्धालु विशेष पूजा करते हैं और देवी के दर्शन के लिए विभिन्न पड़ावों पर जाते हैं।

6. नंदा देवी मेला कब आयोजित होता है?

  • नंदा देवी मेला हर साल भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को आयोजित होता है, जो आमतौर पर सितंबर के महीने में आता है।

7. नंदा देवी मंदिर में पूजा कैसे की जाती है?

  • नंदा देवी मंदिर में पूजा तांत्रिक विधि से की जाती है। यहां विशेष पूजा चंद शासकों द्वारा की जाती थी, और आजकल उनके वंशज पूजा में शामिल होते हैं।

8. क्या नंदा देवी मंदिर में जाने के लिए प्रवेश शुल्क है?

  • नंदा देवी मंदिर में प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं है। श्रद्धालु मंदिर में नि:शुल्क पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

9. नंदा देवी मंदिर जाने के लिए कौन सा समय सबसे अच्छा है?

  • नंदा देवी मंदिर जाने के लिए सितंबर महीने में आयोजित नंदा देवी मेला का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि इस दौरान यहां धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। इसके अलावा, साल भर में कोई भी समय यात्रा के लिए उपयुक्त हो सकता है।

10. नंदा देवी मेला में क्या विशेष आकर्षण होते हैं?

  • नंदा देवी मेला में विशेष आकर्षणों में माँ नंदा-सुनंदा की शोभायात्रा, कदली वृक्ष की पूजा, पारंपरिक वेशभूषा में लोग, और मेला स्थल पर सांस्कृतिक गतिविधियां शामिल होती हैं।

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