तारा दत्त गैरोला: गढ़वाली साहित्य के अद्वितीय रचनाकार (Tara Dutt Gairola: The Unique Creator of Garhwali Literature)
तारा दत्त गैरोला: गढ़वाली साहित्य के अद्वितीय रचनाकार
तारा दत्त गैरोला (1875-1940) एक महान भारतीय वकील, लेखक और संपादक थे, जिनका योगदान गढ़वाली और भारतीय लोक-साहित्य में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उन्हें आधुनिक गढ़वाली कविता के अग्रदूत के रूप में जाना जाता है और उनका योगदान उत्तराखंड के लोक-साहित्य के संरक्षण और प्रचार में उल्लेखनीय रहा है।
जीवनी
तारा दत्त गैरोला का जन्म 6 जून 1875 को टिहरी गढ़वाल के बडियार गढ़ पट्टी के ढाल डुंग गाँव में हुआ था। उन्होंने देहरादून और श्रीनगर में एक लंबा और फलदायी कानूनी करियर बिताया। इसके अलावा, वह 'गढ़वाली' पत्रिका के संपादक भी रहे, जहां उन्होंने गढ़वाली संस्कृति, लोकगीतों और साहित्य को प्रचारित किया।
गैरोला का जीवन बहुपक्षीय था; उनके कार्यों में वकालत, लेखन और संपादन के साथ-साथ लोक-संस्कृति और लोक-साहित्य का संरक्षण भी शामिल था। उन्होंने उत्तराखंड के स्थानीय भाटों और 'हुरकियाओं' द्वारा गाए गए वीर गाथाओं और भक्ति गीतों का संग्रह किया। इन गीतों का संग्रह उन्होंने हिमालयन फोकलोर के तहत, ई. शेरमेन ओकले के साथ सह-लेखक के रूप में प्रकाशित किया। इस पुस्तक में गढ़वाली और कुमाऊँनी लोक वीर गाथाओं के अंग्रेजी अनुवादों को एकत्रित किया गया।
प्रमुख कार्य और योगदान
तारा दत्त गैरोला ने गढ़वाली कविता का संग्रह 'गढ़वाली कवितावली' संपादित किया, जिसमें विभिन्न आधुनिक गढ़वाली कवियों की रचनाओं को शामिल किया गया। इसके अलावा, उन्होंने अपनी खुद की गढ़वाली कविता 'सदेई' भी प्रकाशित की, जो गढ़वाली लोककथा पर आधारित थी।
उनके कार्यों में लोक-साहित्य के संरक्षण और प्रचार के लिए गढ़वाली संस्कृति को स्थापित करने का योगदान अहम है। उन्होंने अपने लेखन और प्रकाशनों के माध्यम से गढ़वाली और कुमाऊँनी लोक-संस्कृतियों की अनूठी धारा को जीवित रखा।
चयनित प्रकाशन
- हिमालयन लोकगीत (हार्डकवर), आईएसबीएन 978-0836423914
- हिमालयन लोकगीत (हार्डकवर), आईएसबीएन 978-8177551297
- हिमालयी लोककथा: पश्चिमी नेपाल के भूत और राक्षस
तारा दत्त गैरोला की ये पुस्तकें न केवल गढ़वाली लोक-संस्कृतियों का दस्तावेज हैं, बल्कि इनसे भारतीय लोक-साहित्य को भी नया दृष्टिकोण मिला है। इन पुस्तकों ने गढ़वाली और कुमाऊँनी लोक साहित्य के महत्व को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया और उनकी विरासत को संजोने में अहम भूमिका निभाई।
तारा दत्त गैरोला की साहित्यिक विरासत
तारा दत्त गैरोला ने गढ़वाली साहित्य के इतिहास को समृद्ध किया। उनके द्वारा किए गए कार्य न केवल उत्तराखंड के सांस्कृतिक इतिहास को जीवित रखते हैं, बल्कि गढ़वाली और अन्य भारतीय भाषाओं में लोक-साहित्य के प्रचार-प्रसार को भी बढ़ावा देते हैं। उनकी कविताएँ, उनके अनुवाद, और उनके द्वारा संपादित संग्रह आज भी गढ़वाली साहित्य के महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं।
तारा दत्त गैरोला का योगदान न केवल गढ़वाली साहित्य में महत्वपूर्ण था, बल्कि उन्होंने भारतीय लोक-साहित्य को एक नया आयाम दिया। उनका कार्य आज भी साहित्यकारों और शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
तारा दत्त गैरोला FQCs (Frequently Asked Questions)
1. तारा दत्त गैरोला कौन थे?
