उत्तराखण्ड की मृदा और कृषि | (Soil and Agriculture of Uttarakhand)

उत्तराखण्ड की मृदा और कृषि | Soil and Agriculture of Uttarakhand

उत्तराखंड की मृदा (Soil of Uttarakhand)
उत्तराखंड की मृदा एक प्राकृतिक पिंड है, जो विभिन्न खनिजों, चट्टानों और कार्बनिक पदार्थों के मिश्रण से बनी होती है। राज्य की मृदा विभिन्न प्रकार की है, जिसमें प्रमुख मृदाओं का विवरण निम्नलिखित है:

  1. तराई मृदा (Lowland Soil) - यह मृदा देहरादून से लेकर ऊधम सिंह नगर तक पाई जाती है। यह समतल, दलदली और उपजाऊ होती है, जहां गन्ना और धान की पैदावार होती है।

  2. भॉवर मृदा - यह मृदा शिवालिक के दक्षिण में पाई जाती है, जो कंकड़ों और मोटे बालुओं से बनी होती है और कृषि के लिए अनुपयुक्त मानी जाती है।

  3. चारागाही मृदा (Pasture Soil) - यह मृदा निचले भागों में जलधाराओं के निकट पाई जाती है। यह विभिन्न प्रकार के दोमट होते हैं, जो भूरा, चूनेदार या बलुई हो सकते हैं।

  4. टर्शियरी मिट्टी (Tertiary Soil) - यह मिट्टी हल्की, बलुई और छिद्रमय होती है, जो दून घाटी और शिवालिक की पहाड़ियों में पाई जाती है।

  5. क्वार्ट्ज मिट्टी (Quartz Soil) - यह हल्की और अनुपजाऊ मृदा है, जो नैनीताल के भीमताल क्षेत्र में पाई जाती है।

  6. ज्वालामुखी मिट्टी (Volcanic Soil) - यह मिट्टी हल्की और बलुई होती है, जो नैनीताल जिले के भीमताल क्षेत्र में पाई जाती है।

  7. दोमट मिट्टी (Loamy Soil) - यह मृदा शिवालिक पहाड़ियों के निचले ढालों और दून घाटी में पाई जाती है। इसमें चूना, लौह अंश और जैव पदार्थ होते हैं।

  8. भूरी लाल-पीली मिट्टी (Brown Reddish-Yellow Soil) - यह मिट्टी नैनीताल और मंसूरी के निकट पाई जाती है और इसमें अधिक आद्रता और उपजाऊ तत्व होते हैं।

  9. लाल मिट्टी (Red Clay) - यह मृदा उत्तराखंड के अधिकांश वनीय भागों में पाई जाती है, जिसमें जैव तत्व की अधिकता और चूना व फास्फोरस की कमी होती है।

  10. भस्मी मिट्टी (Burnt Clay) - यह मृदा पर्वतीय क्षेत्रों और समशीतोष्ण देशीय क्षेत्रों में पाई जाती है, जो खेती के लिए उपयुक्त होती है।

उत्तराखण्ड की कृषि (Agriculture of Uttarakhand)
उत्तराखंड कृषि प्रधान राज्य है, जहाँ की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। राज्य में कृषि भूमि की 12.90 प्रतिशत भाग कृषि कार्य में उपयोग होती है। राज्य की प्रमुख कृषि फसलों में गेहूं, धान, मंडुआ और गन्ना शामिल हैं। राज्य में पर्वतीय और मैदानी कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में कृषि कार्य होते हैं, जिनमें से 56 प्रतिशत कृषि भूमि पर्वतीय क्षेत्रों में और 44 प्रतिशत मैदानी क्षेत्रों में आती है।

उत्तराखंड में कृषि भूमि का विभाजन मिट्टी की प्रकृति और सिंचाई सुविधा के आधार पर किया जाता है। राज्य में कृषि भूमि की विशेषताएँ और विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं, जो इस राज्य की कृषि का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

राज्य में कृषि जोतें (Agricultural Holdings in the State)
वर्ष 2015-16 की कृषि गणना के आधार पर प्रदेश में कुल 8,81,305 जोतें हैं। कुल बाये गए क्षेत्रफल का 31 प्रतिशत क्षेत्र गेहूं के अन्तर्गत आता है, जिस कारण यह प्रदेश की मुख्य फसल है। धान 25 प्रतिशत, मंडुआ 10 प्रतिशत, जबकि गन्ना 8 प्रतिशत क्षेत्र में बोया जाता है। राज्य में कृषि भूमि नापने हेतु प्रयुक्त पैमाना मुट्ठी/नाली है।

