पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल: एक महान साहित्यकार की जीवनी (Pitambar Dutt Barthwal: Biography of a great litterateur)

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल: एक महान साहित्यकार की जीवनी

पूरा नाम: पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल
जन्म: 2 दिसम्बर, 1901
जन्म भूमि: पाली ग्राम, गढ़वाल, उत्तराखण्ड
मृत्यु: 27 जुलाई, 1944
मृत्यु स्थान: गढ़वाल, उत्तराखण्ड
पिता: पण्डित गौरी दत्त
शिक्षा: एम.ए. (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)
मुख्य रचनाएँ: 'रामानन्द की हिन्दी रचनाएँ', 'गोरखवाणी', 'मकरंद', 'प्राणायाम विज्ञान और कला', 'ध्यान से आत्मचिकित्सा', 'सूरदास जीवन सामग्री' आदि
प्रसिद्धि: साहित्यकार, आलोचक तथा निबंधकार
विशेष: हिन्दी में 'डी.लिट.' की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी

परिचय: पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का जन्म 2 दिसम्बर, 1901 को उत्तराखण्ड के गढ़वाल जिले के पाली ग्राम में हुआ था। उनके पिता पण्डित गौरी दत्त ने उन्हें संस्कृत और हिन्दी की प्रारंभिक शिक्षा दी। बाद में, उन्होंने श्रीनगर (गढ़वाल), लखनऊ और कानपुर में अपनी शिक्षा जारी रखी और अंततः काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री प्राप्त की।

साहित्यिक कार्य: पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल हिन्दी साहित्य के एक महत्वपूर्ण विद्वान थे। वे 'डी.लिट.' की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी थे। उनके शोध कार्य ने हिन्दी साहित्य में नई दिशा दी। उन्होंने 'रामानन्द की हिन्दी रचनाएँ', 'गोरखवाणी' और 'सूरदास जीवन सामग्री' जैसी प्रमुख कृतियाँ लिखी। इसके अलावा, वे 'गोस्वामी तुलसीदास' और 'रूपक रहस्य' के सहलेखक भी रहे।

उन्होंने भक्ति साहित्य, संत साहित्य और योग पर गहरे शोध किए। उनकी रचनाओं में संस्कृत, अवधी, ब्रजभाषा, अरबी और फ़ारसी के शब्दों का समावेश था। वे अपने समय के सबसे महान आलोचकों और शोधकर्ताओं में से एक माने जाते थे।

शोध कार्य और योगदान: पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने 'हिन्दी काव्य में निर्गुणवाद' पर अपने शोध कार्य के लिए 'डी.लिट.' की उपाधि प्राप्त की। उनका शोध कार्य आज भी हिन्दी साहित्य के शोधार्थियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उनके शोध और लेखों में वे संतों और नाथों की रचनाओं का गहन विश्लेषण करते थे। वे भक्ति आंदोलन को भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण विकास मानते थे।

प्रमुख कृतियाँ:

  1. 'रामानन्द की हिन्दी रचनाएँ'
  2. 'गोरखवाणी' (कवि गोरखनाथ की रचनाओं का संकलन और संपादन)
  3. 'सूरदास जीवन सामग्री'
  4. 'मकरंद'
  5. 'प्राणायाम विज्ञान और कला'
  6. 'ध्यान से आत्मचिकित्सा'
  7. 'कवि केशवदास'

मृत्यु और विरासत: पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का निधन 27 जुलाई, 1944 को हुआ। वे बहुत कम आयु में संसार से विदा हो गए, लेकिन अपने कार्यों से उन्होंने हिन्दी साहित्य को नया आयाम दिया। उनकी रचनाएँ आज भी हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

निष्कर्ष: पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने न केवल साहित्यिक कार्यों से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि शोध और आलोचना के क्षेत्र में भी अद्वितीय योगदान दिया। उनके कार्यों का प्रभाव आज भी हिन्दी साहित्य में महसूस किया जाता है। उनके द्वारा किए गए योगदानों की सराहना आज भी की जाती है, और उनकी रचनाएँ साहित्यिक दुनिया में हमेशा जीवित रहेंगी।

Frequently Asked Questions (FAQs) 

1. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल कौन थे?

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल हिन्दी साहित्य के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार, आलोचक और निबंधकार थे। वे हिन्दी साहित्य में 'डी.लिट.' की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी थे और उन्होंने हिन्दी साहित्य की आलोचना और शोध परंपरा को मजबूत किया।

2. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का जन्म 2 दिसम्बर 1901 को उत्तराखण्ड के गढ़वाल जिले के पाली ग्राम में हुआ था।

3. उनकी प्रमुख कृतियाँ कौन सी हैं?

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल की प्रमुख कृतियाँ हैं:

  • 'रामानन्द की हिन्दी रचनाएँ'
  • 'गोरखवाणी'
  • 'मकरंद'
  • 'प्राणायाम विज्ञान और कला'
  • 'सूरदास जीवन सामग्री'
  • 'कवि केशवदास'
  • 'ध्यान से आत्मचिकित्सा' आदि।

4. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने हिन्दी साहित्य में क्या योगदान दिया?

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने हिन्दी साहित्य में शोध और आलोचना की सुदृढ़ परंपरा को स्थापित किया। वे हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू श्यामसुंदर दास की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले थे।

5. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने 'डी.लिट.' की उपाधि कब प्राप्त की?

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने 1933 में 'हिन्दी काव्य में निर्गुणवाद' पर अपने शोध कार्य के लिए 'डी.लिट.' (हिन्दी) की उपाधि प्राप्त की थी। वे स्वतंत्र भारत में इस उपाधि को प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी थे।

6. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल के योगदान का साहित्य जगत पर क्या प्रभाव पड़ा?

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल के योगदान ने हिन्दी आलोचना और शोध की नींव को मजबूत किया। उनके कार्यों ने साहित्यिक अध्ययन की दिशा और शोध विधियों को नए आयाम दिए। उनके शोध और निबंध आज भी शोधकर्ताओं द्वारा उपयोग किए जाते हैं।

7. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल की शिक्षा कहाँ से हुई थी?

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री प्राप्त की और वहाँ हिन्दी के शिक्षक के रूप में कार्य किया।

8. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल की मृत्यु कब हुई थी?

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का निधन 27 जुलाई 1944 को हुआ था।

9. क्या पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल के साथ अन्य साहित्यकार भी जुड़े थे?

जी हां, पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल के साथ कई प्रमुख साहित्यकार जुड़े थे। वे 'गोस्वामी तुलसीदास' और 'रूपक रहस्य' के सहलेखक थे, साथ ही 'कबीर ग्रंथावली' और 'रामचंद्रिका' के संपादक भी रहे थे।

10. क्या पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने अन्य भाषाओं के साहित्य का भी अध्ययन किया था?

हां, पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने संस्कृत, अवधी, ब्रजभाषा, अरबी और फ़ारसी के शब्दों और बोली का प्रयोग अपने शोध और रचनाओं में किया था।

11. उनकी कितनी पुस्तकें अब भी प्रकाशित होती हैं?

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल की कई पुस्तकें 'हिन्दी साहित्य अकादमी' द्वारा अब भी प्रकाशित होती हैं। इसके अलावा, 'वर्डकेट लाइब्रेरी' में भी उनकी कुछ रचनाएँ सुरक्षित हैं।

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