उत्तर: तारा दत्त गैरोला (1875-1940) एक भारतीय वकील, लेखक, और संपादक थे, जिन्हें गढ़वाली साहित्य और भारतीय लोक-संस्कृति के संग्रहण और प्रचार में उनके योगदान के लिए जाना जाता है।
2. तारा दत्त गैरोला का जन्म कहां हुआ था?
उत्तर: तारा दत्त गैरोला का जन्म 6 जून 1875 को टिहरी गढ़वाल के बडियार गढ़ पट्टी के ढाल डुंग गाँव में हुआ था।
3. तारा दत्त गैरोला ने किस पत्रिका का संपादन किया था?
उत्तर: तारा दत्त गैरोला ने 'गढ़वाली' नामक पत्रिका का संपादन किया था, जिसमें उन्होंने गढ़वाली संस्कृति और लोकगीतों को प्रकाशित किया।
4. तारा दत्त गैरोला के प्रमुख योगदान क्या थे?
उत्तर: तारा दत्त गैरोला का प्रमुख योगदान गढ़वाली लोकगीतों और वीर गाथाओं का संग्रहण और प्रकाशन था। उन्होंने 'हिमालयन फोकलोर' और 'गढ़वाली कवितावली' जैसी पुस्तकें संपादित कीं।
5. तारा दत्त गैरोला ने कौन सी महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं?
उत्तर: तारा दत्त गैरोला ने 'हिमालयन लोकगीत' और 'हिमालयी लोककथा: पश्चिमी नेपाल के भूत और राक्षस' जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं।
6. तारा दत्त गैरोला का साहित्यिक योगदान क्या था?
उत्तर: तारा दत्त गैरोला ने गढ़वाली और कुमाऊँनी लोक-संस्कृतियों का संग्रह और प्रचार किया। उनकी पुस्तकों और कविताओं के माध्यम से उन्होंने उत्तराखंड के लोक-साहित्य को बढ़ावा दिया।
7. तारा दत्त गैरोला का कानूनी करियर कैसा था?
उत्तर: तारा दत्त गैरोला का कानूनी करियर देहरादून और श्रीनगर में बहुत ही सफल और लंबा था, जिसमें उन्होंने वकालत के क्षेत्र में योगदान दिया।
8. तारा दत्त गैरोला की प्रमुख पुस्तक 'सदेई' किस विषय पर आधारित थी?
उत्तर: तारा दत्त गैरोला की पुस्तक 'सदेई' गढ़वाली लोककथा पर आधारित थी, जिसमें उन्होंने गढ़वाली कविता और लोक-संस्कृति को प्रस्तुत किया।
9. तारा दत्त गैरोला को किसने सह-लेखक के रूप में मदद की?
उत्तर: तारा दत्त गैरोला ने ई. शेरमेन ओकले के साथ मिलकर 'हिमालयन फोकलोर' पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें गढ़वाली और कुमाऊँनी लोक वीर गाथाओं का संग्रह किया गया।
10. तारा दत्त गैरोला के योगदान को कैसे सराहा गया?
उत्तर: तारा दत्त गैरोला के योगदान को साहित्यकारों और शोधकर्ताओं द्वारा बहुत सराहा गया, और उनकी पुस्तकें आज भी गढ़वाली और भारतीय लोक-साहित्य के महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं।
टिप्पणियाँ