1 नाली = 200 वर्ग मीटर
50 नाली = 10,000 वर्ग मीटर = 01 हेक्टेयर
16 मुट्ठी = 01 नाली
2.5 नाली = 40 मुट्ठी = 1 बीघा

राज्य में गढ़वाल मण्डल की अपेक्षा कुमाऊँ मण्डल में कृषि भूमि अधिक है। उत्तराखण्ड के मैदानी भागों में कृषि भूमि का विभाजन मिट्टी की प्रकृति के आधार पर होता है, जबकि पर्वतीय भागों में कृषि भूमि का विभाजन सिंचाई सुविधा के आधार पर होता है। राज्य गठन के समय सक्रिय जोतों की संख्या 9.26 लाख थी, जो वर्तमान में 8.91 लाख रह गई है, जिसमें 3.5 प्रतिशत की कमी आई है। ब्रिटिश काल से पूर्व राज्य में जो भी भूमि बंदोबस्त किए गए, वे सभी मनुस्मृति पर आधारित थे। अंग्रेजों से ठीक पूर्व 1812 में गोरखा काल में भूमि-बन्दोबस्त कराया गया था। ब्रिटिश काल का 9वां व सबसे महत्वपूर्ण भू-बन्दोबस्त 1863-73 में हुआ था, जिसे जी. ई. विकेट की अध्यक्षता में होने के कारण विकेट बन्दोबस्त कहा गया। विकेट बन्दोबस्त में पहली बार वैज्ञानिक पद्धति को अपनाया गया। ब्रिटिश काल का पहला भूमि बन्दोबस्त 1815-16 में हुआ था। विकेट बंदोबस्त में सिंचाई उपलब्धता के आधार पर पर्वतीय भूमि को पांच वर्गों में बांटकर खातेदारों को उनकी भूमि का सटीक लेखा-जोखा, खसरा, खतौनी एवं शबरा उपलब्ध कराया गया था।

पर्वतीय कृषि भूमि के प्रकार (Types of Hill Farming Land)
राज्य में मैदानी भागों में कृषि भूमि का विभाजन मिट्टी की प्रकृति के आधार पर किया जाता है, इसके विपरीत पर्वतीय भागों में सिंचाई की सुविधा के आधार पर किया जाता है।

  1. तलाऊं
  2. उपराऊं अव्वल
  3. उपराऊं दोयम
  4. इजरान
  5. कंटील

तलाऊं भूमि (Flat Land)
राज्य की अधिकांश छोटी-बड़ी नदियां अपने प्रवाह क्षेत्र में उर्वर घाटियों का निर्माण करती हैं। यह क्षेत्र मध्यम कृषि उपज वाला क्षेत्र माना जाता है। इसी प्रकार की घाटी कोसी नदी घाटी भी है, जिसे राज्य में धान का कटोरा नाम से जाना जाता है। यह कृषि हेतु सर्वाधिक श्रेष्ठ होती है। यह उपराऊं भूमि से तीन गुना अच्छी होती है।

तलाऊं भूमि तीन प्रकार की होती है:

  1. सेराअत: उत्तम जलोड़ मिट्टी
  2. फणचर: यह पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा जल पर निर्भर
  3. सिमार: यहां निरन्तर जल भरा रहता है।

यहां रौखड़, तप्पड़ व बगड़ भूमि पाई जाती है।

उपराऊं भूमि (Above Land)
यहां की भूमि लाल रंग की होती है। उपराऊं भूमि को उखड़ भूमि कहा जाता है।

उपराऊं अव्वल भूमि (Uppermost Land)
यह उपराऊं दोयम से डेढ़ गुना अच्छी भूमि होती है।

उपराऊं दोयम भूमि (Secondary Land)
यह इजरान भूमि से दो गुना अच्छी होती है।

इजरान भूमि (Ejran Land)
वनों के किनारे या बीच में स्थित अपरिपक्व पथरीली भूमि इजरान भूमि कहलाती है। यह कृषि हेतु अनुपयुक्त होती है। इसे कटील, उखेड़ी और इज्जर भूमि भी कहा जाता है।

