उत्तराखंड की परंपराएँ: पहाड़ी भोजन के अनूठे नियम और रीति-रिवाज (Traditions of Uttarakhand: Unique Rules and Customs of Pahari Food)

उत्तराखंड के रीति-रिवाज: पहाड़ी भोजन के नियम और परंपराएँ

उत्तराखंड की संस्कृति अपनी अनूठी परंपराओं और रीति-रिवाजों के लिए जानी जाती है। यहाँ के लोग अपनी परंपराओं को गहरी श्रद्धा और सम्मान के साथ निभाते हैं। आज हम बात करेंगे उत्तराखंड के पारंपरिक भोजन के नियमों के बारे में, जो न केवल भोजन की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं, बल्कि यहां की सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाते हैं।

Pahadi khana

पहाड़ी भोजन के नियम:

जमीन पर बैठकर खाना: उत्तराखंड में भोजन करते समय सभी को जमीन पर बैठकर खाना होता है। यह परंपरा सिर्फ भोजन की विधि नहीं बल्कि सम्मान और साधारणता को भी दर्शाती है।

चप्पल उतारकर खाना: भोजन करते समय चप्पल बाहर उतारनी होती है। यह परंपरा साफ-सफाई और पवित्रता को बनाए रखने के लिए है।
खाना बनाने वाले पंडितजी: केवल 'सरियूल' (खाना बनाने वाले पंडितजी) ही भोजन के पांगीत (प्लेटफार्म) के बीच जा सकते हैं।
पानी देने का तरीका: पानी केवल पांगीत के पीछे से दिया जा सकता है। बीच में जाना मना है, ताकि भोजन की प्रक्रिया और सम्मान बनाए रखा जा सके।
भोजन की बंटाई: भुजी पापड़, भुनी लाल मिर्च जैसे सामान कोई भी बांट सकता है, लेकिन दाल-भात केवल सरियूलजी ही बांट सकते हैं। सबको एक साथ मिलकर खाना होगा।
खाने की प्रक्रिया: जब सरियूल दाल-भात बांट रहे हों, तो हाथ पत्तल से दूर रखें। फुकेने की जिम्मेदारी सरियूलजी की होती है।
विशेष भात: उडद राजमा के साथ सफेद भात और कड़ी के साथ मिठू भात (ख़ुश्का) मिलेगा।
खाने के दौरान: जब तक सभी लोग खाना न खा लें, कोई भी अपनी जगह से नहीं उठेगा। सबको एक-दूसरे का खाना खत्म होने का इंतजार करना होता है।
आरे (खाना घर के लिए): आरे केवल उन लोगों को मिलता है जिनके घर में वृद्ध लोग हैं। अन्य सभी को आकर ही खाना पड़ता है।
आरो के बर्तन: आरे के लिए बर्तन घर से लाना पड़ता है।
किचन की सफाई: भोजन के बर्तन और चपल को उचित जगह पर ही छोड़ना होता है। लड़के खुद बर्तन उठाते हैं।
खाना और भावनाएँ: भोजन के दौरान आपके मुंह में पानी और आंखों में आंसू आना लाजमी है। यह स्वाद और प्रेम को दर्शाता है।
Pahadi khana

भोजन की विशेषताएँ

उत्तराखंड में भोजन की परंपरा बहुत खास है। यहाँ का खाना लकड़ी के चूल्हे पर पकता है और सब्जियाँ बिना यूरिया के साफ पानी में उगाई जाती हैं, जिनका स्वाद बेमिसाल होता है। यहाँ की चीजें छोटी या कम होती हैं, लेकिन गुणवत्ता में उच्च होती हैं। गाय का दूध भी अधिकतम दो किलो ही होता है।

उत्तराखंड के पारंपरिक भोजन की यह प्रक्रिया आपको केवल शादियों में ही मिलती है। होटल में जाकर आपको यह स्वाद नहीं मिलेगा। इसलिए, यदि आप उत्तराखंड के इस अनूठे स्वाद का अनुभव करना चाहते हैं, तो वहां के स्थानीय रीति-रिवाजों और भोजन की परंपराओं को अपनाएं।

जय देवभूमि!


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