दस वीर भैरव और चौसठ भैरव स्वरूप दर्शन
परिचय
परब्रह्म, जो सृष्टि के विकास का एकमात्र स्रोत है, वेद और तंत्र में विविध नामों और स्वरूपों में वर्णित हैं। वेदों में इन्हें रुद्र कहा गया है, जबकि तंत्र शास्त्र में इन्हें भैरव के रूप में पूजा जाता है। भैरव की उपासना से जीवन में सुरक्षा, शांति और साधना का मार्ग प्रशस्त होता है।
"भैरव" शब्द की उत्पत्ति संस्कृत में "भी" (भय) और "अव" (रक्षा) धातु से मानी जाती है, जिसका अर्थ है "भय से रक्षा करने वाला।" काल से भी भयभीत करने वाले भैरव को "कालभैरव" कहा जाता है।
दस वीर भैरव
तंत्र ग्रंथों में दस वीर भैरवों का उल्लेख किया गया है। ये भैरव सृष्टि, स्थिति, और संहार के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनकी उपासना साधक को आध्यात्मिक शक्ति और सिद्धि प्रदान करती है।
- सृष्टि वीर भैरव
- स्थिति वीर भैरव
- संहार वीर भैरव
- रक्तवीर भैरव
- यमवीर भैरव
- मृत्यु वीर भैरव
- भद्रवीर भैरव
- परमार्क वीर भैरव
- मार्तण्डवीर भैरव
- कालाग्निवीर भैरव
चौंसठ भैरव स्वरूप
तंत्रों और शक्ति ग्रंथों में चौसठ भैरवों का वर्णन मिलता है। इन भैरवों की शक्तियाँ चौसठ योगिनियों के रूप में प्रसिद्ध हैं। ये भैरव और योगिनियाँ सृष्टि, स्थिति, और संहार के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।
इन चौसठ भैरवों में से प्रमुख नाम हैं:
- असितांग
- विशालाक्ष
- मार्तण्ड
- स्वच्छन्द
- रुरू
- त्रिनेत्र
- कालाग्नि
- पर्वतावास
- शशिभूषण
- कुटिल१. असिताङ्ग, २. विशालाक्ष, ३. मार्तण्ड, ४. मोदकप्रिय, ५. स्वच्छन्द, ६. विघ्नसन्तुष्ट, ७. खेचर, ८. सचराचर, ९. रूरू, १०. क्रोडदंष्ट्र, ११. जटाधर, १२. विश्वरूप, १३. विरूपाक्ष, १४. नानारूपधर, १५. नर, १६. वञ्रहस्त, १७. महाकाय, १८. चण्ड, १९. प्रलयान्तक, २०. भूमिकम्प, २१. नीलकण्ठ, २१. विष्णु, २३. कुलपालक, २४. मुण्डपाल, २५. कामपाल, २६. क्रोध, २७. पिङ्गलेक्षण, २८. अभ्ररूप, २९. धरापाल, ३०. कुटिल, ३१. मन्त्रनायक, ३२. रुद्र, ३३. पितामह, ३४. उन्मत्त, ३५. वटुनायक, ३६. शङ्कर, ३७. भूतवेताल, ३८. त्रिनेत्र, ३९. त्रिपुरान्तक, ४०. वरद, ४१. पर्वतावास, ४२. कपाल, ४३. शशिभूषण, ४४. हस्तिचर्माम्बरधर, ४५. योगीश, ४६. ब्रह्मराक्षस, ४७. सर्वज्ञ, ४८. सर्वदेवेश, ४९. सर्वभूतहृदिस्थित, ५०. भीषण, ५१. भयहर, ५२. सर्वज्ञ, ५३. कालाग्नि, ५४. महारौद्र, ५५. दक्षिण, ५६. मुखर, ५७. अस्थिर, ५८. संहार, ५९. अतिरिक्ताङ्ग, ६०. कालाग्नि, ६१. प्रियङ्कर, ६२. घोरनाद, ६३. विशालाक्ष तथा ६४. दक्षसंस्थितयोगीश।
भैरव उपासना का महत्व
भैरव साधना के बिना शक्ति साधना को अपूर्ण माना गया है। यह साधना साधक को नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाती है और उसे ज्ञान, शक्ति और सिद्धि प्रदान करती है। रुद्रयामल तंत्र और शक्तिसंगम तंत्र जैसे प्राचीन ग्रंथों में भैरव की साधना को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।
भैरव उपासना से लाभ
- जीवन के भय, कष्ट और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा।
- आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक शांति।
- कार्य सिद्धि और विशेष सिद्धियों की प्राप्ति।
निष्कर्ष
भैरव तंत्र साधना भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा है। दस वीर भैरव और चौसठ भैरव स्वरूपों की उपासना से साधक अपने जीवन में उच्चतम सिद्धियों को प्राप्त कर सकता है। भैरव की उपासना साधक को न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और शांति का मार्ग प्रशस्त करती है।
"कालभैरव का स्मरण ही हर बाधा का समाधान है।"
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