स्थानीय भूमि का बंटवारा (Division of Local Land)

  1. गाड भूमि (Gad Bhoomi): छोटी नदी की घाटी में स्थित खेत गाड़ भूमि कहलाती है।
  2. इजर भूमि (Izar Bhoomi): कम उपजाऊ भूमि जिसमें तीसरे वर्ष खेती होती हैं।
  3. धुरा-डांडा भूमि (Dhura Bhoomi): ऊंचाई वाले क्षेत्र की भूमि को धुरा या डांडा भूमि कहा जाता है।
  4. रौ या रय भूमि (Raw Bhoomi): गहरी घाटी में स्थित क्षेत्र, जिसकी प्राकृतिक बनावट ऐसी होती है कि उसमें पानी एकत्र होकर तालाब का रूप ले लेता है।
  5. खिल-कटील भूमि (Blooming Bhoomi): जंगल में बंजर भूमि को खिल-कटील भूमि कहा जाता है।

गांवों के समीप की भूमि - घरया
गांवों के मध्य की भूमि - बिचल्या
वनों से लगी भूमि - बुण्या

बगड़ भूमि (Bagad Bhoomi):
पर्वतीय क्षेत्रों या मैदानी क्षेत्रों में नदियों के समीप के तटीय भाग बगड़ कहलाता है। ऐसी भूमि सर्वाधिक शिवालिक क्षेत्र में पाई जाती है।

तप्पड़ भूमि (Tappad Bhoomi):
पहाड़ी ढलानों के बीच में अपेक्षाकृत जो समतल भूमि के जो टुकड़े पाये जाते हैं, उसे ही तप्पड़ भूमि कहा जाता है।

रौखड़ भूमि (Roukhad Bhoomi):
कंकड़-पत्थर युक्त भूमि को रौखड़ भूमि कहलाती है।

तराई-भावर भूमि (Tarai-Bhawar Bhoomi):
पर्वतीय क्षेत्रों के दक्षिण में जहां पर हमारी पहाड़ियां समाप्त हो जाती हैं वहां से मैदान प्रारंभ हो जाते हैं। उस भू-भाग पर भावर की पट्टियां पाई जाती हैं। यहां तराई-भावर भूमि पाई जाती है, जो कि कृषि हेतु काफी उपयुक्त होती है। खेती हेतु सर्वाधिक उपयुक्त भूमि तराई-भावर में ही पाई जाती है। यह प्रदेश की सर्वोत्तम भूमि है।

उत्तराखंड में खेती के प्रकार (Types of Farming in Uttarakhand)
उत्तराखंड एक पर्वतीय राज्य है। उत्तराखण्ड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और अन्य कारणों से राज्य में विभिन्न प्रकार की खेती की जाती है।

  1. समोच्च खेती (Contour Farming):
    इसे समोच्च रेखीय या कण्टूर फार्मिक भी कहा जाता है। ढाल के ऊपर एक ही ऊँचाई के अलग-अलग दो बिन्दुओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा को कण्टूर रेखा कहते है। पहाड़ी ढालों के विपरीत कण्टूर रेखा पर खेती की जाती है। इससे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में नमी सुरक्षित रहती है और अधिक वर्षा वाले स्थानों पर मृदा अपरदन कम होता है।

  2. सीढ़ीदार खेती (Terraced Farming):
    यह खेत ज्यादा चौड़े और लंबे नहीं होते हैं, और एक के बाद एक खेत ढलान में होते हैं। जब भूमि अधिक ढालू होती है, तब इस विधि से खेती की जाती है। इसमें ढाल को सीढ़ियों के रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है और उन सीढ़ियों पर आड़ी जुताई करके कृषि की जाती है।

  3. स्थानांतरण या झूमिंग खेती (Shifting Farming):
    राज्य की कुछ आदिम जातियां इस प्रकार की खेती करती हैं। इसमें सर्वप्रथम किसी स्थान का चयन कर वहां की झाड़ियों और पेड़ों को साफ किया जाता है और कुछ वर्षों तक उसमें कृषि की जाती है। उर्वरता समाप्त होने पर स्थान को बदल दिया जाता है।

भूमि के उपजाऊपन के अनुसार भूमि का वर्गीकरण (Classification of Land According to Fertility):

  1. कटील, उत्खेड़ी, इज्जर/इजरान भूमि
  2. उपराऊं भूमि (1. उपराऊं अव्वल 2. उपराऊं दोयम)
  3. तलाऊं भूमि (सेरा, फणचर, सिमार)
  4. तराई-भावर भूमि

कृषि क्षेत्र के आधार पर वर्गीकरण(Classification on the basis of Agricultural Area)

  1. अति उच्च विकसित कृषि क्षेत्र (Very Highly Developed Agricultural Area)

    • यह क्षेत्र कृषि के लिए अत्यधिक उपयुक्त और विकसित होता है। यहां सिंचाई की सुविधाएं, उर्वरक, उच्च गुणवत्ता वाली बीज, और कृषि तकनीक की उपलब्धता होती है। यह क्षेत्र उच्चतम उपज का उत्पादन करता है।
  2. उच्च विकसित कृषि क्षेत्र (Highly Developed Agricultural Area)

    • इस क्षेत्र में भी कृषि की अच्छी स्थिति होती है, लेकिन यहां की उपज अति उच्च विकसित क्षेत्रों की तुलना में थोड़ी कम होती है। सिंचाई, उर्वरक, और कृषि तकनीकों की अच्छी उपलब्धता होती है।
  3. मध्यम विकसित कृषि क्षेत्र (Moderately Developed Agricultural Area)

    • इस क्षेत्र में कृषि की स्थिति सामान्य होती है। हालांकि, यहां सिंचाई सुविधाएं और उर्वरकों की उपलब्धता सीमित हो सकती है, जिससे उपज भी सीमित होती है।
  4. अल्प विकसित कृषि क्षेत्र (Less Developed Agricultural Area)

    • इस क्षेत्र में कृषि के लिए सुविधाएं बहुत सीमित होती हैं। सिंचाई की व्यवस्था की कमी, मिट्टी की गुणवत्ता में कमी, और अन्य कृषि संबंधित समस्याएं इस क्षेत्र में पाई जाती हैं।
  5. अति अल्प विकसित क्षेत्र (Very Less Developed Agricultural Area)

    • यह क्षेत्र कृषि के लिए अत्यधिक कम उपयुक्त होता है। यहां की मिट्टी, जलवायु, और सिंचाई की स्थिति कृषि के लिए बहुत कठिन होती है, जिससे कृषि की उपज भी बहुत कम होती है।

Frequently Asked Questions (FAQ) 

1. उत्तराखंड की प्रमुख मृदाएँ कौन सी हैं?

उत्तराखंड में तराई मृदा, भॉवर मृदा, चारागाही मृदा, टर्शियरी मिट्टी, क्वार्ट्ज मिट्टी, ज्वालामुखी मिट्टी, दोमट मिट्टी, भूरी लाल-पीली मिट्टी, लाल मिट्टी और भस्मी मिट्टी प्रमुख मृदाएँ हैं।

2. उत्तराखंड की मृदा में किस प्रकार की उपजाऊता होती है?

उत्तराखंड की मृदा में विभिन्न प्रकार की उपजाऊता है, जिसमें तराई मृदा और भूरी लाल-पीली मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ होती हैं।

3. उत्तराखंड में किस प्रकार की कृषि की जाती है?

उत्तराखंड में समोच्च खेती, सीढ़ीदार खेती, और स्थानांतरण या झूमिंग खेती प्रमुख कृषि पद्धतियाँ हैं।

4. उत्तराखंड में कृषि भूमि का कितना प्रतिशत कृषि कार्य में उपयोग होता है?

उत्तराखंड में कृषि भूमि का 12.90 प्रतिशत भाग कृषि कार्य में उपयोग होता है।

5. उत्तराखंड में प्रमुख कृषि फसलें कौन सी हैं?

उत्तराखंड में गेहूं, धान, मंडुआ, और गन्ना प्रमुख कृषि फसलें हैं।

6. पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि भूमि का विभाजन किस आधार पर किया जाता है?

पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि भूमि का विभाजन सिंचाई सुविधा के आधार पर किया जाता है।

7. उत्तराखंड में कृषि भूमि का विभाजन किस प्रकार किया जाता है?

उत्तराखंड में कृषि भूमि का विभाजन मिट्टी की प्रकृति और सिंचाई सुविधा के आधार पर किया जाता है।

8. राज्य में कुल कितनी कृषि जोतें हैं?

वर्ष 2015-16 की कृषि गणना के अनुसार, उत्तराखंड में कुल 8,81,305 कृषि जोतें हैं।

9. उत्तराखंड में कृषि भूमि की माप किस इकाई में की जाती है?

उत्तराखंड में कृषि भूमि की माप मुट्ठी/नाली और बीघा में की जाती है।

10. उत्तराखंड की उपराऊं भूमि क्या है?

उपराऊं भूमि वह भूमि है जो पर्वतीय क्षेत्र में होती है, जिसमें लाल रंग की मिट्टी पाई जाती है।

11. उत्तराखंड में 'तराई-भावर भूमि' क्या है?

तराई-भावर भूमि वह भूमि है जो पर्वतीय क्षेत्रों के दक्षिण में पाई जाती है और कृषि के लिए अत्यधिक उपयुक्त होती है।

12. उत्तराखंड में कृषि के लिए सबसे उपयुक्त भूमि कौन सी है?

उत्तराखंड में सबसे उपयुक्त भूमि 'तराई-भावर भूमि' है, जो कृषि के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।

13. उत्तराखंड में किस प्रकार की खेती की जाती है जब भूमि अधिक ढलान वाली होती है?

जब भूमि अधिक ढलान वाली होती है, तब 'सीढ़ीदार खेती' की जाती है।

14. 'शिफ्टिंग खेती' क्या होती है?

शिफ्टिंग खेती वह पद्धति है जिसमें भूमि की उर्वरता समाप्त होने के बाद भूमि को बदल दिया जाता है और नई भूमि पर खेती की जाती है।

15. उत्तराखंड में कृषि भूमि का विभाजन किस आधार पर किया जाता है?

उत्तराखंड में कृषि भूमि का विभाजन मिट्टी की प्रकृति और सिंचाई सुविधा के आधार पर किया जाता है।

16. 'गाड़ भूमि' क्या है?

गाड़ भूमि छोटी नदी की घाटी में स्थित खेत होते हैं, जिन्हें गाड़ भूमि कहा जाता है।

17. 'इजरान भूमि' क्या है?

इजरान भूमि वह भूमि है जो वन क्षेत्रों के किनारे या बीच में स्थित अपरिपक्व पथरीली भूमि होती है, जो कृषि के लिए अनुपयुक्त होती है।

18. उत्तराखंड में कृषि भूमि की सबसे उपजाऊ प्रकार कौन सी है?

उत्तराखंड में तराई-भावर भूमि और तलाऊं भूमि सबसे उपजाऊ मानी जाती है।

19. 'उपराऊं अव्वल भूमि' क्या है?

उपराऊं अव्वल भूमि वह भूमि होती है जो उपराऊं दोयम भूमि से डेढ़ गुना अधिक उपजाऊ होती है।

20. उत्तराखंड में 'रौखड़ भूमि' क्या है?

रौखड़ भूमि वह भूमि होती है जिसमें कंकड़-पत्थर होते हैं और यह कृषि के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती है।

21. उत्तराखंड में प्रमुख कृषि क्षेत्र कौन से हैं?

उत्तराखंड के प्रमुख कृषि क्षेत्र में गढ़वाल मण्डल और कुमाऊं मण्डल शामिल हैं।

22. 'रौ या रय भूमि' क्या है?

रौ या रय भूमि वह भूमि है जो गहरी घाटी में स्थित होती है और प्राकृतिक रूप से तालाब का रूप ले लेती है।

23. उत्तराखंड में किस प्रकार की भूमि सर्वाधिक शिवालिक क्षेत्र में पाई जाती है?

उत्तराखंड के शिवालिक क्षेत्र में 'बगड़ भूमि' पाई जाती है, जो कृषि के लिए उपयुक्त होती है।

24. 'तलाऊं भूमि' के प्रकार क्या हैं?

तलाऊं भूमि तीन प्रकार की होती है: सेरात, फणचर, और सिमार।

25. उत्तराखंड में भूमि का वर्गीकरण किस आधार पर किया जाता है?

उत्तराखंड में भूमि का वर्गीकरण कृषि के उपजाऊपन के अनुसार किया जाता है, जिसमें कटील, उपराऊं और तलाऊं भूमि प्रमुख हैं।

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